सिखों के जनसंहार के ‘गुनाहगारों को सजा देंने की मांग 




नई दिल्ली के जंतर मंतर पर एकत्रित होकर, 1984 में सिखों के जनसंहार की 35वीं बरसी के अवसर पर जनसभा आयोजित की गई । सभा को आयोजित करने वालों में थे लोक राज संगठन और कई दूसरे संगठन, जो उस जनसंहार के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मांग को लेकर और भविष्य में इस प्रकार के कांडों को रोकने के लिए जरूरी कानूनी व राजनीतिक कदमों को लागू करवाने के लिए, लम्बा तथा अडिग संघर्ष करते आये हैं।


 

“1984 के गुनाहगारों को सजा दें!”, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और बंटवारे की राजनीति के खिलाफ एकजुट हों!”, “एक पर हमला, सब पर हमला!” - एक बड़े बैनर पर लिखे हुए इन नारों में सभा में भाग लेने वालों की भावनाओं का समावेश था। “बांटो और राज करो की राजनीति मुर्दाबाद!”, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद को एकजुट होकर खत्म करें!”, “राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!”, “हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक है, लोग सांप्रदायिक नहीं!”, आदि जैसे नारे लिखे हुये बैनर और प्लाकार्ड कार्यकर्ताओं के हाथों में और सभा स्थल के चारों तरफ दिख रहे थे।

सभा के सामूहिक रूप से आयोजक थे लोक राज संगठन, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट गदर पार्टी, लोक पक्ष, यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट, सर्वहारा लोक पक्ष, हिन्द नौजवान एकता सभा, सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी, आल इंडिया कैथोलिक यूनियन, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, देशीय मक्कल सकती कच्ची, पुरोगामी महिला संगठन, सिख फोरम, सी.पी.आई.(एम-एल) न्यू प्रोलेतारियन, आल इंडिया मजलिस ए मुशावरत (दिल्ली) तथा अन्य। सहभागी संगठनों के प्रतिनिधियों ने जनसंहार पर अपने विचार रखे और आगे क्या करना चाहिए, उस पर अपने सुझाव दिए। सभा को संबोधित करने वालों में थे लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस.राघवन, बिरजू नायक और सुचरिता, द सिख फोरम से प्रताप सिंह, कम्युनिस्ट गदर पार्टी से कामरेड प्रकाश राव, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया सिराज़ तालिब, लोक पक्ष से कामरेड के.के. सिंह, सी.पी.आई.(एम-एल) न्यू प्रोलेतारियन से कामरेड सिद्धान्तकर, सर्वहारा लोकपक्ष से कामरेड सिद्धांत, आल इंडिया मजलिस ए मुशावरत (दिल्ली) से अब्दुल राशिद, देशीय मक्कल सकती कच्ची से महेश्वरन, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया से एडवोकेट अरूण माझी, हिन्द नौजवान एकता सभा से लोकेश, तथा अन्य।


 

वक्ताओं ने विस्तारपूर्वक समझाया कि 1984 का जनसंहार राज्य द्वारा सुनियोजित काण्ड था. वह “सिखों से बदला लेने” वाला हिन्दुओं का स्वतरूस्फूर्त कदम बिलकुल नहीं था। उसे कई महीनों पहले से आयोजित किया गया था. इस बात के ढेर सारे सबूत हैं कि उसे उच्चतम स्तर पर आयोजित किया गया था, कि उसमें हुक्मरान पार्टी, मंत्री मंडल, सुरक्षा अधिकारी व अफसरशाही सभी शामिल थे। जनसंहार पर जांच करने के लिए बिठाए गए अनेक आयोगों की रिपोर्टों से स्पष्ट होता है कि जनसंहार को अंजाम देने में पूरे राज्य की मशीनरी लगी हुयी थी।

 

1984 का जनसंहार हुक्मरान वर्ग की “बांटो और राज करो” की रणनीति का हिस्सा है। हमारी राजनीतिक पार्टियों की यह पसंदीदा नीति है, जिसे लागू करके वे बड़े कॉर्पोरेट घरानों के हित में और लोगों के हितों के खिलाफ अपनी नीतियों को हमारे ऊपर थोप देते हैं। हुक्मरान और उनका राज्य यह झूठा प्रचार करते हैं कि लोग सांप्रदायिक हैं, यह बताते हुए, वक्ताओं ने तमाम उदाहरणों से दिखाया कि यह हिन्दोस्तानी राज्य ही है जो सांप्रदायिक जनसंहार आयजित करता है. 1984 की घटनाओं से साफ देखने में आया कि राज्य के अधिकारी और सुरक्षा अधिकारी हत्याकांड के मूक दर्शक बने रहे और कातिलाना गुंडों की मदद भी करते रहे. जबकि लोगों ने बहादुरी के साथ आगे आकर, पीड़ितों को बचाया और उन्हें हर तरह की मदद दी।
वक्ताओं ने बताया कि हुक्मरानों की और से भारी दबाव के बावजूद, हमने लोगों को कभी यह भूलने का मौका नहीं दिया है कि 35 बरस पहले दिल्ली की सडकों पर क्या गुजरा था। आज चारों तरफ नफरत भरे अपराध हो रहे हैं और मानव अधिकारों की हिफाजत करने वालों पर राज्य का भारी दमन हो रहा है। इन हालातों में यह बेहद जरूरी है कि हम बहादुरी के साथ आगे आकर जो भी गलत किया जा रहा है, उसका विरोध करें। “गुनाहगारों को सजा दें!”, इस नारे का मतलब है कि सबसे पहले, उन राजनीतिक पार्टियों, मंत्रियों और उच्च अफसरों, यानि हिन्दोस्तानी राज्य के कमान के पदों पर बैठे उन सभी को सजा होनी चाहिए, जो जनसंहार को आयोजित करने और अंजाम देने के जिम्मेदार थे और जिन्होंने पीड़ितों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया था। 1984 के बाद पैदा हुयी नई पीढ़ी को यह सच्चाई बताना जरूरी है ताकि भविष्य में वैसा भयानक हत्याकांड फिर न हो सके।

 

वक्ताओं ने बताया कि सिर्फ 1984 के जनसंहार के आयोजक ही नहीं, बल्कि वे सभी गुनहगार भी आज तक आजाद घूम रहे हैं, जिन्होंने 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराया था, 2002 में गुजरात में मुसलमानों का कत्लेआम आयोजित किया था और न जाने कितने ऐसे हत्याकांडों को अंजाम दिया था। आज अल्पसंख्यक समुदायों पर बढ़-चढ़ कर हमले किये जा रहे हैं। उन्हें लिंचिंग हमलों का शिकार बनाया जाता है, उन्हें फर्जी “मुठभेड़ों” में मार डाला जाता है, यू.ए.पी.ए. जैसे काले कानूनों के तहत उन्हें बंद किया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है. उन्हें “आतंकवादी” और “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया जाता है।
अनेक वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों कांग्रेस पार्टी और भाजपा उन अपराधों के लिए जिम्मेदार थीं। इन दोनों पार्टियों ने बार-बार सांप्रदायिक हिंसा और आतंक आयोजित किया है। हर चुनाव में ये पार्टियाँ जाति और धर्म को उछाल कर, लोगों की एकता को तोड़ती हैं। हम सांप्रदायिक हत्याकांडों को रोकने या गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए इन पार्टियों या राज्य प्रशासन पर निर्भर नहीं हो सकते। हमें राज्य के अपराधों का बहादुरी के साथ पर्दाफाश करना चाहिए। हमें सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के पीड़ितों का साथ देना चाहिए। हमें धर्म, जाति और राजनीतिक भेदभाव से ऊपर उठकर, लोगों की एकता बनाकर, हुक्मरानों की 'बांटो और राज करो' की घातक नीति के खिलाफ, एक प्रबल जन आन्दोलन खड़ा करना होगा, वक्ताओं ने कहा।
सभा में भाग लेने वालों ने यह फैसला किया कि 1984 के गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएंगे, कि लोगों की एकता मजबूत करने के लिए काम करेंगे और जो भी राजनीतिक ताकतें धर्म, जाति, भाषा या किसी दूसरे आधार पर लोगों की एकता को तोड़ने की कोशिश करती हैं, उनकी साजिशों का पर्दाफाश करेंगे।
 

 


 



 

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