पुराना प्रेम प्यार और मानवता नहीं दिखाई देती


राम राज की कल्पना नहीं  राम राज आ गया है। केवल वह पुराना प्रेम प्यार, और मानवता नहीं दिखाई देती। दूर दराज गांवों में जहां अंधकार था वहां बिजली और सौर ऊर्जा पहुंच गई है। जहां चिठ्ठी पत्री तथा मनिआडर के इंतजार में महीनों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी , आज इंटरनेट से जुड़ गया है। स्थान,स्थान पर बैंक और डाकघर बन गये हैं। शादी व्याह और अन्य कार्यों में गांव के लोगों की सहभागिता से हो जाया करते थे, यहां तक वर्तन और बिस्तर गांव परिवार से इकठ्ठा करने होते थे। आज शादी गृह और खाना बनाने वाले सुलभ हो जाते हैं। पेड़ काटने, फाड़ने सरान के लिए गांव के लोगों की सहायता की आवश्यकता होती थी। आज गैस सिलेंडर और डिस्पोजल पतलों से काम चलाया जा रहा है।


हम लोग आजादी से पूर्व के जन मानस हैं। हमारे जमाने में चलने के लिए पैदल रास्ते थे , नदी और नाले पार करने पड़ते थे।उन पर पुल नहीं लकड़ी के डंडों से झूले होते थे। उन हिलते हुए झूलों को पार करना भी साहसिक कदम था। आज छोटे बड़े नदी नालों में सीमेंट और लोहे के पुल बने हुए हैं। एक जमाना था शहर आने के लिए पैदल मीलों चलना पड़ता था। वर्ष 1958ई0 तक सतपुली और रामनगर के लिए सुबह से शाम तक पैदल चलना पड़ता था।


अगले दिन गाड़ी मिलती थी, उनमें भी लाल और हरी झंडी लगी होती थी। सड़कों की दशा दयनीय थी संकरी और धूलभरी। गाड़ी में अपर और लोवर क्लास की सीटें होती थी टिकट भाड़ा भी अलग अलग। गाड़ी दो चार ही होती थी, बनावट डिब्बा नुमा। आज सड़कों की स्थिति शहरों से भी बेहतर, गाड़ी, टैक्सी,कारों की भरमार हो चुकी है। जमाने में सड़कों के टूटने पर महीनों बनने का इंतजार करना होता था। आज सड़क चंद समय में साफ की जाती है। सड़कों का चौड़ी करण किया गया है।


यातायात के साधनों से विकास चहुंमुखी और बहुमुखी हो गया है। हम लोगों ने 1959ई0 से 1964ई0 तक अन्नकाल झेले हैं। अमेरिका से मिला हुआ पी0यल0480गेहूं जिसका जूस तो निकाला गया था, सरकारी गल्ले की दुकान से मिलता था। महीनों में तथा गांवों से बीस तीस किलोमीटर की दूरी पर। खेती सूखे के कारण चौपट पड़ी हुई थी ओलावृष्टि के कारण अन्न की समस्या बन जाती थी। मदद की गुहार लगा ने पर किसानों को रुपया आठ आने तक मिल जाते थे। जो बासमती ,हंसनी, इंद्रासन, के चावल जमाने में,दस पांच रुपए किलो मिलते थे, आज महंगे दामों पर भी लोगों को उपलब्ध हो जाते हैं। पहले के जमाने में अन्न था,धन नहीं था, आज धन है किंतु मंहगाई की मार भी सहनी पड़ रही है। फिर भी जमाने की तरह भूखे पेट और कद्दू ,मूली नहीं खानी पड़ रही है।


पैसे के बल पर हर कार्य किया जा सकता है। ये है शहरों की देखा देखी। पुराने जमाने में बरातियों के लिए घी, बकरा ,दही दूध की व्यवस्था गांव परिवार और रिश्तेदारों से की जाती थी। आज उसके सामने शराब परोसी जा रही है। पहनावा रहन सहन पर भी पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ता जा रहा है। यह दिखावा नहीं हर आदमी अपने को बढ़ चढ़ कर दिखाना चाहता है। समस्या है तो ऐसे गरीब लोगों की जिनका कमाने वाला नहीं है। फिर भी वह भी पीछे नहीं रहना चाहता कर्ज लेकर भी जमाने के साथ चलना वह भी अपना सौभाग्य  समझता है विकास हर प्रकार से आज की आवश्यकता भी है और शानो-शौकत भी।हम तो आज भी उसी जमाने में जी रहे हैं। आज भी अपने ईष्ट मित्रों और गांव परिवारों की आवश्यकता को दिल में समाये रहते हैं।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

ग्रासरूट लीडरशिप फेस्टिवल में भेदभाव, छुआछूत, महिला अत्याचार पर 37 जिलों ने उठाये मुद्दे

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

घरेलू कामगार महिलाओं ने सामाजिक सुरक्षा का लाभ मांगा, कहा हमें श्रमिक का दर्जा मिले