मीट की काला बाज़ारी से MCD को लाखों का नुकसान

नयी दिल्ली - दिल्ली की एक मात्र मीट मंडी गाज़ीपुर बूचड़खाने के बंद होने से अवाम बेहद परेशान हैं। कोरोना महामारी में जहां लोगों का कारोबार ढप्प पड़ा है वहीं राजधानी दिल्ली में भैंस और बकरे का मीट दोगुने रेट पर मिल रहा है। अवाम की इस परेशानी को देखते हुए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग सलाहकार समिति सदस्य व कारवां फाउंडेशन के फाउंडर एड. रईस अहमद ने गाज़ी गाज़ीपुर मीट मंडी को दौबारा खोले जाने की अपील की है। 



ग़ौरतलब है कि दिल्ली में मात्र गाजीपुर ही एक बूचड़खाना है, जहां पशुओं की कटाई होती है। मीट के महंगे रेट के लिए सीधे तौर पर पूर्वी दिल्ली नगर निगम ज़िम्मेदार है, इस कोरोनाकल में धीरे-धीरे चीज़े अनलॉक हो रही हैं। वहीं लॉकडाउन के पहले दिन से ही बूचड़खाना लॉक है। अल्पसंख्क समुदाय को इससे बेहद पेरशानी हो रही है।


एड. रईस अहमद ने बताया कि अनलॉक-2 में भी दिल्ली का एकमात्र ग़ाज़ीपुर में बना बूचड़खाना लॉक है। भले ही बूचड़खाने पर ताला जड़ा हो, लेकिन मीट की दुकानों पर धड़ल्ले से निगम की नाक के नीचे पशुओं की कटाई हो रही है। मीट के दुकानदार दोगुने दाम वसूल रहे हैं। इस कोरोनाकाल में दिल्ली में भैंस का मीट 300 से 350 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है, जबकि आम दिनों में इसके दाम 180 रुपये थे। आम दिनों में जो बकरे का मीट 300 से 400 रुपये किलो था, वह अब 550 से 700 रुपये किलो बेचा जा रहा है। इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है, ऐसा नहीं है कि इन चीज़ों से नेता से लेकर अधिकारी वाकिफ़ नहीं है। इसके बाद भी वह कुछ नहीं कर रहे हैं। पहले ही जनता महंगाई की मार झेल रही थी। रेट बढ़ाने के पीछे मीट दुकानदार तर्क दे रहे हैं कि बूचड़खाना बंद है, चोरी-छिपे दुकानों पर पशु काटे जा रहे हैं।


बूचड़खाने के अलावा कहीं पशु नहीं काटे जा सकते। दुकानों पर आराम से मीट बेच सके, इसलिए सरकारी अधिकारियों को ज़्यादा पैसे खिलाने पड़ रहे हैं। इसलिए रेट बढ़ा दिए गए हैं। सवाल यह भी है कि जब बूचड़खाना बंद है तो दुकानों पर मीट कैसे बिक रहा है?, निगम को अगर पता है कि मीट ज़्यादा रेट पर बिक रहा है तो वह बूखड़खाने को क्यों नहीं खोल पा रहा? बूचड़खाना बंद होने से भले ही निगम को घाटा हो रहा हो, लेकिन अधिकारियों व नेताओं की चांदी हो रही है। लेकिन इस तरह मीट की कटाई से पशु की मेडिकल जांच भी नहीं हो पा रहीं है और इससे संक्रमण फैलने का भी ख़तरा बढ़ गया है।


एक अहम सवाल यह भी है कि आखि़र मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के चुनें हुऐ जनप्रतिनिधि और नेता इतनी बड़ी समस्या पर क्यों खामोश हैं?’ एड. रईस अहमद ने दिल्ली सरकार और निगम से मांग की है कि ’बूचड़खाने को तुरंत खोला जाए ताकि जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई यूं बर्बाद न हो और अवाम को सही कीमत पर मीट मुहैय्या हो सके।’ और सरकार को जो अर्थिक नुकसान हो रहा है उसे भी रोका जा सके।


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