प्रधानमंत्री जब दुनिया में दावा कर रहे थे उस वक्त देश में दस लाख से अधिक कोरोना संक्रमित थे

संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि भारत ने कोरोना महामारी में 150 देशों को चिकित्सा और अन्य मदद पहुंचाई। देश में महामारी के आरंभिक दिनों से ही पीपीई किट, मास्क और सेनिटाइज़र तक को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। महानगरों के अलावा कहीं कोरोना जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। प्रधानमंत्री जब यह दावा कर रहे थे उस समय देश में दस लाख से भी अधिक संक्रमित थे और संक्रमितों की संख्या बढ़ने के कारण सरकारी अस्पतालों में जगह मिल पाना मुश्किल था।



लखनऊ । रिहाई मंच ने देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण पर चिंता जताते हुए कहा कि मीडिया में कोरोना संक्रमितों को सरकारी अस्पतालों में जगह न मिलने की शिकायतें महामारी से लड़ने की हमारी तैयारियों पर सवाल खड़ा करती हैं। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि देश में कुल संक्रमितों की संख्या ग्यारह लाख से अधिक और और प्रतिदिन संक्रमण चालीस हज़ार के करीब पहुंच गया है। 62 प्रतिशत से अधिक रिकवरी रेट के दावे के बावजूद सक्रिय संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। कई सरकारी अस्पतालों में जगह न होने के कारण कोरोना रोगियों को भटकना पड़ रहा है। वहीं निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च आम आदमी की पहुंच से बहुत बाहर है।


 मंच महासचिव ने कहा कि कोरोना संक्रमण को लेकर तमाम चेतावनियों की अनदेखी कर देश को घोर अंधविश्वास में ढकेलने की कोशिश की गई। सत्ता और सत्ताधारी दल से जुड़े कई नेताओं और संगठनों ने न केवल महामारी को साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया बल्कि इलाज के लिए गोमूत्र जैसे नुस्खे का धड़ल्ले के साथ प्रचार करते रहे। सत्ता से नज़दीकियों के कारण पुलिस प्रशासन ऐसे लोगों के खिलाफ अंधविश्वास फैलाने के आरोप में कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर सकता था।


उन्हेंने कहा कि जिस पुलिस प्रशासन को सरकार कोरोना योद्धा उपाधि देती है उसने सत्ता के इशारे पर महामारी के दौर में राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों को दमन अभियान के तहत ऐसे समय में जेलों में ठूंस दिया जब माननीय उच्चतम न्यायालय ने जेलों में भीड़ कम करने के निर्देश दिए थे। आज देश की जेलों में बड़े स्तर पर कोरोना संक्रमण फैल चुका है जिससे संक्रमित कैदियों के जीवन को खतरा पैदा हो गया है।


लॉक डाउन के दो महीने बाद भी प्रवासी मज़दूरों के पलायन की दुर्दशा और भूख-प्यास से होने वाली मौतों ने देश को हिला कर रख दिया। कोरोना काल में अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज करवा पाना लगभग असंभव होता जा रहा है।


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