अजनारा ली गार्डन और पैरामाउंट गोल्फ फारेस्ट सोसायटियों में अपराधियों के बढ़ते हौसलों के चलते सुरक्षा को लेकर प्रदर्शन

हाल ही में अजनारा ली गार्डन सोसायटी में सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए बदमाशों ने सोसायटी में घुसकर दो लोगों की हत्या कर दी। इससे यहां और आसपास के निवासी सकते में आ गए हैं और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उनमें रोष भी पाया गया। पता चला कि बिल्डर द्वारा मेन्टिनेंस और सुरक्षा के नाम पर तगड़ी रकम वसूलने के बावजूद सीसीटीवी कैमरे, प्रवेश द्वार, खाली पड़े फ्लैट्स को लेकर कोई खास चिंता नहीं है। कोई अपराधी कहीं से भी किसी जगह घुस कर यहां बैठकर नशा आदि कर सकता है या किसी जघन्य अपराध को अंजाम दे सकता है।



ग्रेटर नोएडा । दिल्ली एनसीआर में लोगों को सस्ता सुलभ आवास दिलाने में असफल रही सरकारों ने पिछले लगभग दो-तीन दशकों में प्राइवेट बिल्डरों को कंक्रीट के जंगल बनाने की छूट तो दी परंतु रेरा जैसे संस्थानों के गठन के बावजूद इनकी बेलगाम दौड़/भ्रष्टाचार/ठगी आदि पर न तो कोई अंकुश लग सका और न ही घर का सपना संजोए रखने वालों की मूलभूत समस्याओं पर ही कोई खास ध्यान दिया जा सका। यही वजह है कि आज दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा जैसे तेजी से विकसित होते शहर में ही अनेक बिल्डरों के ख़िलाफ़ कोर्ट की मेहरबानी से सेवा में कोताही के मामले चलने के बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं। 


हाल ही में अजनारा ली गार्डन और पैरामाउंट गोल्फ फारेस्ट जैसी सोसायटियों में अपराधियों के बढ़ते हौसलों के चलते जब सोसायटी वासी अपनी सुरक्षा को लेकर प्रदर्शन आदि के ज़रिए खुलकर सामने आए तब इन सोसायटियों की सुरक्षा सहित रखरखाव, खराब निर्माण, असुविधाओं आदि सहित अनेक अन्य खामियां भी उजागर हुईं।


सोसायटी वालों की मानें तो लोगों को आवास मुहैया कराने के नाम पर लगी प्रोपशॉप जैसी रियल स्टेट कम्पनियां येन केन प्रकारेण ग्राहकों को तमाम झूठे वादों के साथ हाउसिंग सोसायटियों के सुपुर्द करके उन्हें उनके भाग्य पर छोड़कर भाग खड़ी होती हैं और एक अदद फ्लैट की चाह में लगे लोग प्रायः सालों साल धक्के खाने पर मजबूर रहते हैं। और उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।


अव्वल तो यहां ज़्यादातर लोग जीवन भर की पूंजी सौंपकर अपने फ्लैट का कब्ज़ा पाने के लिए भटकते रहते हैं और जिन्हें तमाम कोशिशों के बाद आधा अधूरा कब्ज़ा मिल भी जाता है तो प्रोजेक्ट वाले फ्लैट का सभी काम जल्द पूरा करवाने का आश्वासन देकर गायब हो जाते हैं। इस प्रकार फायर सिस्टम, उखड़े प्लास्टर, खिड़की, दरवाज़े, लिफ्ट, सुरक्षा आदि जैसे बहुत से काम सालों साल लटके रह जाते हैं। गंदगी, आवारा कुत्तों और अपराधियों   के पौ बारह रहते हैं सो अलग। कई काम सालों साल पड़े रहने से बहुत से लोगों को मज़बूरी वश उन्हें अपने खर्च पर ही ठीक कराना पड़ता है। इस प्रकार सोसायटी के कर्मचारियों की मिली भगत से उनकी अतिरिक्त आय और रिश्वतबाजी का धंधा भी खुलकर चलता रहता है। पुलिस हो या कोई और सम्बंधित एजेंसी, प्रायः वो इन शिकायतों को मामूली समझकर इनकी ओर ध्यान ही नहीं देते और न ही इस तरह की किसी शिकायत को सुलझाने में उनकी रुचि ही रहती है।


इस प्रकार से जो लोग एक अदद छत की तलाश में अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर दिल्ली छोड़कर नोएडा आदि जैसी जगहों में शिफ्ट हुए, आज उनमें से ज़्यादातर खुद को ठगा हुआ मानकर अपने भाग्य को कोस रहे हैं और मेन्टिनेंस/सुरक्षा के नाम पर जेब ढीली करने के बावजूद प्रायः अपनी और परिवार की सुरक्षा को लेकर उनकी नींद उड़ी रहती है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

ग्रासरूट लीडरशिप फेस्टिवल में भेदभाव, छुआछूत, महिला अत्याचार पर 37 जिलों ने उठाये मुद्दे

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

घरेलू कामगार महिलाओं ने सामाजिक सुरक्षा का लाभ मांगा, कहा हमें श्रमिक का दर्जा मिले