कविता // मन और जीवन
विजय सिंह बिष्ट
मन जीवन दोनों हैं चंचल,
हर पल रंग बदलते रहते,
कभी खुशी से नाच हैं उठते,
पल में रोना धोना करते।।
एक नाव के दोनों नाविक,
अपने अपने पतवार चलाते,
कभी बीच भंवर में होते,
कभी किनारे आ टकराते।।
भिन्न भिन्न राहों के दोनों राही,
कैसे एक पथ पर मैं लाऊं,
बिपरीत दिशाओं वाले हैं,
कैसे मैं यह भेद मिटाऊं।।
मन करता अपनी मनमानी,
जीवन की है अलग कहानी,
मन रेगिस्तान में कमल खिलाता,
जीवन सत पथ का अनुगामी,
मन स्वपनिल गगन में उड़ता,
जीवन धरती का अदना प्राणी,
एक बिना पंखों का राजा,
जीवन कर्मो का अभिमानी।।
मन का घट इच्छा जल द्वारा,
बहुत कठिन होता है भरना,
मन तो चाहता है जीवन में,
सुंदर से सुंदरतम है बनना,
मन की इच्छा पूर्ण कभी हो,
बहुत कठिन है जीवन में करना।।
मन ने नहीं कभी मन का पाया,
जब जब उसने जिसे संजोया,
बरबस उसने उसे लुटता ही पाया,
मन और जीवन की अजब कहानी,
एक निर्जल बादल, एक में है पानी।।
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