सुखमय जीवन अच्छे मित्रों के संग


विजय सिंह बिष्ट


दोस्त दिलाएंगे लंबी उम्र की सौगात वास्तव में यह छोटी-सी टिप्पणी जीवन जीने की कला है। मनुष्य ही नहीं समस्त प्राणी आपस में मिलजुल कर रहना चाहते हैं। चींटियों का समूह हो या आकाश में उड़ते पक्षियों का कलरव एक दूसरे के साथ मित्रवत ही चलते हैं।जल बिहार करती मछलियां झुण्ड में तैरती हैं।भले ही हम सोचते हैं कि इनमें बाणी का अभाव है। फिर भी उनमें संदेश वाहन की पूर्ण संवेदना होती है।


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ईश्वर ने समस्त जीव जंतुओं में उसे वाणी और बुद्धि प्रदान की है।उसी के आधार पर सामाजिक संरचना का ढांचा तैयार हुआ है।जो विभिन्न धर्मों जातियों और सीमाओं में बंटकर अलग अलग देशों का नामांकन करता है। आज कोरोना काल में समाज के आपसी भाईचारे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिसका परिणाम तनाव, चिड़चिड़ापन बेचैनी ,स्ट्रोक और हृदय रोग को निमंत्रण देना है।  हम विगत दस पंद्रह सालों से पार्क में रामायण, महाभारत तथा धार्मिक ग्रंथों का वाचन और श्रवण किया करते थे।अपनी मित्र मंडली एक निश्चित समय पर आती और जाती थी।


कथा के श्रवण में हम भूल जाते थे कि हमें सांसारिक कुछ दुःख या सूख भी है। कभी कभार कुछ पारिवारिक चर्चाओं पर भी प्रसंग आते थे लेकिन उनका सरलतम निराकरण हो जाता था।यह कह कर कि यह घर घर की कहानी है समान विचारधाराओं का यह बृद्धजनों का मिलन एक सुख की अनुभूति करा दिया करता था। आज भी इस विपत्ति काल में कुछ लोग सुबह शाम जब हम मिलते हैं और गपशप हंसी ठठ्ठा लगाते हैं तब सभी अनुभव करते हैं कि हमें सुख की अनुभूति के साथ कोई तनाव होता ही नहीं है। कुछ रोगों का निदान योग और प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा ही हो जाता है। सत्संग और सत्संगति हमेशा फलदाई होती है। अस्तु खान-पान का होना ही पर्याप्त नहीं होता, दोस्ती का दायरा बढा कर शुद्ध ज्ञानार्जन करना भी आवश्यक है।
 सत्संग सतदर्शन है,
अकूत ज्ञान भंडार।
बिना सत्संगति के,
अपूर्ण अपने को जान।।


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