इतिहास बनते नहीं बनाये जाते हैं


लेखक > विजय सिंह बिष्ट 


महाभारत और रामायण की रचना वेद व्यास और तुलसीदास जी की एक अमूल्य रचनाएं हैं। जो हमारे देश ही नहीं विश्व में अपनी प्रसिद्ध को बनाए रखती हैं। रामचंद्र जी सतयुग में और कृष्ण त्रेता में पैदा हुए थे। लेकिन तुलसी की रामचरितमानस पंद्रहवीं शताब्दी में लिखी गई। रामायण के समस्त पात्रों का चित्रण तुलसीदास जी अपनी अभिव्यक्ति है।


जिसको उन्होंने अपनी लेखनी से सादृश्य रूप में संजीव चित्रित किया है।वह पाठक और श्रोता पर आज भी राम लीला मंचन की तरह  चित्रों को उकेर देता है। इसी प्रकार महाभारत में समस्त पात्रों और योद्धाओं का चित्रण  चित्रपट और टीवी पर चित्रित किया जाता है।


सूरदास जी रचित सूरसागर के पात्र भी कृष्ण लीलाओं का वर्णन उनकी दिव्य चक्षुहीन कल्पनाओं का अंकन करता है। उनके उद्भव भी गोपियों की विरह लीला कल्पना की उत्प्रेष्ठा को ही आमंत्रित करती हैं। पृथ्वीराज रासो चंद्र बरदाई भाट , मृगनयनी की कथा वस्तु लेखक की अपनी कल्पना और उनके कृतित्व को उल्लेखित करता है।आधुनिक हिंदी साहित्य के सृजन में मुंशी प्रेमचंद की कहानियां अपना अमूल्य छाप ही नहीं छोड़ती वरन तात्कालिक समय का जीता जागता चित्रण भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है।


महाकवि कालिदास का अभिज्ञान शाकुन्तलम उनकी दूरदृष्टी का परिचायक है महादेवी वर्मा, प्रकृति  सौंदर्य के उपासक सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाओं में भी समयानुभूति का ही दर्शन होता है। जमाने में गांधी नेहरू के भी गीत गाए गये, सुभाष बाबू, सरदार भगतसिंह के भी चित्र वीर हमीर के नाटकों का भी दौर चला। ऐसे ही उदाहरण हैं जो समय के साथ आते और कलांन्तरण में ओझल हो जाते हैं। वर्तमान माननीय मोदी जी का युग कहा जा सकता है।जो विकास की धुरी को चरम में ले जाने में सक्षम है। इतिहास के पृष्ठों में इसकी अंकना गौरवशाली  भाषा में अंकित होगी। ऐसी पूर्ण आशा उसके कार्य काल  समाप्ति पर जन मानस के हृदय में अंकित होगी। इतिहास बनते नहीं बनाये जाते हैं।आप चाहें गुलाम वंश से लेकर अशोक महान तक  ले लें,कार्यो की विवेचना पर ही आधारित होते हैं। आलोचक का भले कुछ भी दृष्टि कोण हो।


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