भाजपा नेताओं ने फालतु बयानबाजी न की होती तो केजरीवाल को दिल्ली में बहुमत के बराबर सीट नहीं मिलती


आरिफ़ जमाल


आज इस बात को लेकर एक बड़ा तबका खुश है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में तीसरी बार मुख्यमंत्री और दिल्ली में सरकार बन रही है । ध्यान रहे जिस पार्टी की कोई विचार धारा नहीं होती, कोई जड़ नहीं होती उसका कोई लंबा सफर भी नहीं होता । केजरीवाल और उनके अनेक विधायक पिछली सरकार में कितने विवादों में रहे हैं वह किसी से छुपा नहीं है । आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के विकास ,निर्माण,रोज़गार,महंगाई पर कितना काम या प्रयास किया है यह भी किसी से छुपा नहीं है। 


अरविन्द केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में साढ़े चार साल सिर्फ इस शिकायत और आलोचना में गुजार दिए कि दिल्ली के उप-राज्यपाल और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें काम नहीं करने दे रहे या उनके काम में रोड़ा अटकाया जाता रहा। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से छह माह पहले ही कैसे पूरी दिल्ली को वह सारी सुविधाएँ मिलने लगी या पूरी हो गई जिसका दावा केजरीवाल और उनकी पार्टी खूब ढोल नगाड़े बजा कर करने लगी। 


आम आदमी पार्टी का जन्म ही पार्टी के विरोध से हुआ है ।। इसकी विचार धारा यह है जब यह डूबने पर आएगी तो किसी भी दल की गौद में जा बैठेगी ।। आज दिल्ली में आम आदमी पार्टी के काम पर एक तरफा वोट नही पड़ा है यह बस भाजपा के विरोध में दिया गया समर्थन है ।। इसे कुछ इस तरह से समझा जा सकता है जैसे 2015 के चुनाव में भाजपा ने दिल्ली का मुख्यमंत्री का चेहरा किरण बेदी को उतारा था तो आम आदमी पार्टी को भाजपा के वोट भी पड़े थे ।।


अगर 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के आधा दर्जन नेताओं ने फालतु की बयानबाजी न की होती तो केजरीवाल को दिल्ली में बहुमत के बराबर सीट भी नहीं मिलती ।। भारत का बहुत बड़ा तबका जाति, धर्म, भाषा,क्षेत्र के नाम पर वोट नहीं डालता वह विकास ,रोज़गार जैसे मुद्दों पर वोट डालता है दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कितना काम किया वह दिल्ली वालों से और खुद केजरीवाल और उनकी पिछली 67 विधायक की टीम को मालूम है कि पानी,बिजली,पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सड़क,स्कूल,स्वास्थ्य पर कितना काम हुआ है और कितना करना बाकी है । अब केजरीवाल सरकार की असली परीक्षा शुरू हो गई है ।।।


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