देश भर में चेक वापसी के 40 लाख मुक़दमे न्यायालयों में लंबित

चेक वापिसी के मामलों के निपटारे में गुजरात में सबसे अधिक समय लगभग औसतन 3,608 दिन (10 साल से थोड़ा कम) लगता हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम औसत  967 दिन (लगभग दो साल और नौ महीने) लगते हैं जो सीधे तौर पर न्यायिक कहावत  "न्याय में देरी  न्याय का खंडन" का एक जीवित उदाहरण है, जो प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण के खिलाफ है। इन मामलों के निपटारे में हो रही देरी अदालतों की अक्षमता और  समय पर मुकदमों के निपटारे के  मौलिक अधिकारों का एक गंभीर उल्लंघन है। इस कारण से देश में नकद के लेन-देन, भ्रष्टाचार, नकली नोट जैसी प्रवृतियों को बढ़ावा मिलता है ! 



नयी दिल्ली -  कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने देश में  चेक वापिसी की संख्या में हो रही तेजी पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है के लिए सबसे महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दा बन गया है जिसके चलते देश में हो रहे व्यापार में चेक की साख कम हो गई है जबकि  देश में चेक बैंकिंग लेनदेन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।


कैट ने कहा है की चेक वापिसी के मामलों में न्यायालयों से न्याय प्राप्त करने के लिए देश में पूरे व्यापारिक समुदाय को बेहद लंबे समय तक कानूनी प्रक्रिया से जूझना पड़ता है लेकिन उसके बाद भी पैसा नहीं मिलता है ! कैट ने वित्त मंत्री को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 में संशोधन लाने के साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक तत्काल विकल्प के रूप में बाउंस चेक के मामलों के त्वरित निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का सुझाव दिया है।


श्रीमती सीतारमण एवं गोयल को भेजे पत्र में कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन  खंडेलवाल ने विधि आयोग की 213 वीं रिपोर्ट पर उनका ध्यान आकर्षित किया है जिसमें कहा गया है कि देश में  लगभग 40 लाख चेक बाउंस के मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालयों में लंबित मामलों में चेक बाउंस के मामले एक बड़ा हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि 20 जून, 2018 को न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने भी कहा कि अधीनस्थ न्यायालयों में 20 प्रतिशत से अधिक मामले बाउंस चेक से जुड़े हैं - जो कि दंड के साथ-साथ आर्थिक अपराध से संबंधित एक अपराध है और इन मामलों के मुकदमों के निर्णयों में तेजी लाने के लिए नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट अधिनियम की धारा 138 के तहत इन अपराधों के निस्तारण में तेजी आणि चाहिए !


 भरतिया और खंडेलवाल दोनों ने कहा कि सरकार द्वारा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 पर गौर करने की तत्काल आवश्यकता है और चेक जारी करने की साख को बहाल करने के लिए सरकार द्वारा प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। उपरोक्त  मामलों में कड़े प्रावधानों को रखने के लिए  इस अधिनियम में संशोधन लाने के अलावा कैट ने सुझाव दिया कि एक तात्कालिक उपाय के रूप में, सरकार को देश में प्रत्येक जिला स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना करनी चाहिए ताकि चेक बाउंस  मामलों का समयबद्ध तरीके से निपटारा किया जा सके।


 


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