इस संकट की घड़ी में सबकी रक्षा करना


मास्टर राधे कृष्ण जी एक सेवा निवृत्त अध्यापक है।जीवन के कई पड़ाव पार कर  परिवार का पालन-पोषण कर स्वयं ही करते आ रहे थे। कोरोना के प्रतिबंध के कारण दैनिक सुबह का भ्रमण और सांयकालीन सत्संग भी नहीं हो पा रहा था। बेमौसम की बरसात के कारण मार्च के अंत तक भी ठंड और गर्मी अपना प्रभा्व डाल ही रही थी। मास्टर जी सुबह दस बजे तक स्वस्थ थे। लेकिन दोपहर तक उन्हें तेज बुखार के साथ खांसी और ये कहिए कोरोना के मरीज के सारे लक्षण दिखाई देने लगे। परिवार में कोरोना का भय तो पहले ही बना था। अब तो मास्टर जी का बीमार होना और भी भयानक हो गया।


उनकी खटिया बाहर के कमरे में डाल दी गई। जहां उनके पालतू कुत्ते रोविन का रैन बसेरा था।यह बेचारा भी उन्हें नाली में गिरा पड़ा था। जब वह बहुत छोटा था।
"जाको राखे साइयां मार सके न कोय।"
मास्टर जी ने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला, नाम दिया रोविन। पीड़ित अवस्था में रोविन और मास्टर जी बाहर के कमरे में रात ब्यतीत कर रहे थे। दोनों बेटों और बहुओं ने दूरी बना ली साथ ही अपने बच्चों को भी उधर न जाने की मनाही कर दी। बुढ़िया बेचारी को भी जाने के लिए मना कर दिया। प्रातः 108नं0की सरकारी गाड़ी को सूचना देकर बुला लिया गया।सारे मुहल्ले में मा0जी के कोरोना संक्रमण की खबर फैल गई। लेकिन उन्हें देखने मिलने कोई नहीं आया। सबको अपनी जान प्यारी है । एक बुजुर्ग महिला अपने मुंह में कपड़ा बांधे या ये कहें अपनी साड़ी का पल्लू लपेट लाठी के सहारे मा0जी के घर आई और उनको ब्यथित हालत में देख कर मास्टर जी की धर्मपत्नी से बोली इनको कुछ खाना-पीना तो दो , पास नहीं जा सकती तो दूर से तो खिसका दो। अस्पताल में बिना खायेपिये दवा कैसे लेगा।


बहुरानियों ने खाना सास को पकड़ा दिया,उस बेचारी के हाथों और पांवों को जैसे लकुवा मार गया। पड़ोसन ने बुढिया को कहा डरती क्या है तेरा पति है मुंह बांध कर देआ, अपने आप खा लेंगे।
मास्टर जी जिनका दिल रो रहा था रुवांसे गले से बोले अच्छा हो कोई मेरे पास न आए।मेरा मन खाने को भी नहीं है। गाड़ी आ चुकी थी  मास्टरजी उठे घर की चौखट पर माथा टेका,माथे पर तिलक लगाकर गाड़ी में बैठ कर एक बार फिर अपने घर को निहारा गाड़ी चल दी। बुढ़िया ने देखा था मास्टर जी ने देहरी को चूमा था झट से पानी लेकर आई और चौखट को सात पानी से धो डाला। यह भय है अथवा आत्मरक्षा इसे देखकर भले इंन्सान की आत्मा नहीं रो रही थी किन्तु एक पालतू रोविन बिलख 
बिलख कर रोते गाड़ी के पीछे दौड़ रहा था। मास्टर जी देख रहे थे    गाड़ी आते ही मास्क पहने खिड़कियों से पोते पोतीऔर सिर ढका बहुएं देख रही थी।आंगन में बेटे काफी दूर मां के साथ खड़े थे। मास्टर जी बिचारों के भयानक तूफान में डूबे जा रहे थे। उनकी पोती उनकी ओर हाथ हिलाकर बायBye का इशारा कर रही थी,मानो जीवन के अंतिम क्षण का अलविदा कह दिया हो।
मास्टर जी अस्पताल में 14दिनों के परीक्षण काल में सहानुभूति के देव चिकित्सकों,उपचारिकाओं की चिकित्सा के फलस्वरूप पूर्णतः स्वस्थ घोषित कर छुट्टी दे दी गई।उनका धन्यवाद अभिवादन के बाद जैसे ही गेट पर पहुंचे, बेचारा रोविन मास्टर साहब पर लिपट लिपट कर चौदह दिन की अपनी प्रेम व्यथा प्रकट करने लगा। दोनों की आंखों में सावन भादों बरस रहा था। यह थी मनुष्य और पशु की गंगा यमुना तहज़ीब। बेटे अपनी लम्बी गाड़ी लेकर अस्पताल तो पहुंचे लेकिन तब तक मास्टर जी अपने प्रिय रोविन के साथ कहीं और ठौर ढूंढने निकल पड़े। जिसका पता ठिकाना किसी को नहीं था। परिवार के व्यवहार की कहानी तो फैल ही चुकी थी। लेकिन एटीएम के खोने का ग़म और खाये जा रहा था। इसलिए मास्टर साहब के फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर अखबार में छपवा दी थी।सूचना देने वाले को 40हजार रुपए इनाम की घोषणा भी ज्ञापन देखकर ऐसा लगता था कि मास्टर जी की मासिक पेंशन इतनी आती थी जिसको वे परिवार पर हंसते गाते लुटाया करते थे। भले ही उन्होंने ने अपना जीवन सादगी से बिताया था। मानवता की ये कहानी पालतू रोविन जैसे पशु पर टिकती है जो कृतज्ञ है कृतध्न नहीं। 


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