मंदिर एक बनाऊं मन में और बिठाऊं उसमें राम
सुषमा भंडारी
मंदिर एक बनाऊं मन में
और बिठाऊं उसमें राम
मात- पिता का स्नेह भरा हो
छू लूँ मैं नित- नित आयाम
मंदिर का श्रृंगार करूं मैं
मैली न हों दर- दीवार
प्रभु बिराजो मेरे मन में
और मन में हो केवल प्यार
शशी, भानु, धरती और अंबर
सब को पूजूं सब से प्रीत
पर्वत, सागर तरुवर सबका
नित नित गाऊँ प्रभु मैं गीत
सकल चराचर प्रियवर मेरे
कण कण में हैं राम मेरे
भोर के सूरज रात के चन्दा
हर शय में हैं राम मेरे
है सुषमा की यही कामना
भूले ना ये तेरा नाम
सत्य, अहिंसा और धर्म की
राह दिखाना मुझको राम
राह दिखाना मुझको राम
राह दिखाना मुझको राम
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