नामी पत्रकार के साथ कोई वारदात या कोई दुर्व्यवहार हो जाता है तभी एकता की चर्चा क्यों होती है

जब भी  किसी बड़े नामी पत्रकार, विशेषतः जब वह टी वी चैनलों या किसी बड़े समाचार पत्र समूह से सम्बद्ध हो, के साथ कोई वारदात या अन्य कोई दुर्व्यवहार हो जाता है तभी पत्रकारों की अखिल भारतीय एकता की चर्चा क्यों होती है। सभी पत्रकार संगठन व नेता एकता और आन्दोलन का आह्वान करने लगते हैं । ये सभी लोग उस समय पता नहीं किस बिल में समाये रहते हैं जब किसी लघु अथवा मध्यम श्रेणी के आंचलिक समाचार पत्र या उसके किसी पत्रकार के साथ कोई दुर्व्यवहार या अनुचित दबाव की स्थिति हो जाती है।


ऐसे समय में ये लोग पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होने की अपेक्षा विरोध में खड़े नज़र आते हैं । यही नहीं बल्कि जो सुविधाएं मूलतः लघु श्रेणी के समाचार पत्रों के पत्रकारों के लिए राज्य व केन्द्र सरकारों द्वारा, इस बात को दृष्टिगत रखते हुए दी गईं थीं कि लघु समाचार-पत्रों का प्रबन्धन देने में सक्षम नहीं होता, उन्हें भी धीरे-धीरे बड़े पत्रकारों द्वारा लिया जाने लगा है । इतना ही नहीं कालान्तर में तो लघु व आंचलिक समाचार पत्रों के पत्रकारों के लिए इन सुविधाओं का लाभ दिये जाने के औचित्य पर ही उंगली उठाई जाने लगी है ।


अब जबकि लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के अस्तित्व का संकट सामने मुंह बाए खड़ा है, सभी लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों के प्रबंधन तथा पत्रकारों के लिए आवश्यक है कि अपने भविष्य के लिए संगठित रूप से नीतियों पर विमर्श एवं चर्चा कर राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर पर ठोस नीति बनाएं, सरकारी नीतियों, नियमों और कानूनों की समीक्षा करें, तत्पश्चात लिये गये निर्णयों को सरकारों  से वार्ता कर एकजुट हो कर कार्यान्वित करें ।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

प्रदेश स्तर पर यूनियन ने मनाया एआईबीईए का 79वा स्थापना दिवस

वाणी का डिक्टेटर – कबीर