कोरोना किसी बंदीगृह से कम नहीं ,बाहर से गांव में लौट रहे बेबस लाचर

उत्तराखंड - कोरोना किसी बंदीगृह से कम नहीं ,बाहर से गांव में लौट रहे बेबस लाचर और घरों से भी रहित लोगों का जानने पूछने जो हाल है।वह चौदह दिन के बंदीगृह में सोचनीय ही नहीं विचारणीय भी है। जो लोग कोटद्वार में एक सप्ताह के लिए कोराना क्वारंन्टाइन सैंन्टर में रखे जा रहे हैं। उनकी सारी व्यवस्थाएं सरकार कर रही है। वहीं जो गांव पहुंच रहे हैं विद्यालयों में रखे जा रहे हैं उनका कहना है यहां पर प्रधान ग्राम सभा अथवा सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है।जब कि सरकार का आदेश है कि ग्रामसभाओं को धन मुहैया करा दिया गया है।



विजय सिंह बिष्ट 


लेकिन ऐसे लोग अपने पर ही निर्भर हैं। दूसरी ओर गांव के लोगों का भी ऐसे गरीब बेसहारा लोगों को सहायता देने का फर्ज बनता है। गांव में मंदिर का धन है, जहां वनपंचायत हैं उनके पास भी आय के साधन हैं सामूहिक रूप से मदद की जा सकती है। इनमें कुछ लोगों का यह कहना भी उचित है कि जब तक हम नौकरी पर थे  उस समय कितने ही बीमार लोगों को जिनको खून चाहिए थी हमने रक्तदान किया है और हर प्रकार का सहयोग किया ।


आज इस महामारी ने हमारा सब कुछ लुटा दिया हमें कोई पूछने वाला नहीं है। सरकार को वोट चाहिए और लोगों को अपने को बचाने के लिए हमारा खून। वास्तव में ये कटुसत्य सुनने में जहां अच्छा लगता है वहीं दायित्वों के निर्वहन में हम पीछे छूट जाते हैं।
सरकार से निवेदन है कि आपके द्वारा दी जाने वाली धनराशि का समुचित लाभ मिले और गांव के लोग कम-से-कम मंदिरों में चढाये पैसे को तो इन कोरोना के निर्धनों की सहायता में ईश्वर की ओर से अर्पण कर दें।


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