करोना: एक मानवीय त्रासदी    

आज करोना एक ऐसी महामारी बन चूका है जिससे समूची मानवजाति त्रस्त है। इस को अब एक बीमारी कहना काफी न होगा। इस ने समूची मानवजाति को प्रभावित कर दिया है. यहाँ यह कहना सही नहीं होगा की करोना  सिर्फ मानव स्वस्थ्य के लिया चुनौती है,  करोना  ने ना केवल स्वस्थ्य सम्बन्धी चुनौती दी है बल्कि बहुत सारे अन्य छेत्रों में भी अपना प्रभाव छोड़ा है. इसने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर एक अनोखी व्यवस्था को जन्म दिया है.  



आर्थिक क्षेत्र में तो इस का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है मगर इस के आलावा भी इस ने इंसानी रिश्तों को भी एक हद तक प्रभावित कर दिया है. आज हर व्यक्ति दूसरे को संशय की नज़र से देखता है, विवाद बढ़ रहे है और साथ ही सामाजिक जटिलताय भी. प्रवासी मज़दूरों के साथ भेद भाव के किस्से हम सब को पता है, मकान मालिककिरायेदारों के साथ सख्त व्यवहार कर रहे है और कम्पनिया अपने कर्मचारियों के साथ. 


 करोना ने अर्थव्यस्था को काफी नुक्सान पहुंचाया है, करोना  और उस के कारण  लॉकडाऊन  लाखों  लोगो को बेरोज़गार कर दिया। बहुत से बेघर हो गए तो लाखों की संख्या में लोग लम्बे रास्तों पर चलने को और दो जून की रोटी के मोहताज हो गए.  भारत में विशेषकर पिछले  4 महीने बहुत ही कठिनाई के रहे है. पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और उस के साथ ही करोना संबंधित विवाद भी.एक तरफ तो विवाद बढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ न्यायालयों का काम लगभग ठप्प सा है . करोना  का कुछ लोगो पर  सीधा असर पड़ा है तथा अन्य जन भी किसी ना किसी रूप में करोना से प्रभावित हुए हैं. 


ऐसी स्थिति में यह लगभग तय हैं की बहुत सारे आपसी विवाद जन्म ले. लगभग सभी देशों में कानून व्यवस्था यह बोझ झेल रही है। बहुत सारी लीगल फर्मस स्थिति से निबटने में लगी है. जिस प्रकार पुलिस , प्रशासन और डॉक्टर अपना धर्म निभाते हुए करोना  से जूझ रहे है उसी प्रकार सम्माज क़े  अन्य हिस्सों के लोग भी यथा संभव मदद पंहुचा रहे है. डॉक्टर किसलय पांडेय सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता है और करोना की लड़ाई अपने ढंग से लड़  रहे है. 


डॉक्टर किसलय पांडेय कहते है "बहुत से लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं और बहुत से अपने सर छुपाने की जगह. सरकार की दिशानिर्देश के बावजूद बहुत से लोगों ने  करोना  का हवाला दे कर नौकरी से निकाल दिया या  उनकी सैलरी कम कर दी, कुछ लोगों ने यह कहकर की रिस्क नहीं ले सकते उन्होंने अपने किरायेदारों को घर से निकाल दिया जिनमें बहुतसे लोग  करोना से लड़ने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे जैसे डॉक्टर वा नर्स." 


यह बहुत दुखद है क्योंकि जिस समय हम सबको मिलकर इस बीमारी से लड़ना है वहां हम आपस में भेदभाव कर रहे हैं औरो की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. करोना भेदभाव नहीं करता यह दुखद है इंसान करता है. ऐसे कठिन  समय में भी वह अपने छोटे छोटे फायदों के लिए दूसरे की परेशानी को नजरअंदाज कर रहा है, उसका शोशण कर रहा है। करना का असर हर देश हर जाति समाज पर साफ दिखाई दे रहा है, और जो भी समाज एकजुट हो कर नहीं लड़ेगा, हार जाएगा.


डॉक्टर किसलय पांडेय ने करोना पीड़ितों के लिए एक हेल्पलाइन की शरुआत की है, तथा जिन लोगो को करोना  के चलते कोई नुक्सान हुआ है उस के लिए वह बिना किसी सेवा शुल्क के उन को कानूनी मदद पंहुचा रहे है.इस हेल्पलाइन से  कोई भी व्यक्ति जिसके साथ करोना  के चलते भेदभाव हुआ अन्याय हुआ संपर्क कर सकता है और डॉक्टर पांडेय  उसकी कानूनी सहायता बिना किसी पारिश्रमिक लिए कर रहे है. 


"हमारे सामने सबसे अधिक मामले नौकरी को लेकर आए हैं, बहुत सी कंपनियों ने ग्राहक कम होने की वजह से या अर्थव्यवस्था की चरमराती स्थिति की वजह से अपने बहुत से कर्मचारियों की छटनी की है या फिर करोना का हवाला देकर सैलरी में कटौती की है. मिले दोनों बातें अवैध जिनको न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है. अधिक से अधिक कंपनियां कर्मचारियों के कुछ भत्ते काट सकती है मगर सैलरी नहीं. जो मालिक ऐसा करता है व ना केवल अपने कर्मचारियों के साथ अन्याय कर रहा है बल्कि देश के कानून के खिलाफ भी जा रहा है." उद्यमी और कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट से बंधे होते हैं जिसमें काम करने की शर्तें वा अदा  की जाने राशि दर्शाई जाती है. "हमारे देश में 'force  majeure' की कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं है. इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट जो किसी भी कॉन्ट्रैक्ट पर व्यवस्था देता है 'force  majeure'  पर खामोश है।" डॉक्टर पांडेय बताते है


 'यह एक ऐसा क्लोज होता है जिसमें कहा जाता है कर्मचारी- उद्यमी कॉन्ट्रैक्ट निरस्त माना जाय अगर स्थितिया विषम हो। ऐसी स्थिति में उद्यमी वेतन नहीं  दे पाएगा या उस को नौकरी से निकाल देगा।  यह स्थिति है  जैसे लड़ाई का फिर जाना  या भूकंप का आना. हालांकि यह क्लॉस पश्चिम के देशों में वैद्य है. मगर वहां भी यह बीमारी के बारे में उपयोग में नहीं लाया जाता. 


इसके आलावा इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट  आर्टिकल  56 है जो यह कहता है स्थिति इतनी खराब है की इस कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने के अलावा और कोई चारा नहीं है. और इस लिए मालिक अपने कर्मचारी को सेवा निवृत्त कर रहा है. ज्यादातर स्थितियों में फैसला न्यायाधीश करता है क्या परिस्थितियां सचमुच ऐसी हैं. और अक्सर फैसला कर्मचारी के पक्ष  में ही होता है.देखा जाय  तो यह खबर उन लोगों के लिए  उत्साह जनक है  जिन्हे करोना  का हवाला देकर   नौकरी से निकाल दिया गया. जहां किसी उद्योगपति  ने करोना  से हुए नुकसान को अपने कर्मचारियों के सिर मढ़ दिया.


"मगर दुख की बात यह है यह इतना आसान भी नहीं है जिसने कभी मुकदमा लड़ा है वह जानता है  कि भारत में न्याय पाने  की व्यवस्था काफी जटिल है, लंबी, खर्चीली और थका देने वाली है. इस विषम परिस्थिति में हम जो भी कर सकते हैं कर रहे हैं, " डॉक्टर किसलय पांडेय कहते है.  


मगर डॉक्टर किसलय पांडेय यही नहीं रुके उन्होने उन वकीलों के लिए भी आर्थिक सहायता का प्रबंध किया है जो करोना  की अन्य कारण  से आर्थिक तंगी का सामना कर रहे है. डॉ किसलय पांडेय ने इसी लक्ष को पाने के लिए वर्ल्ड जूरिस्ट वेलफेयर foundation की स्थापना की है जिस में कोई भी भारतीय वकील आर्थिक मदद के लिए आवेदन कर सकता है और राहत पा सकता है  वास्तव में देखा जाए तू करोना हम सबको एक मौका देता है जब हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठकर दूसरों के हित के लिए सोच सकें, जो दर्द में है उसको दिलासा दे सकें, शायद यही फर्क है इंसानों और करोना और हम इंसानो में, हम एकदूसरे की मदद कर सकते हैं मगर शायद करोना ऐसा नहीं कर सकता!


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