टीवी चैनलों की तुलना में रेडियो पर न्यूज सुनना ज्यादा बेहतर :पत्रकार मार्क टुली

टीवी चैनलों के मालिक और उनके सहयोगी ज्यादा से ज्यादा दर्शक पाने के लिए जुनूनी होते हैं और इसलिए वे इसके प्रसारन से जुड़े नियम से कभी-कभी हट भी जाते हैं। टीवी समाचार में अलग विचार का पालन होता हैं। मैं रेडियो में बहुत दृढ़ता से विश्वास करता हूं। अब भी, अगर मैं मनोरंजन करना चाहता हूं तो मैं अक्सर टेलीविजन की बजाय रेडियो की ओर रुख करता हूं।




कोलकाता: ऑक्टोजेरियन पत्रकार मार्क टुली ने टीवी चैनलों पर सनसनीखेज घटनाओं पर दिन भर चलने वाले सिलसिलेवार कवरेज पर नाराजगी जतायी। उन्होंने कहा कि भारत में कुछ घटनाओं को इतने बड़े आकार में दिखाया जाता है, जैसा काफी बड़ा मामला हो और कुछ मामलों को इतना छोटा दिखाया जाता है, सबकुछ ऐसे पेश किया जाता है जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। मुझे लगता है कि आपके पास मीडिया ट्रायल की छूट है, इसका मतलब यह नहीं कि किसी व्यक्ति को दोषी बना दिया जाये। काफी बार व्यक्ति को दोषी नहीं पाया जाता है, लेकिन हम उस बारे में अपना ध्यान दोबारा नहीं ले जाते। मैं अक्सर टीवी पर समाचार बुलेटिनों से खुद को दूर कर लेता हूं, क्योंकि वे उसी तरह के सनसनीखेज कवरेज को दिखाते हैं जो उस दिन की बड़ी खबर होती है, हालांकि इसकी कोई पृष्ठभूमि नहीं होती। सर मार्क टली ने यह भी कहा कि, हमे यह भयावह और दु:खद लगती है कि एक "सेवारत पुलिस फोर्स" के बजाय एक "दासी पुलिस फोर्स" की औपनिवेशिक प्रथा भारत में धीरे-धीरे चालू हो रही है।


कोलकाता की सुप्रसिद्ध सामाजिक संस्था प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक घंटे के ऑनलाइन वेबिनास सत्र ‘टेट-ए-टी’ में तीन दशकों तक दक्षिण एशिया में बीबीसी की आवाज़ रहनेवाले सर विलियम मार्क टुली ने कोलकाता में अपने बचपन की यादों को ताजा किया, क्यों कि यह उनका जन्म स्थान रह चुका है। उन्होंने करी बनाने को लेकर अपने विचार साझा किया, इसके साथ यहां के रेडियो और रेलवे के प्रति उनका प्रेम और लगाव को भी साझा किया। इस चर्चा सत्र में लंदन से जुड़ी कन्वेंशनिस्ट लेडी मोहिनी केंट नून के साथ वैचारिक आदान प्रदान के दौरान सर विलियम मार्क टुली ने पत्रकारिता, मीडिया ट्रायल, भारत में पुलिसिंग, औपनिवेशिक विरासत और महिलाओं की दुर्दशा से जुड़े कुछ प्रमुख मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी।


मार्क टुली ने समझाया, टीवी चैनलों के मालिक और उनके सहयोगी ज्यादा से ज्यादा दर्शक पाने के लिए जुनूनी होते हैं और इसलिए वे इसके प्रसारन से जुड़े नियम से कभी-कभी हट भी जाते हैं। टीवी समाचार में अलग विचार का पालन होता हैं। मैं रेडियो में बहुत दृढ़ता से विश्वास करता हूं। अब भी, अगर मैं मनोरंजन करना चाहता हूं तो मैं अक्सर टेलीविजन की बजाय रेडियो की ओर रुख करता हूं।


1935 में पद्म श्री और पद्म भूषण के प्राप्तकर्ता सर मार्क टुली ने तीन दशक (1964 से 94) तक के करियर में एक पत्रकार के रूप में उपमहाद्वीप में सदी के कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को कवर किया था। बीबीसी संवाददाता के रूप में उन्होंने भारत-पाक संघर्ष, शिमला शिखर सम्मेलन, भोपाल गैस त्रासदी, आपातकाल लगाने, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, सिख विरोधी दंगों, राजीव गांधी की हत्या, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और कई अन्य बड़ी घटनाओं को उन्होंने सफलतापूर्वक कवर किया। वह 20 वर्षों तक नई दिल्ली में बीबीसी के ब्यूरो प्रमुख भी रह चुके हैं।


भारत में मौजूदा औपनिवेशिक विरासत पर टिप्पणी करते हुए मार्क टुली ने कहा, भारतीय जीवन में अभी भी बहुत सारी औपनिवेशिक विरासतें हैं। यहां पुलिसकर्मियों से काफी ज्यादा हड़ताली है जो समाज की प्रगति के लिए नुकसानदायक हैं। पुलिस बल दो प्रकार के होते हैं, दासी और सेवारत प्रवृति। दासी पुलिस बल की सर्वोच्च प्राथमिकता कानून और व्यवस्था बनाए रखना है और सेवारत पुलिस बल का काम जनता की सेवा करना है। औपनिवेशिक शासन में भारत में दासी पुलिस बल था जो सरकार का समर्थन करता था चाहे वह सही हो या गलत, कानूनी हो या अवैध। मौजूदा स्थिति के मुताबिक भारत को एक सेवारत पुलिस बल की आवश्यकता है, जो समाज की जरूरतों के हिसाब से समाज के लोगों की सेवा में तत्पर हो।


उन्होंने आगे कहा, हाल ही में एक पुलिस की एक भयानक तस्वीर सामने आयी जिसमें बेरहमी से सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई एक लड़की के परिवार द्वारा मना करने के बावजूद पुलिस ने उसके परिवार को दाह संस्कार में शामिल होने से रोक दिया और खुद पीड़िता का शव रात के अंधेरे में जला दिया। हमने यह भी देखा कि पुलिस अधिकारी किस तरह से पीड़िता के परिवार से बात कर रहे थे। समाज के लिए यह एक भयानक दृश्य था, क्योंकि उस समय समाज के सामने एक पूर्ण दासी पुलिस का चेहरा सामने आया था। वैसे हर कोई भारत में पुलिस से डरता है, कोई भी पुलिसकर्मी को उनकी मदद करने के लिए नहीं कहना चाहता है, इस तरह की स्थिति से यह स्पष्ट है।


मार्क टुली ने अपने जीवन की कुछ और यादें ताजा करते हुए कहा कि, मुझे दार्जिलिंग के एक ब्रिटिश बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था। मैं वास्तव में सफेद रंग के एक छोटे से तालाब में पैदा हुआ था क्योंकि हमारा पूरा जीवन सफेद था। हमारा कोई भारतीय मित्र नहीं था। मुझे बचपन में हिंदी सीखने का सौभाग्य नहीं मिला।


रेलवे में स्टीम इंजन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, जिसे मै कवर करने जा रहा था उस बड़े और विशाल दूरी के इस परिवहन के साधन से मै हमेशा मोहित था। मुझे स्टीम इंजन पसंद हैं इसके कारण मैं इंडियन स्टीम रेलवे सोसाइटी का उपाध्यक्ष भी बना। मुझे लगता है कि भाप इंजन एक इंसान की तरह काफी बहुत मनमौजी हैं, इसे अच्छी तरह से ड्राइव करना काफी मुश्किल है, आपको उनमें बहुत सारी अलग-अलग चीजों के बारे में जानकारी रखनी होगी। लेकिन एक भाप इंजन की गति का दृश्य काफी शानदार होता है।


यह पूछे जाने पर कि वह अभी भी अपने शानदार जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं, इस सवाल के जवाब में नौ किताबों के लेखक मार्क टुली ने कहा, "मैं एक और किताब लिखना चाहता हूं, क्यों कि इसे लिखकर इसके जरिये अपनी हिंदी को सुधारना मेरे दिल की सबसे बड़ी ख्वाइस है।"


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