हमें अब प्राकृतिक आपदाओं पर चिंता नहीं होती हैं, इसे हमने अब रूटीन का हिस्सा मान लिया


० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय संचार ब्यूरो के शिमला स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने एक वेबीनार का आयोजन किया। जिसमें बतौर मुख्य वक्ता पद्म भूषण से सम्मानित डा. अनिल प्रकाश जोशी ने भाग लिया। कार्यक्रम में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (उत्तरपूर्वी क्षेत्र) के अपर महानिदेश राजेंद्र चौधरी, राजकीय डिग्री कॉलेज चंबा के सहायक प्रोफेसर अविनाश पाल ने अपने वक्तव्य दिए। डॉ. जोशी ने बिगड़ते पर्यावरण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पहाड़ टूट रहे हैं और प्लास्टिक के पहाड़ बन रहे हैं।बीते एक दशक में हिमालय ने बहुत कुछ झेला है, जिसका खामियाजा हम अब बाढ, सूखा, भूस्खलन इत्यादि के रूप में चुका रहे हैं।

 ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि प्रकृति को लेकर अब हमारा चरित्र और आदतें बदल गई हैं। उन्होंने कहा कि अब हमें प्राकृति आपदाओं पर चिंता नहीं होती हैं। इसे हमने अब रूटीन का हिस्सा मान लिया है। उन्होंने कहा कि हम आज प्राकृति के विनाश के मुहाने पर खड़े हैं। डा. जोशी ने कहा कि सरकारें जैसे जीडीपी यानी ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडॅक्ट के लिए काम करती हैं वैसे ही उसे अब जीईपी यानी ग्रॉस एनवॉयरमेंट प्रोडॅक्ट पर भी काम करने की जरुरत है, जिससे प्राकृति का संरक्षण किया जा सके। कार्याक्रम का संचालन केंद्रीय संचार ब्यूरो शिमला के प्रभारी और क्षेत्रीय प्रदर्शनी अधिकारी अनिल दत्त शर्मा ने किया। इस मौके पर केंद्रीय संचार ब्यूरो चंडीगढ़ की उप निदेशक सुसपना बट्टा, सहायक निदेशक श्रीमती संगीता जोशी और केंद्रीय संचार ब्यूरो चंडीगढ़ के अंतर्गत आने वाले तमाम क्षेत्रीय कार्यालयों ने प्रतिभाग किया।

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