दिल्ली के पुराने सचिवालय व विधान सभा की अनकही कहानी

० विनोद तकियावाला ० 

विश्व के प्रजातंत्र की जननी भारत,भारत की राजधानी दिल्ली हमारी ऐतिहासिक विरासत को अपनी दिलोजान से संजोय व संवार कर रखने वाली दिल्ली।जी हाँ मै दिल बालों की शहर दिल्ली की बात कर रहा हूँ ' इन दिनों सभी के जुबान पर एक चर्चा है कि अपना देश भारत अपनी आजादी का 75 वर्ष पुरे करने जा रहा है।इस अवसर पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।केन्द्र सरकार द्वारा पुरे बर्ष चले वाले सरकारी कार्यक्रम आयोजित किये गये।केन्द्र सरकार ने इस वर्ष को अमृत महोत्सव को अमृत काल से नबाजा है। वही केन्द्र की सरकार ने हर घर तिंरगा ,तो दिल्ली की सरकार द्वारा हर हाथ तिरंगा का नारा दिया जा रहा है।दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के विभिन्न जगहों पर 166 फीट का 500 तिरंगा फहरा कर नया इतिहास रचते हुए एक नारा दिया है कि इण्डिया को न०1बनाना है।
यह तभी सम्भव है।जब सभी भारत वासी अपने राष्ट्र धर्म का निर्वाह करेंगें।राष्ट्रप्रेम के रंग में अपने आप को सराबोर कर उन स्वतंत्रता के वीर वॉकूरों को याद किया जाय।स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी के उन गुमनामी शहीदों को याद कर भाव पूर्ण श्रद्धांजलि दी जाय।इसी क्रम में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उन गुमनामी की कहानी का जीता जागरण दिल्ली की कुछ ऐतिहसिक धरोहर आज भीअपनी बेजुबानी से एक अनकही कहानी कह रहा है।जररूत है उस जगह जा कर कुछ पल विताने की है।उसके बारे जानने की।ऐसे आज मै आप के दिल्ली के एक ऐतिहासिक जगह के बारे में बताने जा रहे है।हो सकता है डिआप में से कुछ लोग ये जानते होगे।दिल्ली का पुराना सचिवालय ,जहाँ दिल्ली का विधान सभा भी है।दिल्ली के विधान सभा की ऐतिहासिक यात्रा की कुछ कही,कुछ सुनी,कुछ अनकही यह कहानी है। 

इस संदर्भ मे मुझे विधान सभा के परिसर में आयोजित एक हास्य कवि के दौरान दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष राम निवास गोयल के द्वारा दिये गये उद्बोधन के दौरान पता चला कि दिल्ली के पुराने सचिवालय व विधानसभा का अपना ऐतिहासिक इतिहास है। अध्यक्ष के अनुसार दिल्ली विधान सभा का गठन पहली बार 7 मार्च 1952 को गवर्नमेंट ऑफ पार्ट सी स्टेट्स एक्ट,1951 के तहत किया गया था । जिसका उद्घाटन तत्कालीन गृहमंत्री के एन काटजू ने किया। दिल्ली के इस नवगठित विधानसभा में कुल 48 सदस्य थे, तथा दिल्ली के मुख्य आयुक्त की सलाहकार भूमिका में एक मंत्रिपरिषद का गठन किया गया ' हालाकि इस मंत्रिपरिषद को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गर्ड थी।पहली मंत्रिपरिषद का नेतृत्व चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने किया,जो वाद में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने।हॉलाकि सन1953 में स्थापित राज्य पुनर्गठन आयोग ने राज्यपुनर्गठनअधिनियम1956 के माध्यम से संवैधानिक संशोधन का नेतृत्व किया,जो1नवंबर 1956 को लागू हुआ।

इसका मतलब था कि दिल्ली अब एक पार्ट-सी राज्य नहीं था और इसे एक संघ बना दिया गया था।भारत के राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के अधीन क्षेत्र होने के साथ ही दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद को एक साथ समाप्त कर दिया गया।इसके बाद दिल्ली नगर निगम अधिनियम सन1957 अधिनियमित किया गया।परिणान स्वरूप दिल्ली नगर निगम का गठन हुआ।सन 1966 के सितंबर माह में"दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट1966" के साथ विधानसभा की जगह दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने 56 निर्वाचित और पांच मनोनीत सदस्यों के साथ दिल्ली के उपराज्यपाल को इसके प्रमुख के रूप में बदल दिया।हालाँकि परिषद के पास कोई विधायी शक्ति नहीं थी,केवल दिल्ली के शासन में एक सलाहकार की भूमिका थी।

यह व्यवस्था सन 1990 तक कार्य करती रही।इस परिषद को अंतत संविधान के 69वें(उनसठवेंसंशोधन)अधिनियम1991 के माध्यम से दिल्ली विधान सभा द्वारा प्रतिस्थापित किया गया,इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 की सरकार द्वारा भारत के संविधान में 79 वाँ (उनहत्तरवां) संशोधन किया गया,जिसने घोषणा की केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के रूप में जाना जाता है और यह विधान सभा और मंत्रिपरिषद और संबंधित मामलों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का पूरक है। विधान सभा का चयन पाँच साल की अवधि के लिए किया जाता है आजादी के अमृत महोत्सव सम्पूर्ण देश मनाया जा रहा है। आज हम जिस खुली हवा में सांस ले रहे हैं,उस खुली हवा को देने के लिए अनगिनत लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर दी ,उन्हें ना

केवल याद करना है बल्कि उनके सपनों को पुरा करना है।आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा अनेकों कार्यकम आयोजित की जा रही है। मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल नें इसी क्रम में विगत दिनो दिल्ली विधान सभा परिसर में पुनर्निमित फांसी घर का भी उद्घाटन किया गया है।यह फांसी घर अंग्रेजों के जमाने का है।यह विधानसभा काफी पुरानी है।यह अंग्रेजों के जमाने का स्ट्रक्चर है।किसी को पता नहीं था कि यहां पर फांसी घर है।सिर्फ लोग कहते थे कि यहां एक फांसी घर है।किसी ने ताला तोड़कर उसके अंदर जाने की हिम्मत नहीं की।विधानसभा अध्यक्ष ने ताला तुड़वाया और अंदर गए तब देखा कि किस तरह से एक साथ दो लोगों को फांसी देने का सिस्टम बना हुआ है।एक बार तो देखकर दिल दहल जाता है।

आप जब कल्पना करने की कोशिश करते हैं कि किस तरह से हमारे वीरों को यहाँ पर फांसी दी जाती होगी,तो बड़ी घबराहट सी होती है। आज हम जिस खुली हवा में सांस ले रहे हैं,उस खुली हवा को देने के लिए कितने अनगिनत लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर दी अंग्रेजों के शासन काल एक कोर्ट लगता था। विधान सभा परिसर में एक फांसी घर है।जिसका गुप्त सुरंग से लाल किला तक है।लाल किले के अन्दर कैद किये गये स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी को कैदी बना कर रखा जाता था।ना जाने ऐसे ही देश भर में कितने फांसी घर होंगे,जहां पर अनगिनत लोगों को फांसी पर लटकाया गया,उसकी अनगिनत शहादत के बाद हमें यह आजादी मिली है।आज आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर उन सब लोगों को भी याद करने का मौका है,जिन लोगों ने हमें आजादी दिलाने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी। हमारा फर्ज बनता है कि हम सब लोग मिलकर ऐसा भारत बनाएं,जो अपनी शहादत देने वाले लोगों का सपना था। अभी यह कहते हुए आप से विदा लेने का वक्त आ गया है कि-ना ही काहूँ से दोस्ती,ना ही बैर।खबरीलाल तो माँगे,सबकी खैर ॥

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