भ्रष्टाचार की नीव पर खड़ा टूविन टॉवर चंद सेकेण्डों मे धराशाही

० विनोद तकिया वाला ० 

नयी दिल्ली - भारतीय इतिहास के पन्नों 28 अगस्त 22 का यह दिन नया अध्याय के जुड़ गया।इस दिन को आने वाले पीढ़ी याद कर कुछ सोचने,सीखने के मजबूर होगा ! बचपन से हम व आप एक कहावत सुनते आ रहे कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है।भौतिकबादी इस युग में आधुनिक मानव र्निमाण करते करते स्वंय विध्वंस को भी आमंत्रित करता है।भले वह अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए गलत तरीके व अपराध-भ्रष्टाचार का सहारा क्यूं ना लेना पडे।कुछ ऐसा ही सपना एक बिलडर के सी ई ओ ने नोएडा प्राधिकरण की मिली भगत से अपने एक प्रोजेक्ट में अपने ग्राहको को आसमान से धरती को निहारने के हसीन ख्वाब ना केबल दिखाया ब्लकि भष्टाचार के बुनियादी पर दिल्ली के कुतूब मीनार से 103 मीटर ऊंची दो ईमारत खडी कर दी।लेकिन उपर वाले को यह मंजूर नही थी। यह प्रोजक्ट कानून दॉव पेज की गुथ्थी में ना केवल उलझनी गयी बल्कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में बिलडर क खिलाफ फैसला दिया।माननीय उच्चतम न्यायालय ने दोनों इमारतों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
सारी प्रकिया पुरी होने के बाद पुर्व निधारित तिथि व समय पर पलक झपकते ही जमीदोश कर दिया गया।भ्रष्टाचार की नींव पर खडी दोनो टॉवर जो गगन से बात कर रहे थे।इनका गुमान बारूद के साथ धुआं बनकर फिजाओं में गुम हो गया।आप को बता दे कि दोनों टॉवरों को ध्वस्त करने के लिए 3,700 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। घटनास्थल पर प्रेस कवरेज करने वाले प्रत्यक्ष दर्शी के अनुसार आसपास की सोसायटियों के कई घरों की खिड़कियों के शीशे टूट गए।जैसे भूकंप आ गया।तेज आवाजऔर धूल के गुबार को देखकर ऐसा महसूस हुआ,जैसे पूरा इलाका ही मिट्टी में मिल गया। हालाकिट्विन टॉवरों को गिराने के लिए पूर्व तैयारी की गई थी।इसके लिए लगभग छह महीने तक गहन रिसर्च किया गया ।चेन्नई के आई आर्ड टी विशेषज्ञों की टीम के साथ एडिफिस कंपनी और साउथ अफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड की टीमों ने दिनों रात मेहनत कर रही थी।कई दिनों के मॉक ड्रिल के बाद एडिफिस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट से डिमॉलिशन के लिए और वक्त की मांग की थी।टीम को भी यह महसूस हो गया था कि वह इस काम को जितना आसान मान रहे थे, उतना है यह नहीं।विशेषज्ञों की टीम की गहन अध्यन के वाद दोनों टॉवरों को सुरक्षित गिराने के लिएअतिरिक्त विस्फोटकों का इस्तेमाल करने का फैसला किया।

आखिकार वह इम्तियान की वह घड़ी दक्षिण अफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड, भारत की एडिफिस कंपनी व चेन्नई के आई आई टी विशेषज्ञों के लिए आ गया।दक्षिणीअफ्रीका की जेट डिमॉलिशन प्राइवेट लिमिटेड के र्निदेशक जो बिक्समैन,आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञ और भारत की एडिफिस कंपनी के इंडियन ब्लॉस्टर चेतन दत्ता,परियोजना के अभियंता मयूर मेहता और उत्कर्ष मेहता की धड़कनें बढ़ने लगी जैसे 28 अगस्त-2022, दिन रविवार को घड़ी की सूई दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर पहुंची,एक सायरन बजा।एडिफिस के इंडियन ब्लास्टर चेतन दत्ता ने रिमोट का बटन दबाया।फिर तीन सेकेंड के भीतर दो जोरदार धमाके हुए।भ्रष्टाचार के बुनियाद पर खड़ी ‘रावण व मेघनाद ' गगन से बात कर रही दो इमारतें को धरती ने अंहकार को अपने आगोश में ले लिया। सर्व विदित रहे कि

नोएडा के सियान और एपेक्स टावर में विस्फोट के दौरान प्राइमरी और सेकेंडरी विस्फोट के बीच तीन सेकेंड का अंतर था। विस्फोट के 9 सेकेंड के भीतर दोनों टावर मलबे में तब्दील हो गए।ट्विन टावरों के जमीन पर गिरने के साथ ही धूल के गुबार ने आसमान को छूने की कोशिश की। प्रत्यक्ष दर्शी के अनुसार लगभग 10 किलोमीटर दूर तक देखा गया।हालाकि नोएडा प्राधिकरण ने धूल से बचाने के लिए आसपास के सोसायटी को प्लास्टिक की शीट से कवर किया गया था।नोएडा के सेक्टर-93 ए स्थित एमराल्ड कोर्ट व एटीएस विलेज सोसायटी में रहने वाले लोगों को अपने वाहनों के साथ परिसर को सुबह 7 बजे ही खाली करा दिया गया था।

दोनों टॉवरों को ध्वस्त करने के लिए 3,700 किलोग्रामविस्फोटक का इस्तेमाल किया गया।धमाके से आसपास की सोसायटियों के कई घरों की खिड़कियों के शीशे टूट गए।गगनचुंबी इमारतों के गिरते ही लगा,जैसे भूकंप आ गया।तेज आवाज और धूल के गुबार को देखकर एक बारगी महसूस हुआ,जैसे पूरा इलाका ही मिट्टी में मिल गया।इस मिशन को सफल बनाने के लिए सुरक्षा के लिए एक्सप्लोजन जोन में 560 पुलिसकर्मी,रिजर्व फोर्स के 100 जवान और चार त्वरित टीम के अलावा एनडीआरएफ टीम को तैनात किया गया था।दोपहर 2.15 बजे नोएडा-आगरा एक्सप्रेस-वे को यातायात बंद कर दिया गया।आधे घंटे बीतने और धूल हटने के बाद पुनःइसे चालू किया गया।डिमॉलिशन के मद्देनजर ट्विन टावर के पास की दो सोसायटी में रसोई गैस और बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई थी।

धूल के नुकसान से आम लोगों को बचाने के लिए 15 स्मॉग गन लगाई गई थी।हवा में प्रदूषण मापने के लिए छह एयर क्वालिटी इंडेक्स मशीनें लगाई गईं थीं।इसके अलावा किसी अप्रिय घटना से निपटने के लिए शहर के छह हॉस्पिटल को स्टैंड बाय पर रखा गया था। किसी आपातकाल के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए थे।मौके पर एम्बुलेंस की भी तैनाती की गई थी। नोएडा के ट्विन टावर के ध्वस्तीकरण पर जिला प्रशासन भी अलर्ट मोड पर रहा। खुद डीएम सुहास एलवाई और ज्वाइंट कमिश्नर लव कुमार मौके पर मौजूद थे।

ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 18 करोड़ रुपये का खर्च आया है।जो सुपरटेक को ही उठाना है।इसके पहले कुल 950 फ्लैट्स के इन दो टावर्स को बनाने में सुपरटेक 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है।गिराने का आदेश जारी होने से पहले इन फ्लैट्स की बाजार मूल्य बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। ये वैल्यू तब है, जबकि विवाद बढ़ने से इनकी कीमते कम हो गई थी।सुपरटेक ने इस नुकसान से बचने की भरसक कोशिश की। कोर्ट में तमाम तरह की दलीलें दी थीं, जिसमें एक टावर गिराकर वहां दूसरे को खड़े रहने का विकल्प भी सुझाया था।लेकिन सुप्रीम अदालत ने उसकी सभी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया था।

ट्विन टावर्स में 711 ग्राहकों ने फ्लैट बुक कराए थे। सुपरटेक ने 652 ग्राहकों के साथ सेटलमेंट कर लिया। लेकिन,अभी 59 लोगों को धन वापसी का इंतजार है। जबकि रिफंड के लिए 31 मार्च-2022 की अंतिम तारीख तय की गई थी।बुकिंग की रकम और ब्याज मिलाकर रिफंड का विकल्प तय किया गया था।जिन लोगों को बदले में सस्ती प्रॉपर्टी दी गई,उनमें सभी को अभी तक बाकी रकम नहीं मिली है। इंसोल्वेंसी में जाने के बाद मई में सुपरटेक ने कोर्ट को बताया था कि उसके पास रिफंड करने के लिए पैसा नहीं है।

आप के संज्ञान में लाना चाहता हूँ कि साल,2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया था लेकिन, इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले से इस प्रोजेक्ट में विवाद की नींव भी पड़ गई। 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया। एफएआर बढ़ने से अब उसी जमीन पर बिल्डर ज्यादा फ्लैट्स बना सकते थे। इससे सुपरटेक ग्रुप को यहां से बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई।यहां तक भी एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के बायर्स ने किसी तरह का विरोध नहीं किया, लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिली, तब फिर होम बायर्स का सब्र टूट गया।

बायर्स ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की, लेकिन बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया। तब बायर्स ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की। वहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली। एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में सीआरपीएफ के रिटायर डीआईजी यूबीएस तेवतिया, हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस आरके गुलाटी, एमके जैन और रवि बजाज, एसडी सक्सेना और आरब्ल्यूए के प्रथम अध्यक्ष रवि कपूर शामिल रहे। इनका कहना था कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी थी। उनका आरोप था कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा गया कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी। जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है। इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया।बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया था।

किसी तरह का रास्ता दिखाई न देने के पर साल, 2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए और पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही बताया गया। तेवतिया का कहना था कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया।इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे, लेकिन वहां से भी नक्शा नहीं मिला।इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया, लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला।बायर्स का आरोप था कि इन टावर्स को बनाने में नियमों को ताक पर रखा गया है।सोसायटी के निवासी यूबीएस तेवतिया का कहना था कि टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है।इस संदर्भ में फायर ऑफिसर ने कहा था कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए,लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टॉवर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी।इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया।16 मीटर की दूरी का नियम इसलिए जरूरी है क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवा,धूप रुक जाती है।इसके साथ ही आग लगने की दशा में भी दो टावर्स में कम दूरी होने से आग फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।निवासियों का आरोप था कि नए नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया।

नोएडा समेत देशभर में ना जाने कितने ही ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं,जहां वर्षों बीत जाने के बाद भी र्निमाण काम पूरा नहीं किया जा सका है।सुपरटेक के कई प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं,जहां पर टॉवर के चंद फ्लोर ही कई साल में बन पाए हैं,लेकिन एपेक्स और सियाने के मामले में कुछ अलग ही देखने को मिला। वर्ष-2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं, लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज का निर्माण पूरा कर दिया।इसके लिए रात दिन यहां पर काम करने का आरोप भी सोसायटी के निवासी लगा रहे थे। साल, 2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें गिराने का आदेश दिया, तब जाकर 32 मंजिल पर ही काम रुक गया।काम न रुकने के मामले में ये टावर्स 40 और 39 मंजिल तक बनाए जाने थे।अगर ये टावर दूसरे रिवाइज्ड प्लान के मुताबिक 24मंजिल तक रुक जाते तो भी ये मामला सुलझ जाता, क्योंकि ऊंचाई के हिसाब से दो टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता।यहाँ पर हमारे व आप के मन सवालों का उठाना स्वाभाविक है कि जब भी किसी अवैध या अनधिकृत निर्माण को प्रशासन की ओर से ढहाया जाता है तो सरकार इसके पक्ष में तर्क देती है।

आम लोग भी इसे कानून सम्मत कार्रवाई मानते हैं।सही है कि अतिक्रमण के तौर पर बने ढांचों को तोड़ने की कार्रवाई को कानून के तहत ही अंजाम दिया जाता है,कोई व्यक्ति नियम-कायदों को ताक पर रखकर गगनचुंबी इमारत कैसे खड़ी कर लेता है।जबकि अमूमन किसी भी इलाके में एक छोटे भूखंड पर भी होने वाला निर्माण सबकी नजर में होता है।खासतौर पर किसी निर्माण के शुरू होने के बाद उस पर स्थानीय पुलिस या प्रशासन की नजर रहती है।इसके बावजूद यह शिकायत आम है कि किसी व्यक्ति या परिवार को ही अवैध निर्माण के लिए कानून के कठघरे में खड़ा होना पड़ता है

इस मसले पर सर्वोच्य न्यायालय ने अहम दखल देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अगर कहीं अनाधिकृत निर्माण होता है तो इसके लिए पुलिस प्रसासन और नगर निगम के अधिकारी जिम्मेदार होंगे।किसी भी इलाके में अगर कोई निर्माण शुरू होता है तो संबंधित सरकारी महकमे का कर्मचारी या पुलिसकर्मी वहां पहुंच कर एक नजर जरूर डालता है।कुछ वक्त बाद उसी निर्माण को अनधिकृत याअवैध बताकर कोई कानूनी कार्रवाई की जाती है तो उसकी जिम्मेदारी किस पर आनी चाहिए।इसी पहलू को आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है।माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने साफ लहजे में कहा कि अनधिकृत निर्माण अधिकारियों और उल्लंघनकर्ता के बीच तालमेल से होते हैं, जिससे निर्माण करने वाले के लिए लागत में इजाफा होता है। अदालत के मुताबिक ऐसे निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहे हैं और सच यह है कि स्थानीय पुलिस अधिकारियों और निगम प्राधिकारों की मिली भगत के बिना ईंट तक नहीं रखी जा सकती है।

अदालत की यह टिप्पणी अवैध निर्माणों के इस पक्ष की ओर ध्यान खींचती है कि नियम-कायदों को तोड़ने में उल्लंघनकर्ताओं के साथ-साथ वे पुलिस अधिकारी और प्रशासन के लोग भी शामिल होते हैं,जिनकी ड्यूटी होती है कानून पर अमल कराने की। यह कैसे संभव हो जाता है कि बाजारों से लेकर गली-मोहल्लों में खुली दुकानों के सामने की सड़क पर सामान फैलाकर या फिर फुटपाथों तक का अतिक्रमण कर लिया जाता है और नगर निगम या पुलिस-प्रशासन की नजर नहीं पड़तीआम लोग किसी तरह बचकर वहां से गुजरते रहते हैं।फिर किसी दिन अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण को हटाने के नाम पर अचानक बड़े पैमाने पर कार्रवाई शुरू कर दी जाती है।

इसके अलावा,मानवीयता से जुड़े कुछ बिंदुओं पर भी बहस होती है।इस तरह की गतिविधियां जमीन पर उतरें ही नहीं।जब लोगों के पास नियम-कायदों के दायरे में कोई विकल्प उपलब्ध होगा और उसकी प्रक्रिया आसान होगी तो शायद उन्हें खुद ही उसका पालन करना अच्छा लगेगा।सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और नगर निगमों की मिलीभगत की वजह से चलने वाली ऐसी गतिविधियों पर जरूरी सवाल उठाया है।अब यह सरकार पर निर्भर करती है वह इस तरह के मामले में क्या रुख अख्तियार करती है।

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