सीएसयू में 29-30 सितंबर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली।औपनिवेश सांस्कृतिक तथा विघटनकारी शक्तियों को जवाब देने लिए यह आवश्यक है कि ऐसे बौद्धिक सम्मेलनों के माध्यम से हम भारत की कालजयी संश्लेषित तथा समन्वित संस्कृति तथा विचारों को फिर से विश्व तक पहुंचाय जाय । कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने यह भी कहा कि नेपाल विशेष कर चीन देश जो बौद्ध दर्शन के लोकप्रिय देशों में एक महत्त्वपूर्ण देश रहा रहा है  केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में 29-30 सितंबर तक अपने विश्वविद्यालय के मुख्यालय , दिल्ली के सारस्वत सभागार में भारतीय दर्शन की परंपरा को लेकर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है ।

 कुलपति प्रो वरखेड़ी ने इस सम्मेलन की विशेषता के विषय में यह कहा कि इसमें भारतीय दर्शन की एक अति विशिष्ट बौद्धिक शाखा प्रमाणवार्तिक तथा बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में एक तुलनात्मक विमर्श के लिए देश विदेश के जाने माने विद्वानों को अपने अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया गया ।इन दोनों दिवसों में ' प्रमाण लक्षण ',स्मृतिप्रत्यविज्ञाविचार' 'प्रत्यक्ष विचार ' , ' अन्यापोहविचार ' ,' तथा प्रमाणवार्तिक ' जैसे दार्शनिक विचारों पर मंथन किया जायेगा ।

कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने इस महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को लेकर यह भी कहा है कि ऐसे तात्त्विक चिन्तन से जहां एक ओर इन दोनों दर्शनों की तुलनात्मक अध्ययन स्पष्ट होगा साथ ही साथ इस बात की भी पुष्टि हो सकेगी कि भारतीय दर्शन तथा बौद्ध दर्शन की अलग अलग धारा होने के बाद भी इन दोनों दार्शनिक विचार धाराओं में कितना नैकट्य है । यह तथ्य भी समझने का है कि भारतीय दर्शन बौद्ध दर्शन के माध्यम से पूरी दुनिया में कैसे विस्तारित हुआ है । उनका यह भी मानना है कि औपनिवेश सांस्कृतिक तथा विघटनकारी शक्तियों को जवाब देने लिए यह आवश्यक है कि ऐसे बौद्धिक सम्मेलनों के माध्यम से हम भारत की कालजयी संश्लेषित तथा समन्वित संस्कृति तथा विचारों को फिर से विश्व तक पहुंचाय जाय । कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने यह भी कहा कि नेपाल विशेष कर चीन देश जो बौद्ध दर्शन के लोकप्रिय देशों में एक महत्त्वपूर्ण देश रहा रहा है , वहां के विद्वानों को भी सुनना बड़ा ही ज्ञानवर्धक रहेगा ।

 इस वैश्विक बौद्धिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रो रजनीश कुमार शुक्ल ,कुलपति ,अन्ताराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वार्धा, प्रो एस् आर् भट्ट , अध्यक्ष,आई.सी.एस.एस.आर., शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार तथा प्रो काशीनाथ न्योपाने , संस्कृत बौद्ध दर्शन तथा भारतीय दर्शन विभाग ,नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय ,नेपाल क्रमशः मुख्य अतिथि, सारस्वत अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि के रुप में सम्मेलन को सुशोभित करेंगे । इस सत्र के विषय की उपस्थापना ,प्रो ए.डी. शर्मा ,संकाय अध्यक्ष,डा हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय,सागर करेंगे और उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी होंगे ।

 इस वैश्विक सम्मेलन समापन सत्र में भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव के साथ साथ नेपाल के राजदूत डा शंकर प्रसाद शर्मा दोनों मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहेंगे । स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केन्द्र , भारतीय दूतावास , काठमांडू की निदेशिका डा आशावरी उदय बापट, दीपक कुमार अधिकारी ,निदेशक ,शोध संस्था , काठमांडू तथा प्रो अरविन्द आलोक ,अध्यक्ष , बौद्ध स्मारक विकास परिषद्  दिल्ली को विशिष्ट अतिथियों के रुप में इसके समापन समारोह में रहेंगे तथा अध्यक्षता कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी करेंगे ।

इस सम्मेलन के संयोजक तथा व्याकरणशास्त्र और भारतीय दर्शन के उद्भट युवा विद्वान डा मधुकेश्वर भट्ट ने बताया है कि भारतीय दर्शन के जीवन्त चिन्तन को लेकर यह वैश्विक संगोष्ठी बडा़ ही फलदायी होगी । डा भट्ट ने यह भी कहा कि दुनिया के जाने माने विद्वानों के अतिरिक्त दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के शोध छात्रों को भी इसके विमर्श में सहभागिता के लिए आमन्त्रित किया गया । कार्यक्रम के निवेदक , प्रो रणजित कुमार बर्मन ,कुल सचिव , केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तथा प्रो सुकान्त कुमार सेनापति , संकाय अध्यक्ष, दर्शन विभाग तथा निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर, अगरतला ने इस आयोजन को लेकर बहुत ही आशान्वित हैं ।

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