पुस्तक "पानी जैसा देस" का हुआ लोकार्पण

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संत कुमार गोस्वामी ० 
पटना : भारतीय नृत्य कला मंदिर के सांस्कृतिक परिसर में आयोजित किताब उत्सव में प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एवं कवि एवं मनोवेद पत्रिका के संपादक डॉ विनय कुमार की पुस्तक "पानी जैसा देस" का लोकार्पण हुआ। पुस्तक का लोकार्पण कवि आलोक धन्वा, अरुण कमल, प्रेमकुमार मणि, प्रोफेसर तरुण कुमार एवं डॉ विनय कुमार ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर प्रोफ़ेसर तरुण कुमार ने डॉ विनय कुमार की कविताएं बेहद संवेदनशील है। सारी कविताएं समय से संवाद करती हुई प्रतीत हो रही है। उन्होंने कहा की विनय कुमार समकालीन कविता के बेहतरीन कवि हैं।

 प्रेम कुमार मणि ने कहा कि - पानी जैसा देश कविता संग्रह में कई कविताओं ने मुझे निःशब्द कर दिया। प्रकृति की चिंता में लिखी गई हैं ये कविताएं! पानी खत्म हो रहा है , मिट्टी प्रदूषित हो रही हैं। हवा विषैली हो रही है। इन सबके बिना आखिर कौन सी दुनिया रची जा रही है । ऐसे समय में बेहद महत्वपूर्ण हैं ये कविताएं! इस अवसर पर अरुण कमलने कहा कि पानी पर इससे बेहतरीन कविताएं मैंने नहीं पढ़ी। ये कविता की बड़ी आंख है । इन कविताओं की खासियत है इनकी तरलता । ये कविताएँ पानी के साथ संगत करती हैं। इसकी भाषा लोच से भरी हुई है। आलोक धन्वा- कविता की अच्छी बात है कि यह आपके दुःख के साथ चलती है। ये भी ऐसी ही कविताएँ हैं जो आपके दुःख से बात करती है। पानी का प्रश्न इस वक्त का सबसे बड़ा दुःख है।

कवि विनय कुमार ने कहा कि सरोवर के किनारे एक पेन्टिंग देखी थी जहाँ एक स्त्री बैठी थी। बाद में वह पेन्टिंग तो मिली नहीं लेकिन वह दृश्य मन में चलती रही । एक तरह से उसकी खोज है ये कविताएँ। अक्षरों के दृश्य को देखते हुए स्थिति को देखते हुए मेरे मन में जोड़ती रही । जब पेंटिंग नहीं मिली तो कविताएं शुरू हो गई। तालाब के संज्ञान में चीजें आती रही पानी के क्रम में पानी से क्या हो सकता और पानी नहीं होने से क्या हो सकता है दोनों के बीच की यात्रा ही इसकी कविताएं हैं। कार्यक्रम का संचालन कवियत्री नताशा ने किया।

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