जोखिम वाले नवजातों की जिंदगी बचाने के लिए टेक्‍नोलॉजी लॉन्‍च होगी

० योगेश भट्ट ० 
बेंगलुरू, भारत में सगे-संबंधियों में शादी करना, आम परंपराओं में से एक है, जिससे हर साल कई सारे नवजात बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है। कर्नाटक पीडियाट्रिक जर्नल में प्रकाशित हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे नवजातों को कुछ खास प्रकार के मेटाबॉलिक डिसऑर्डर होने का उच्‍च जोखिम रहता है, जिसकी वजह से बौद्धिक अक्षमता, विकास में देरी और अन्य प्रकार की व्यवहार संबंधी असामान्यताएं होती हैं, जिन्हें चिकित्सकीय भाषा में इनबॉर्न एरर्स ऑफ मेटाबॉलिज्‍़म (आईएएम) कहा जाता है।

ऐसे बच्चों में बीमारी का यदि जल्‍दी पता चल जाए तो समय पर इलाज होने से गंभीर तथा जानलेवा परिणामों से बचाव किया जा सकता है। हर साल भारत में लगभग 2 करोड़ 70 लाख बच्चे पैदा होते हैं। उनमें से 2497 बच्चों में 1 आईईएम के साथ पैदा होते हैं। लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि किस बच्चे को इलाज की जरूरत है, क्योंकि नवजात बच्चे केवल रो ही सकते हैं। विक्टर 2™ डी एक पेंटेट डिवाइस है, जब इसे सही आईवीडी परख के साथ इस्तेमाल किया जाता है तो बच्चे के शरीर में एंजाइम की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाया जा सकता है और उसे मापा जा सकता है।

मयंक कुमार श्रीवास्तव, जनरल मैनेजर, प्रोडक्ट्स एवं मार्केट्स, इंडिया साउथ एशिया, पर्किनएल्मर का कहना है, “यह (विक्टर 2™ डी) आम ब्लड टेस्ट करने जैसा ही आसान है।“ जैसे, गैलेक्टोसिमिया, भारत में नवजात बच्चों में एंजाइम की कमी का एक आम डिसऑर्डर है। इंडियन पीडियाट्रिक्स जर्नल में ऐसा अनुमान है कि लगभग 39,000 बच्चे हर साल इस डिसऑर्डर के साथ पैदा होते हैं, जो बच्चों में बड़ी बीमारी और मौत का कारण बनता है।

गैलेक्टोसिमिया डिसऑर्डर के साथ एक नवजात बच्चा, जन्म के समय सामान्य नजर आ सकता है। इसके लक्षण स्तनपान करने के कुछ दिनों के बाद नजर आना शुरू हो सकते हैं। सबसे पहले बच्चे की भूख खत्म हो जाती है और वे उल्टियां करने लगते हैं। इसके बाद उन्हें जॉन्डिस हो जाता है, त्वचा पीली और आंखों का सफेद हिस्सा पीला पड़ने लगता है। डायरिया भी बहुत आम होता है। इस बीमारी की वजह से वजन काफी कम हो जाता है और बच्चे बड़ी ही मुश्किल से विकसित और बड़े होते हैं। इलाज के बिना समय के साथ बच्चे को मोतियाबिंद हो सकता है और उन्हें संक्रमणों का खतरा रहता है। 

श्रीवास्तव कहते हैं, “कुछ एंजाइम्स बच्चे को दूध पचने और उसे एनर्जी में बदलने में मदद करते हैं। लेकिन यदि ये एंजाइम पहले 48 से 72 घंटों में नहीं होता है या इसकी कमी बनी रहती है तो बच्चे की मौत भी हो सकती है।” “इस तरह के मामलों में हमें बच्चे के आहार से दूध बाहर करना पड़ता है और सोया मिल्क देना शुरू करना पड़ता है ताकि बच्चों की जान बचाई जा सके। लेकिन बिना स्क्रीनिंग टेस्‍ट के हमें पता नहीं चलता।”

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