० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - समय आ गया है कि दुनिया को दर्शनों में उन समन्वित मूल्यों पर गहन शोध किया जाया जाना चाहिए जिससे विश्व शान्ति तथा मानव सभ्यता अपितु प्राणि मात्र के साथ साथ साथ पर्यावरण संतुलन का मुद्दा भी दर्शनशास्त्र के अध्ययन अध्यापन का अनिवार्य अंग बने क्योंकि दर्शन शास्त्र सभी प्राणियों के समस्याओं के आध्यात्मिक तथा दार्शनिक समाधानों को खोजने का भरसक प्रयास करता है और आज विश्व सभ्यता तथा संस्कृति के लिए पर्यावरण संतुलन एक ज्वलंत समस्या बन गया है और इस वर्ष इस दिवस का थीम भी है - ' द ह्यूमन आऔफ़ द फ्यूचर '

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने ' विश्व दर्शन दिवस ' पर कहा कि यूनेस्को ने सन् 2002 से इस दिवस को मनाने की उद्घोषणा की थी  जिस दिवस का लक्ष्य दार्शनिक चिंतन का उन्नयन तथा संवर्धन विशेष कर युवा वर्ग में भी पहुंचाना है । युवा वर्ग के लिए इस दिवस का इसलिए भी अधिक महत्त्व है कि दर्शक अपने समकालीन स्थिति की मान्यताओं को परिभाषित कर के अभिनव सिद्धान्त की स्थापना करने का प्रयास करता है । युवा वर्ग अपने समकालीन परिदृश्यों का इतिहास रचते हैं । अतः यह ज़रुरी हो जाता है कि वे अपने आस पास के चिन्तन के प्रति संवेदनशील तथा सजग भी रहें क्योंकि औपनिवेशिक सत्ता के अस्त के बाद आज साहित्य तथा दर्शन के माध्यमों से सांस्कृतिक आक्रमण की तैयारी चल रही है ।

 उत्तर आधुनिक युग जिसमें आई टी का ही दबदबा बना हुआ है जिसमें यह भी ज़रुरी है करुणा तथा शान्ति का वातावरण भी प्रभावी रहे । विश्व दर्शन दिवस पर रामायण के क्रौंच पक्षी युगल को लेकर वाल्मीकि के करुणा अंकन का बडा़ ही महत्व है क्योंकि करुणा तथा प्रेम जीवन प्रबंधन के अनिवार्य तत्त्वों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । आदिकवि वाल्मीकि का यह क्रौंच करुणा प्रसंग आज समूची दुनिया के लिए रामबाण साबित हो सकती है । बौद्ध दर्शन तथा चिन्तन ने अपने सिद्धांत में इसे अपनाया है

कुलपति प्रो वरखेड़ी ने यह भी कहा कि फ्रासिस फ्यूकामा की चर्चित किताब 'द एंड औफ़ दी हिस्ट्री एंड लास्ट मैन (1992) पाश्चात्य दर्शन के एक रैखिक सिद्धान्त का द्योतक है अर्थात जो जाता है वह फिर लौट कर नहीं आता है । जबकि भारतीय दर्शन में काल का अवधारणा वृत्तात्मक ( साईक्लीक) है अर्थात जो जाता है वह लौट कर ज़रुर आता है । यही आशावादी सांस्कृतिक दर्शन और चिन्तन वाल्मीकि के अपार करुणा विध्वंसकारी तथा आतंकवादी मानसिकता तथा विखंडित समाज से विश्व मानव को मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकता है । इस संदर्भ से भी 'विश्व दर्शन दिवस ' की विशेष महत्त्व है।

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