जेकेके में नाटक ‘नमकसार’ अगरिया समुदाय के संघर्ष का मंचन
० अशोक चतुर्वेदी ०
जयपुरः जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘नमकसार’ नाटक का मंचन हुआ। इसमें अगरिया समुदाय के संघर्ष व पीड़ा को मंच पर जाहिर किया गया। जापानी डांस ‘बूतो’ में दिखा विरह
नाटक की कहानी रजनी मोरवाल ने लिखी है। विजय कुमार बंजारा ने नाट्य रुपांतरण और निर्देशन कर मार्मिक कहानी को समाज के सामने लाने का प्रयास किया। नाटक के मुख्य पात्र हैं लीला और मौजूं। दोनों के विरह को नाटक की शुरुआत में जापानी डांस फाॅर्म ‘बूतो’ के जरिए दर्शाया जाता है। दोनों अगरिया समुदाय से आते हैं। ये लोग अपनी गुजर बसर के लिए शारीरिक कष्ट झेलते हुए नमक बनाते हैं। आलम यह रहता है कि इन श्रमिकों के हाथ और पैर तक नमक निकालते-निकालते गल जाते हैं।
लीला जिसने अपने पिता और भाई को नमक के चक्कर में काल का ग्रास बनते देखा है वह अपने पति मौजूं को भी यह काम छोड़ने को कहती हैं। मौजूं बेबस है, साहूकार का कर्ज उसे साने नहीं देता और पेट की आग उसे जगाए रखती है। लीला नमक मजदूरों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़ जाती है। लीला के भसकरप्रयास भी मौजूं को नमक की दुनिया से बाहर नहीं ला पाते। मौजूं का शरीर भी नमक की जलन में जल जाता है। पति की मौत के बाद लीला अपने आगे का जीवन नमक मजदूरों में जागरुकता, उनके पुनर्वास और कल्याण में गुजारने को आगे बढ़ जाती है।
नाटक में योगेश परिहार ने मौजूं तो रिचा पालिवाल ने लीला की भूमिका निभाई। यशेश पटेल और सुमित निठारवाल ने क्रमशः प्रकाश व संगीत संयोजन संभाला। आलोक वर्मा, विक्रम सिंह, शेलेन्द्र ने मंच सज्जा व नीतू ने कोस्ट्यूम डिजाइन की। अन्य कलाकारों में प्रांजल, नरेश, अर्जुन व प्रार्थना शामिल रहे।
जयपुरः जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘नमकसार’ नाटक का मंचन हुआ। इसमें अगरिया समुदाय के संघर्ष व पीड़ा को मंच पर जाहिर किया गया। जापानी डांस ‘बूतो’ में दिखा विरह
नाटक की कहानी रजनी मोरवाल ने लिखी है। विजय कुमार बंजारा ने नाट्य रुपांतरण और निर्देशन कर मार्मिक कहानी को समाज के सामने लाने का प्रयास किया। नाटक के मुख्य पात्र हैं लीला और मौजूं। दोनों के विरह को नाटक की शुरुआत में जापानी डांस फाॅर्म ‘बूतो’ के जरिए दर्शाया जाता है। दोनों अगरिया समुदाय से आते हैं। ये लोग अपनी गुजर बसर के लिए शारीरिक कष्ट झेलते हुए नमक बनाते हैं। आलम यह रहता है कि इन श्रमिकों के हाथ और पैर तक नमक निकालते-निकालते गल जाते हैं।
लीला जिसने अपने पिता और भाई को नमक के चक्कर में काल का ग्रास बनते देखा है वह अपने पति मौजूं को भी यह काम छोड़ने को कहती हैं। मौजूं बेबस है, साहूकार का कर्ज उसे साने नहीं देता और पेट की आग उसे जगाए रखती है। लीला नमक मजदूरों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़ जाती है। लीला के भसकरप्रयास भी मौजूं को नमक की दुनिया से बाहर नहीं ला पाते। मौजूं का शरीर भी नमक की जलन में जल जाता है। पति की मौत के बाद लीला अपने आगे का जीवन नमक मजदूरों में जागरुकता, उनके पुनर्वास और कल्याण में गुजारने को आगे बढ़ जाती है।
नाटक में योगेश परिहार ने मौजूं तो रिचा पालिवाल ने लीला की भूमिका निभाई। यशेश पटेल और सुमित निठारवाल ने क्रमशः प्रकाश व संगीत संयोजन संभाला। आलोक वर्मा, विक्रम सिंह, शेलेन्द्र ने मंच सज्जा व नीतू ने कोस्ट्यूम डिजाइन की। अन्य कलाकारों में प्रांजल, नरेश, अर्जुन व प्रार्थना शामिल रहे।
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