पायरेसी लेखक, पाठक और प्रकाशक सबके लिए हानिकर है, इसे रोकना जरूरी

० योगेश भट्ट ० 
नई दिल्ली. भारत में प्रकाशन उद्योग बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है लेकिन कॉपीराइट उल्लंघन और पायरेसी जैसी कुछ बड़ी बाधाएं अभी भी उसकी राह का रोड़ा बनी हुई हैं. दुखद है कि तकनीकी कौशल और आधुनिक उपकरणों के चलते हम हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन हमारे ज्ञान का जो मुख्य स्रोत है यानी किताबें, उन पर समय के बदलाव का उल्टा असर पड़ रहा है. इस समय बाज़ार में 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा पायरेटेड यानी जाली किताबों का है जिससे पूरा प्रकाशन उद्योग भारी नुकसान उठा रहा है। प्रकाशकों को राजस्व की क्षति हो रही है, लेखकों को रॉयल्टी की और सरकार को टैक्स की.

कुछ पाठक और पुस्तक-प्रेमी तर्क देते हैं कि पायरेसी का कारण किताबों की कीमतों का ज्यादा होना, लोगों की फौरी धन कमाने की प्रवृत्ति, बेरोजगारी और किताबों के पुनर्मुद्रण में फ़ोटोकॉपी मशीनों जैसी आसान तकनीकों का आ जाना है. कारण कुछ भी हो, इसका सबसे ज्यादा नुक्सान जिसे उठाना पड़ता है वह प्रकाशक ही है और यही वह बात है जिस पर कोई गंभीरतापूर्वक सोचने को तैयार नहीं  पिछले दिनों राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘रेत समाधि’ (गीतांजली श्री) को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो हमारे लिए ही नहीं पूरे देश और हिंदी भाषा के लिए गौरव की बात है. लेकिन पता चला है कि दिल्ली और हरियाणा में इस पुस्तक की पायरेटेड प्रतियों की बिक्री बड़े पैमाने पर की जा रही है. राजकमल प्रकाशन की टीम ने अमेज़न पर इसकी बिक्री को रुकवा दिया, लेकिन खुदरा बाज़ार में अभी भी इसे बेचा जा रहा है. पटरी दुकानदार भी इसे बेच रहे हैं 

जिसका किताब के आधिकारिक संस्करण की बिक्री पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने बताया कि “1 अप्रैल से 31 अक्तूबर, 2022 की अवधि में राजकमल प्रकाशन द्वारा बाजार में ‘रेत समाधि’ की इक्यावन हजार नौ सौ इक्यानवे (51,991) प्रतियाँ भेजी गयीं. सजिल्द संस्करण की तीन हजार बीस (3020) प्रतियाँ भेजी गयीं यानी कुल पचपन हजार ग्यारह (55,011) प्रतियाँ बाजार में गयीं जिनमें से हमारे रिकॉर्ड के अनुसार 27 मई, 2022 से 2 जून, 2022 के बीच पैतीस हजार दो सौ (35,200) प्रतियाँ बिकीं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पायरेसी का प्रकाशन उद्योग पर कितना बुरा असर पड़ रहा है.”

यह वित्तीय अपराध जैसे एक वैध रूप धारण कर चुका है और जो इसमें लिप्त हैं वे यह कहकर कि आम पाठक इसे मान्यता देता है, जैसे इसे सही ठहराते हैं. इस सबको देखते हुए अब एक नयी रणनीति की ज़रू
 इसी दिशा में कदम उठाते हुए पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई गयी है ताकि अधिकारीगण इस समस्या से निबटने के लिए कोई ठोस कदम उठाएं. श्री अशोक महेश्वरी के अनुसार “कॉपीराइट उल्लंघन को लेकर भारत में एक नियामक व्यवस्था किए जाने की फौरी तौर पर ज़रूरत है.’

किताबों की पायरेसी करना एक अपराध है जिसका प्रकाशक और लेखक, दोनों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बाजार में किताबों के जाली संस्करणों के होने से उसके उस मूल संस्करण की बिक्री प्रभावित होती है जिसे प्रकाशक ने छापा है और अंततः इसका असर लेखक को मिलने वाली रॉयल्टी पर पड़ता है. जाली किताबों की छपाई का स्तर भी ख़राब होता है जिससे पाठक को भी निराशा होती है. लेकिन सबसे ज्यादा क्षति प्रकाशक को ही होती है जिसे इसका खमियाजा आर्थिक रूप में उठाना पड़ता है

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

ग्रासरूट लीडरशिप फेस्टिवल में भेदभाव, छुआछूत, महिला अत्याचार पर 37 जिलों ने उठाये मुद्दे

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

घरेलू कामगार महिलाओं ने सामाजिक सुरक्षा का लाभ मांगा, कहा हमें श्रमिक का दर्जा मिले