फिर लौटने के वादे के साथ जयरंगम 2022 ने कहा अलविदा

० अशोक चतुर्वेदी ० 
जयपुर - थिएटर की दुनिया का एक अनोखा अहसास देकर 11वें जयरंगम जयपुर थिएटर फेस्टिवल ने  रंगमंच प्रेमियों को अलविदा कह दिया। 7 दिवसीय फेस्टिवल का आयोजन थ्री एम डाॅट बैंड्स थिएटर फैमिली सोसाइटी ने कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान व जवाहर कला केंद्र की सहभागिता में किया। इसमें 20 नाटकों के मंचन के साथ ही अपस्टेज प्रोजेक्ट वर्कशाॅप, महफिल ए जयरंगम, रंग संवाद, खुशबू ए राजस्थान नजर फोटो एग्जीबिशन, आइसीए गैलरी की आर्ट स्ट्रोक पेंटिंग एग्जीबिशन का आयोजन हुआ। इस रंगकर्म महोत्सव में लगभग 500 कलाकारों ने समां बांधा।
‘स्त्री कोई भूखंड नहीं’... कृष्णायन में स्वाति दूबे के निर्देशन में हुए नाटक ‘भूमि’ को दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक की पटकथा महाभारत के वनपर्व से ली गई है। कथा कांगला के महाराज प्रभंजन से शुरू होती हुई चित्रांगदा के जन्म तक पहुंचती हैं। महाभारत के पूर्व मित्रता यात्रा पर निकला अर्जुन, नागलोक होते हुए कांगला पहुंचता हैं, जहां दो योद्धाओं की तरह अर्जुन और चित्रांगदा की भेंट होती है। अर्जुन पराजित होते हैं, भूमि विस्तार के लिए वह चित्रांगदा से विवाह कर लेते हैं। चित्रांगदा को लिए बिना अर्जुन घर लौटते हैं। ‘वीरो को चाहिए कितनी भूमि पता नहीं, स्त्री कोई भूखंड नहीं’ जैसे संवादों से चित्रांगदा और स्त्रियों का दर्द जाहिर होता है। 
20 वर्ष बाद बब्रुवाहन अर्जुन के यज्ञ अश्व को रोक लेता है। भीष्ण युद्ध के बाद वह अर्जुन को मारने ही वाला होता है कि चित्रांगदा बताती है कि अर्जुन बबु्रवाहन का पिता है। नाटक में मार्शल नृत्य कल्लरी ने रोमांचित किया, अभिनय ने वाहवाही लूटी। वर्कशाॅप में तैयार हुए दो नाटक मशहूर थिएटर डायरेक्टर अतुल सत्य कौशिक व उनकी टीम के अन्य साथियों मनमीत सिंह, अर्जुन सिंह, चेष्टा शर्मा व कमल किशोर पाल ने सात दिवसीय अपस्टेज वर्कशाॅप में थिएटर की बारीकियां, तकनीक और टीम वर्क के बारे में बताया। 24 प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया। प्रतिभागियों के साथ दो नाटक तैयार किए गए जिनका मंचन रंगायन में शनिवार को हुआ।
सुल्ताना के संघर्ष पर सब मौन नाटक ‘काली सलवार’। सआदत हसन मंटो की कहानी को आधार मानकर अतुल सत्य कौशिक ने इसे लिखा वहीं अर्जुन सिंह और चेष्टा शर्मा ने निर्देशन किया। मजबूरी के चलते जिस्मफरोशी कर पेट पाल रही ‘सुल्ताना’ के जीवन की कठिनाईयों को मार्मिक ढंग से नाटक में दर्शाया गया, जिन पर बात नहीं होती। अंबाला में बड़ी संख्या में अंग्रेज मुलाजिम सुल्ताना के चाहने वाले होते हैं। वह दिल्ली आती है, यहां उसे दिल लगाने वाला कोई नहीं मिलता मसलन सुल्ताना दाने-दाने की मोहताज हो जाती है।

किस कीमत पर चाहिए सफलता दूसरा नाटक ‘बड़े शहर के लोग’, बड़े-बड़े सपने लेकर मुंबई आने वाले छोटे शहरों के कलाकारों की कहानी है। अतुल सत्य कौशिक ने इसे लिखा है व निर्देशन मनमीत सिंह और कमल किशोर पाल ने किया। स्क्रिप्ट राइटर विष्णु मुंबई आता है। वह एक लेखक के घर ही रहने लगता है। मकान मालिक को लकवा आने पर विष्णु उन्हीं की स्क्रिप्ट अपने नाम से प्रोड्यूसर को देता है। मुकाम पाने के बाद विष्णु को अहसास होता है कि उसने क्या खो दिया है। नाटक सीख देता है कि सफलता हासिल करनी है पर किस कीमत पर यह भी सोच लेना चाहिए।

‘धत्त तेरी गृहस्थी’ ने दिल को छुआ सर्द हवाओं के साथ मध्यवर्ती में समाज के बड़े ज्वलंत मुद्दे को उठाया गया। गृहस्थी चलाने के लिए विवाह होता हैं, पर क्या हम शादी के बाद आने वाले बदलावों के लिए तैयार हैं, क्या बाद में महिला का स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार रह पाएगा, क्या लड़के और लड़की के बीच प्रेम है या फिल्मी अंदाज में शादी के बाद प्रेम होने की आशा लिए आप बैठे है। हास्य अंदाज में इन्हीं सवालों से दो चार करवाता है मकरंद देशपांडे लिखित नाटक ‘धत्त तेरी यह गृहस्थी’। इन्हीं के निर्देशन में कलाकारों ने दर्शकों को पहले जमकर हंसाया और अंत में आंखों में आंसू के साथ बड़ी सीख दे गए।

‘50 साल बाद मुझे सुना जा रहा है’ कहानी कुछ यूं है, शादी के सात साल बाद भी पति-पत्नी में झगड़े होते है। एक दूसरे को छोड़ने से पहले वह एक एनजीओ खोलते है, जहां कुंवारे लोग पति और पत्नी किराए पर लेकर शादी के बाद की चुनौतियों और बदलाव को पहले ही समझ सके। उनके एनजीओ से शादी के 50 साल पूरा कर चुका एक जोड़ा जुड़ता है, साथ ही एक प्रेमी जोड़ा भी जो शादी करने को लेकर असमंजस में है। ‘शादी के 50 साल बाद तुम मुझे यह बात कह रही हो, नहीं मुझे अब सुना जा रहा है’ बुजुर्ग जोड़े के संवाद से मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है। इन्हीं सभी के इर्द-गिर्द घूमते नाटक में कटाक्ष, व्यंग्य, उम्दा अभिनय और हांस्य रस से करुणता का सफर दर्शकों ने तय किया।

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