चुनावी समर में 3 राज्य, 3 राजनीतिक पार्टी को किसको कितना नुकसान और किसको कितना फायदा हुआ

० विनोद तकियावाला ० 
तीनो राज्यों गुजरात,हिमाचल प्रदेश विधानसभा और दिल्ली नगर निगम के चुनाव के नतीजे आ चुके हैं।इनमें हिमाचल व 15 वर्षो से दिल्ली नगर निगम में सता राज्य करने वाली बीजेपी को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी है।वही पार्टी ने गुजरात एक ऐसा राज्य रहा है जहां पर बीजेपी ने अपने पिछले सभी रिकॉर्ड्स को ध्वस्त करते हुए सत्ता के अचुक किला बनाए रखी है।हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने बीजेपी को धूल चटाते हुए सत्ता में अपनी वापसी की है तो वहीं एमसीडी के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पहली बार जीत का स्वाद चखा है।गुजरात की 182 सीटों में से बीजेपी ने 156 सीटें जीती हैं।
कांग्रेस ने 17 और आम आदमी पार्टी ने 5 सीटें पर अपने पक्ष में जीत हासिल की हैं।हिमाचल प्रदेश की विधान सभा के 68 सीटों में सेकांग्रेस ने 40 सीटें जीती है व बीजेपी ने 25 सीटें जीती हैं।वही आम आदमी पार्टी का खाता तक नहीं खुला है।वही दिल्ली नगर निगम के चुनाव के नतीजों की बात करें तो यहां आम आदमी पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 134 सीटों पर कब्जा किया है।बीजेपी के खाते में 104 सीटें गईं तो वहीं कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई और 9 सीटों पर ही सिमट कर रह गई।

प्रजातंत्र मे चुनाव को महापर्व कहा गया है । विगत दिनों चुनावी सरगर्मी के कारण वातावरण सर्दी होने के बावजूद गहमागहमी देखने को मिल रही थी।तीनों राज्यों मे चुनाव सम्पन्न हो गए तथा गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव व दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे हम सभी के सामने हैं।इन तीनों राज्यों के चुनावी समर क्षेत्र में बीजेपी,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पूरे सामाजिक समीकरण व नुकसान व फायदे गणित को समझने की खबरी लाल की तीरक्षी नजर से समझने की कोशिस 3 राज्य,3 पार्टियां...किसे नुकसान और किसे फायदा हुआ है ।

तीनों राज्यों में तीनों पार्टियों की सीटों की बात करेंगे किस पार्टी को फायदा मिला है और किस पार्टी को नुकसान हुआ।बीजेपी ने गुजरात में 156 सीटों पर बंपर जीत हासिल की है पार्टी को राज्य में 52.51 प्रतिशत वोट हासिल किया है,साल 2017 में बीजेपी का प्रदर्शन इतना शानदार नहीं था,जो इस बार के चुनाव में देखने को मिला है ।पिछली बार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 182 में से 99 सीटें ही जीती थीं और 1 करोड़ 47 लाख 24 हजार 31 लोगों ने बीजेपी को वोट किया था ।वोट शेयरिंग के हिसाब से उस वक्त बीजेपी को 49.05 प्रतिशत वोट मिले थे ।

वहीं हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के इस बार के प्रदर्शन को देखें तो निराशाजनक है।यहां पर पार्टी ने 25 सीटें जीती हैं।वोट %शेयरिंग की बात की जाए तो इस बार पार्टी को 42.99 प्रतिशत वोट मिले हैं।साल 2017 में पार्टी ने पहाड़ी राज्य की 68 सीटों में से 44 सीटों पर जीत हासिल की थी और 18 लाख 46 हजार 432 लोगों ने वोट किया था। वहीं वोट प्रतिशत शेयरिंग में उस समय बीजेपी को 48.79 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी का 15 साल पुराना तिलस्म किला टूट गया और 250 वॉर्डों में से 104 वॉर्डों पर ही जीत हासिल कर पाई।वोट प्रतिशत शेयरिंग की अगर बात करें तो इस बार बीजेपी को 39.09 प्रतिशत वोट शेयर मिला तो वहीं साल 2017 में हुए नगर निगम के चुनाव में बीजेपी ने 181 वार्डों पर जीत हासिल की थी और 36.08 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ था।

हालांकि इन चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा लेकिन वो सीटों में परिवर्तित नहीं हो पाया।कांग्रेस के लिए पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश से अच्छी खबर आई है,जहां पर पार्टी सरकार बना रही है. यहां पार्टी ने 40 सीटें जीत ली हैं। वोट प्रतिशतशेयरिंग की हम बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत शेयरिंग में बहुत बड़ा फर्क नजर नहीं आ रहा है कांग्रेस को यहाँ 43.90 प्रतिशत वोट शेयर मिला है जबकि बीजेपी का 42.99 प्रतिशत रहा ।वहीं साल 2017 के चुनाव की अगर बात करें तो कांग्रेस ने 68 में से सिर्फ 21 सीटें जीतीं थीं और वोट शेयरिंग पर्सेंटेज 41.68 प्रतिशत रहा था।

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत साल 2017 के चुनाव के नतीजों से भी ज्यादा खस्ता है।इस बार पार्टी ने सिर्फ 17 सीटें जीतीं. वोट शेयरिंग को अगर देखें तो इस बार कांग्रेस को सिर्फ 27.27 प्रतिशत वोट मिला है।राजनीतिक विश्लेषक का मानना है कि आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के वोट बैक में सेंध लगाने में कामयाबी मिली है। क्योंकि साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने इससे उम्दा प्रदर्शन किया था और 177 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 77 सीटें जीती थीं।उस समय पार्टी का वोट शेयर 41.44 प्रतिशत था,जो इस बार घटकर 27.27 प्रतिशत पर पहुंच गया।

दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें तो इस बार कांग्रेस ने सिर्फ 9 वॉर्डों पर जीत हासिल की है।वोट शेयरिंग में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा और 11.68 प्रतिशत वोट ही कांग्रेस को मिले,वहीं साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 30 वॉर्डों पर जीत हासिल की थी और वोटिंग पर्सेंटेज 21.09 % था।पिछले वोट प्रतिशत के मुकाबले पार्टी को 10 प्रतिशत वोट शेयरिंग से हाथ धोना पड़ा है।इसके पीछे सबसे बड़ा कारण आम आदमी पार्टी ही रही।आप ने कांग्रेस के वोट शेयरिंग में सेंधमारी की है।

आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 134 वॉर्डों में ऐतिहासिक जीत हासिल की और वोट शेयरिंग 42.05 प्रतिशत रहा।2017 के पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मात्र 48 वॉर्डों पर जीत हासिल की थी और वोट शेयरिंग 26.23 % रहा था।इस बार आप ने लगभग 16 प्रतिशत ज्यादा वोट हासिल किए है।

अब हम बात गुजरात विधान सभा चुनाव की कर लेते हैं।इस चुनाव मेंआम आदमी पार्टी चुनाव मे 5 सीटें भी जीत ली हैं।अगर पार्टी के वोटिंग पर्सेंटेज की बात करें तो पार्टी ने 12.92 %वोट हासिल किए हैं।इस तरह से अगर देखा जाए तो यहां भी पार्टी ने कांग्रेस के वोट में सेंध लगाई है और अपने खाते में परिवर्तित किया है।हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं गई है लेकिन मतदान का 1.10% रहा।पहाड़ी राज्य में पार्टी का ये सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। दरअसल इस के पीछे हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने उतने दमखम के साथ चुनाव भी नहीं लड़ा,जितनी ताकत गुजरात और दिल्ली नगर निगम के चुनाव के लिए लगाई थी। उसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा है।

फिलहाल तीनो राजनीतिक दलों के हिस्से में गुजरात में बी जे पी सरकार बना रही है।हिमाचल प्रदेश मे - कांग्रेश सुखविंदर सिंह सुक्खुने मुख्य मंत्री की सपथ ले ली व सरकार बना ली है।वही दिल्ली नगर निगम में - आम आदमी पार्टी अपना मेयर बनाने के लिए चिन्तन मंथन - व रणनीति बनाने में मशगुल है।नुकसान व फायदें की बात है।कांग्रेश व आम आदमी पार्टी को फायदें हुए वह दिल्ली नगर निगम में 15 वर्षो से अभेद किला टुट गया है वही दुसरी ओर गुजरात में अभेद किला ना जीत बरकार रखी है ब्लकि पिछले सारे रिकार्ड तोड दिया है।वही तीन निर्दलीय विधायकों के साथ 

आप के एक विधायक के समर्थक की घोषणा से भाजपा की वम्पर जीत के जशन में चार चॉद लग गई।वही गुजरात में वोट प्रतिशत मिलने से आप राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी की श्रेणी में शामिल होने की खुशी में खल्लन पड़ गई है।राजनीति के शतंरज मे शह-मात का खेल ऑख-मिचौनी का चलते रहते है।

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