साहित्य सीमाओं से परे, प्रसार के लिए उचित अनुवाद जरूरी’- प्रो. फाबियां शार्तिअर

० अशोक चतुर्वेदी ० 
जयपुरः ‘रबीन्द्र नाथ टैगोर पर पीएचडी कर चुके प्रो. फाबियां ने टैगोर की रचनाओं का फ्रेंच में अनुवाद कर 1600 पन्नों की किताब तैयार की है। यह किताब यूरोप में काफी प्रचलित है। लेखक और अनुवादक सौदामिनी देव के साथ चर्चा में उन्होंने अनुवाद के तकनीकी पहलुओं और चुनौतियों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि साहित्य सीमाओं से परे है, किसी भी रचना का विश्व में प्रसार होने के लिए उसका उचित अनुवाद होना बेहद जरूरी है। अनुवाद भी एक कला की तरह है, शब्दकोश, प्रामाणिकता और अभिव्यक्ति का तरीका इसे बेहतर बना सकता है।

मेरे लिए टैगोर एक विरासत की तरह हैं, बचपन से गीतांजलि समेत उनकी अनेक रचनाओं को पढ़कर बड़ा हुआ। यही कारण है कि रबीन्द्र नाथ टैगोर मेरे बहुत करीब है, इससे मुझे उन पर शोध करने और किताब लिखने की प्रेरणा मिली।’ यह कहना है फ्रांसीसी लेखक प्रो. फाबियां शार्तिअर का। वे बुधवार 30 नवंबर को जवाहर कला केंद्र व एलायंस फ्रांसेइस के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साहित्यिक वार्ता में बोल रहे थे।

प्रो. फाबियां ने बताया कि उनके दादा और दादी के पास गीतांजलि की दो फ्रेंच प्रतियां रखी हुई थी। इसे पढ़कर वे बड़े हुए। हिंदी और बांग्ला पढ़ने के लिए वे दिल्ली यूनीवर्सिटी भी आए। उन्होंने बताया कि गुरु रबीन्द्र नाथ टैगोर के वेश के कारण यूरोप में उनकी रचनाओं को एक साधु के उपदेश की तरह लिया गया जबकि ये रचनाएं बहुत मायनों में खास है और विराट साहित्य है। आज भी रबीन्द्र नाथ टैगोर यूरोप में बड़े प्रसिद्ध है और उनकी रचनाओं को पसंद किया जाता है। क्या ऑटोमेटिक ट्रांसलेशन, ट्रांसलेटर्स के लिए चुनौती है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि तकनीक के इस दौर में ऑटो फंक्शन मददगार साबित हो सकते है पर ज्ञान बढ़ाने और प्रामाणिक अनुवाद के लिए किताब का सहारा लेना सबसे बेहतर है।

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