"रेणु गांव को लेकर आंचलिक उपन्यास लिखते थे जबकि विकास कुमार झा ने शहरी आंचलिकता का पहला प्रयोग किया है" - अनुज
० योगेश भट्ट ०
नई दिल्ली। विकास कुमार झा ने भारत के सबसे छोटे राज्य गोवा पर सबसे मोटा उपन्यास लिखा है। यह रेणु की परंपरा की अगली कड़ी का उपन्यास है। यह उपन्यास उस गोवा का साक्षात्कार कराता है, जिसे आपने अब तक न देखा है, न ही उसके बारे में सुना है। ‘राजा मोमो और पीली बुलबुल’ उपन्यास में लोगों के बेहिसाब बढ़ रहे वजन की समस्या को केन्द्र में रखा गया है। इस मामले में गोवा भारत के सभी प्रान्तों से आगे है। इस प्रकार संभवत: यह हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं में पहली कृति होगी जिसमें मोटापे, अधिक वजन की समस्या को विषय बनाया गया है। साहित्य अकादमी सभागार, रवीन्द्र भवन में विकास कुमार झा के उपन्यास 'राजा मोमो और पीली बुलबुल' पर आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कही।इस परिचर्चा का आयोजन राजकमल प्रकाशन और ‘रत्नव’ संस्था के संयुक्त तत्वावधान में किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने की। कार्यक्रम में लेखक-अनुवादक प्रभात रंजन और लेखक एवं फिल्मकार रमा पांडेय बतौर वक्ता मौजूद रहे। वहीं इसका संचालन कथाकार अनुज ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने अतिथियों और श्रोताओं के स्वागत किया। फिर उन्होंने विकास कुमार झा की पिछली कृतियों की विशेषताओं के बारे में बताया। इसके बाद संचालक अनुज ने 'राजा मोमो और पीली बुलबुल' उपन्यास और लेखक विकास कुमार झा का परिचय देते हुए उपन्यास के कथानक के बारे में श्रोताओं को अवगत किया।
इसके बाद उन्होंने परिचर्चा की सह-आयोजक 'रत्नम' संस्था और वक्ताओं का परिचय करवाया। 'राजा मोमो और पीली बुलबुल' उपन्यास के बारे में बात करते हुए अनुज ने इसे रेणु की परंपरा की अगली कड़ी बताया। उन्होंने कहा कि– "रेणु गांव को लेकर आंचलिक उपन्यास लिखते थे जबकि विकास कुमार झा ने शहरी आंचलिकता का पहला प्रयोग किया है।" कार्यक्रम में बोलते हुए 'रत्नव' की संस्थापक रमा पांडेय ने अपनी संस्था के बारे में कहा कि– "रत्नव एक संस्था है जो मौखिक कलाओं को सहेजने के लिए प्रयासरत है। इस संस्था ने अबतक करीब 25 नाटकों का मंचन किया है जिसमें झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों से लेकर स्थापित नाट्य कलाकारों तक सभी को मौका दिया है।" इसके बाद उन्होंने 'राजा मोमो और पीली बुलबुल' उपन्यास का अंशपाठ किया। उन्होंने कहा कि- "यह उपन्यास गोवा के अंतर्मन के दुख की ऊपरी मुस्कान व्यक्त करता है।”
वहीं ममता कालिया ने इस उपन्यास की विशेषताओं पर बात करते हुए कहा कि– "यदि आप मोटे हैं तो आपको यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास मोटापे को सेलिब्रेट करता है।" आगे उन्होंने कहा– "विकास कुमार झा ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक पत्रकार बेहतरीन रचनाकार हो सकता है।"
इस मौके पर बोलते हुए प्रभात रंजन ने कहा कि– "सबसे पहली बात यह भारत के सबसे छोटे राज्य गोवा पर आधारित हिंदी का सबसे मोटा उपन्यास है। विकास जी एक बड़े पत्रकार रहे हैं और तथ्यों, बारीक रिसर्च के महत्व को न सिर्फ़ बखूबी समझते हैं बल्कि इस उपन्यास में यह देखते ही बनता है। यह एक ऐसा उपन्यास है जिसमें गोवा की विविधता को बहुत ख़ूबसूरती से एक कथा सूत्र में पिरोया गया है। इसमें गोवा का रस भी है और सूखते जाने की गहरी उदासी भी।"
वहीं ममता कालिया ने इस उपन्यास की विशेषताओं पर बात करते हुए कहा कि– "यदि आप मोटे हैं तो आपको यह उपन्यास जरूर पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास मोटापे को सेलिब्रेट करता है।" आगे उन्होंने कहा– "विकास कुमार झा ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक पत्रकार बेहतरीन रचनाकार हो सकता है।"
इस मौके पर बोलते हुए प्रभात रंजन ने कहा कि– "सबसे पहली बात यह भारत के सबसे छोटे राज्य गोवा पर आधारित हिंदी का सबसे मोटा उपन्यास है। विकास जी एक बड़े पत्रकार रहे हैं और तथ्यों, बारीक रिसर्च के महत्व को न सिर्फ़ बखूबी समझते हैं बल्कि इस उपन्यास में यह देखते ही बनता है। यह एक ऐसा उपन्यास है जिसमें गोवा की विविधता को बहुत ख़ूबसूरती से एक कथा सूत्र में पिरोया गया है। इसमें गोवा का रस भी है और सूखते जाने की गहरी उदासी भी।"
आगे उन्होंने कहा– "यह उपन्यास गोवा की उस पहचान से इतर जाकर बात करता है जिसके लिए उसे जाना जाता है।" वहीं विकास कुमार झा के लेखन के लिए विषयों के चयन और उसकी बारीकी पर बात करते हुए उन्होंने कहा– "ज्यादातर लेखक जिस समाज में रहते हुए भी उसको उसे जितना बारीकी से नहीं देख पाते, विकास कुमार झा ने अपने हर उपन्यास में एक नए समाज को उससे भी बारीकी से देखा है, उस पर लिखा है।" उपन्यास के लेखक विकास कुमार झा ने कहा कि– "मैं हिंदी में भारत का लेखक हूँ।" आगे उन्होंने कहा– "पत्रकारिता के पेशे में रहने का यह फायदा है कि यह आपको साहित्य लेखन के लिए कच्चा माल देती है।"
इसके बाद उन्होंने कहा कि– "यह संयोग की बात है कि आज जब हम दिसंबर 2022 में बैठकर गोवा पर लिखे इस उपन्यास पर बातचीत कर रहे हैं, 1961 में इसी दिसंबर में गोवा को पुर्तगालियों से मुक्ति मिली थी।" फिर उन्होंने उपन्यास लिखने से पहले अपनी पहली गोवा यात्रा की कहानी और उससे जुड़े संस्मरण श्रोताओं से साझा किए। कार्यक्रम के अंत में रमा पांडेय ने लेखक और राजकमल प्रकाशन को इस उपन्यास के प्रकाशन के लिए शुभकामनाएं दीं और सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
किताब के बारे में
गोवा भारत का सबसे छोटा प्रान्त है। इसका क्षेत्रफल मात्र 3,702 वर्गमील है और यह दो जिलों का प्रान्त है—उत्तरी गोवा और दक्षिणी गोवा। अरब सागर, मनोहारी जंगल, छोटे-छोटे अनूप पहाड़, काजू के सघन बगीचे, प्रसिद्ध मद्य फ़ेनी, दूर-दूर तक फैले धान के खेत, हमेशा आनन्द से छलकते समुद्र-तट और देश-विदेश के पर्यटकों से सुसज्जित इस नन्हे प्रान्त की शक्ल बाहर से जगमग ‘परी-लोक’ सरीखी है। पर इसकी आत्मा आज भी गहरे अवसाद में है। 1947 में भारत की आज़ादी के बावजूद अगले 14 वर्षों तक गोवा पुर्तगाली शासन में रहा और एक लम्बे मुक्ति संग्राम के बाद इसे 1961 में स्वतंत्रता मिल सकी। पर गोवा को आज तक अपनी विडम्बनाओं से मुक्ति नहीं। इस स्थायी अवसाद की स्थिति में छोटे क़द-बुतवाले गोवा का वज़न बेहिसाब बढ़ चुका है। अत्यधिक वज़न की समस्या से जूझते गोवा का स्थान वज़न के मामले में भारत के अन्य सभी प्रान्तों से ऊपर है।
प्राचीन काल से परम्परावादी इस प्रान्त को निरन्तर सामाजिक-सांस्कृतिक पतन ने भीतर से क्षयग्रस्त कर रखा है। ज़माने से वैश्विक अय्याशी का केन्द्र रहा गोवा खनन माफ़िया, ड्रग माफ़िया, गोवा को कंक्रीट का जंगल बनानेवाले भवन माफ़िया और वन-माफ़िया के करतबों से चुपचाप ख़ून के आँसू टपका रहा है। हिन्दी साहित्य में गोवा सदैव से हाशिये पर रहा है। पहली बार हिन्दी साहित्य में गोवा को लेकर बड़े फ़लक पर लिखा गया यह बृहत् उपन्यास देश के सबसे छोटे प्रान्त को केन्द्रीय विमर्श में लाने की पेशकश करता है।
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