"फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हो, लेकिन सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है" - अनुपम खेर

० योगेश भट्ट ० 
• नोबल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की किताब 'तुम पहले क्यों नहीं आए' का लोकार्पण  कॉन्स्टिट्यूशन क्लब (एनेक्सी) में हुआ। • 'तुम पहले क्यों नहीं आए' किताब में दासता और उत्पीड़न की कैद से प्रताड़ित बच्चों की बारह सच्ची कहानियां संकलित है। • राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है कैलाश सत्यार्थी की किताब।"इन कहानियों को पढ़कर अगर आपकी आँखों में आंसू आते हैं तो वह आपकी इंसानियत का सबूत है।" ―कैलाश सत्यार्थी"फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हो, लेकिन सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है।" ―अनुपम खेर
नई दिल्ली । ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ में दर्ज हर कहानी अँधेरों पर रौशनी की, निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की, क्रूरता पर करुणा की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की इस पुस्तक का लोकार्पण  कान्स्टिटूशन क्लब रफ़ी मार्ग में राजकमल प्रकाशन एवं इंडिया फॉर चिल्ड्रेन के संयुक्त तत्वावधान किया गया।‘तुम पहले क्‍यों नहीं आए’ में जिन बच्‍चों की कहानियाँ कही गई हैं उनमें से कई को संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसे वैश्विक मंच से विश्‍व नेताओं से मुखातिब होने और बच्‍चों के अधिकार की माँग उठाने के मौके भी मिले। 

इसके बाद बेहतर बचपन को सुनिश्चित करने के लिए कई राष्‍ट्रीय- कार्यक्रम से ठीक पहले बच्चों के 'हम निकल पड़े हैं' समूह गान और नारों ने वातावरण को उल्लास से भर दिया। इस दौरान बच्चों ने "हर बच्चे का है अधिकार, रोटी खेल पढ़ाई प्यार" का नारा लगाया। इसके तत्काल बाद प्रख्यात अभिनेता अनुपम खेर, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी,श्रीमती सुमेधा कैलाश, राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी और पुस्तक के नायक व पूर्व बाल मजदूरों ने किताब का लोकार्पण किया।

इस मौके पर अपने संबोधन में अनुपम खेर ने कहा, “फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हो, लेकिन सत्यार्थी जी ने असली नायकों को बनाया है। वे खुद में एक प्रोडक्शन हाउस हैं।” उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती संघर्ष और बच्चों के लिए काम करने वाले अपने फाउंडेशन के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “फिल्मों में जो नायक नायिका होती हैं वे नकली होते हैं, असली नायक नायिका तो इस किताब के बच्चे हैं, जिन्हें कैलाश सत्यार्थी जी ने बनाया है़। ये आपकी ही नहीं देश की भी पूंजी हैं। मैं लेखक के साथ राजकमल प्रकाशन को भी बधाई देता हूँ कि उन्होंने ऐसी किताब प्रकाशित की है़।”

इसके बाद उन्होंने किताब की भूमिका के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए। उन्होंने मंच से ही कैलाश सत्यार्थी से उनके काम के बारे में अनौपचारिक बातें की और उनके शुरू से आज तक के अनुभव साझा किये। कैलाश सत्यार्थी ने इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। साथ ही उस संवेदना को भी रेखांकित किया, जिसे वे अपने इन कामों की असली उपलब्धि मानते हैं। अनुपम खेर से बातचीत करते हुए कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि अगर इन कहानियों को पढ़कर आपकी आंखों में आसूं आते हैं तो वह आपकी इंसानियत का सबूत है। बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम खुद भी अपने भीतर के बच्चे को पहचानें।

 उन्होंने आगे कहा कि “इस किताब को कागज़ पर लिखने में भले ही मुझे 12-13 साल लगे हों लेकिन इसमें जो कहानियां दर्ज हैं उन्हें मेरे हृदय पटल पर अंकित होने में 40 वर्षों से भी अधिक समय लगा है। मैं साहित्यकार तो नहीं हूं पर एक ऐसी कृति बनाने की कोशिश की है जिसमें सत्य के साथ साहित्य का तत्व भी समृद्ध रहे। ये कहानियां जिनकी हैं, मैं उनका सहयात्री रहा हूं; इसलिए जिम्मेदारी बढ़ जाती है। स्मरण के आधार पर कहानियां लिखीं, फिर उन पात्रों को सुनाया जिनकी ये कहानियां हैं। इस तरह सत्य घटनाओं का साहित्य की विधा के साथ समन्वय बनाना था। मैंने पूरी ईमानदारी से एक कोशिश की है। साहित्य की दृष्टि से कितना खरा उतर पाया हूं ये तो साहित्यकारों और पाठकों की प्रतिक्रिया के बाद ही कह सकूंगा।”

लोकार्पण के मौके पर अपने विचार रखते हुए राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा कि "यह हमारे लिए विशेष खुशी का अवसर है। इसका कारण केवल यह नहीं है कि आज हमारे द्वारा प्रकाशित ऐसी एक किताब का लोकार्पण होने जा रहा है जिसके लेखक नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी जी हैं। और जिनके हाथों लोकार्पण हो रहा है वे अनुपम खेर जी विख्यात अभिनेता हैं। इन आदरणीय विभूतियों के साथ-साथ आप सबके साहचर्य की खुशी बेशक हमें है। पर सबसे बड़ी खुशी इस बात की है कि 'तुम पहले क्यों नहीं आये' के जरिये हमें उन बच्चों के बारे में जानने का मौका मिला जो अकल्पनीय, अमानवीय परिस्थितियों से होकर गुजरने के बावजूद अन्य संकटग्रस्त बच्चों की मुक्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।”

आगे उन्होंने कहा, “मैं दोहराना चाहता हूँ कि इस पुस्तक को प्रकाशित करना हमारे लिए विशेष रहा है। कारण कि यह बच्चों के बारे है, वह भी उन बच्चों के बारे में जिन्हें समाज की विसंगतियों का शिकार होना पड़ा, जिन्हें हर तरह के अभाव और अपमान से गुजरना पड़ा। कैलाश सत्यार्थी और उनके ‘बचपन बचाओ अभियान’ के चलते वे उन अमानवीय हालात से मुक्त होकर आज हमारे बीच हैं, नए जीवन के सपने देख रहे हैं। यह किताब हमें यह भी याद दिलाती है कि अनेक बच्चे आज भी ऐसी ही परिस्थितियों में जीवन बिता रहे होंगे, उनके लिए हमें लगातार काम करते रहना होगा। सिर्फ संगठन के स्तर पर नहीं, निजी तौर पर भी एक जागरूकता पैदा करनी होगी ताकि समाज खुद भी उन बच्चों के प्रति संवेदनशील बने, और ऐसे हालत ही न बनने दे कि भविष्य के ये नागरिक इस तरह नष्ट हों। 

गुलामी अभिशाप है। हमारे समय में भी गुलामी की मौजूदगी बहुत चिंता की बात है। लेकिन यह एक कठोर सचाई है कि हमारे समय में भी गुलामी शेष है। बच्चों को भी गुलामी से बख़्शा नहीं जाता। पर एक और सचाई है कि हमारे समय में कैलाश सत्यार्थी जैसे लोग हैं जो बच्चों को गुलाम बनाये जाने के खतरों से पूरी दुनिया को अगाह कर रहे हैं। सत्यार्थी जी ने बचपन पर मंडराते खतरों के बारे में बताया है। साथ ही बच्चों को उन खतरों से मुक्त कराने का कार्य जान का जोखिम उठा कर भी किया है। अपनी किताब में उन्होंने अपने अनुभव और संस्मरण लिखे हैं यह एक प्रेरक दस्तावेज बन गया है। बचपन अगर सुरक्षित नहीं है तो दुनिया का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता। कैलाश जी किताब इस सचाई को रेखांकित करती है और बचपन को हर प्रकार के शोषण से मुक्त रखने में छोटे से छोटे प्रयास की आवश्यकता व उसकी सार्थकता को स्पष्ट करती है।”

 इस अवसर पर पुस्तक के नायक बच्चों पर केंद्रित एक लघु फ़िल्म का प्रदर्शन किया गया। बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग प्रकारों और विभिन्न इलाक़ों तथा काम-धंधों में होने वाले शोषण के तौर-तरीक़ों को समझा जा सकता है। जैसे; पत्थर व अभ्रक की खदानें, ईंट-भट्ठे, क़ालीन कारख़ाने, सर्कस, खेतिहर मज़दूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, दुर्व्यापार (ट्रैफ़िकिंग), यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मज़दूरी और नरबलि आदि। हमारे समाज के अँधेरे कोनों पर रोशनी डालती ये कहानियाँ एक तरफ हमें उन खतरों से आगाह करती है जिनसे भारत समेत दुनियाभर में लाखों बच्चे आज भी जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ धूल से उठे फूलों की ये कहानियाँ यह भी बतलाती हैं कि हमारी एक छोटी-सी सकारात्मक पहल भी बच्चों को गुमनामी से बाहर निकालने में कितना महत्त्वपूर्ण हो सकती है, नोबेल पुरस्कार विजेता की कलम से निकली ये कहानियाँ आपको और अधिक मानवीय बनाती हैं, और ज़्यादा ज़िम्मेदार बनाती है।

लेखक के बारे में
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी, 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय (अब बरकतुल्ला विश्वविद्यालय) से बी.ई. और उसके बाद ट्रांसफ़ॉर्मर डिज़ाइन में मास्टर्स डिप्लोमा किया। किशोरावस्था से ही सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध मुखर रहे। छुआछूत, बाल विवाह आदि के ख़िलाफ़ अभियान चलाया। उनकी अगुआई में 1981 से अब तक, सवा लाख से अधिक बच्चे बाल मज़दूरी और ग़ुलामी से मुक्त कराए जा चुके हैं। इस क्रम में छापामार कार्रवाइयों के दौरान कई बार जानलेवा हमले भी झेले। 1998 में ‘बालश्रम विरोधी विश्वयात्रा’ का आयोजन किया जो 103 देशों से होकर गुज़री और लगभग छह महीने चली। परिणामस्वरूप ख़तरनाक क़िस्म की बाल- मज़दूरी रोकने के लिए अन्तरराष्ट्रीय क़ानून बना जिसे सभी राष्ट्र लागू कर चुके हैं। विश्वभर के बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए 1999 में ‘ग्लोबल कैंपेन फ़ॉर एजुकेशन’ की शुरुआत की। 

शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए 2001 में ‘भारत यात्रा’ की। परिणामस्वरूप देश के संविधान में संशोधन हुआ और शिक्षा का अधिकार क़ानून बना। भारत में बाल यौन शोषण और ट्रैफ़िकिंग के ख़िलाफ़ 2017 में 11 हज़ार किलोमीटर की ‘भारत यात्रा’ की जो यौन अपराधों के लिए सख़्त क़ानून के निर्माण में उत्प्रेरक बनी। बाल मज़दूरी और दुर्व्यापार रोकने के लिए भारत और दक्षिण एशियाई देशों में कई मार्च आयोजित किए। ग़ुलामी और बाल मज़दूरी से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा और नेतृत्व निर्माण के लिए मुक्ति आश्रम, बाल आश्रम और बालिका आश्रमों की स्थापना की। मानवता के प्रति उल्लेखनीय योगदानों के लिए उन्हें ‘नोबेल शान्ति पुरस्कार’ (2014), ‘डिफ़ेंडर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी अवॉर्ड’, ‘मेडल ऑफ़ इटैलियन सीनेट’, ‘रॉबर्ट एफ़. कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड’, ‘हार्वर्ड ह्यूमैनिटेरियन अवॉर्ड। 

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