जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल फिल्मों की स्क्रीनिंग के साथ-साथ विभिन्न गतिविधियों की शुरूआत

० आशा पायल ० 
जयपुर -ऑयनॉक्स के 6 स्क्रीन्स पर चल रहे पांच दिवसीय जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल फिल्मों की स्क्रीनिंग के साथ-साथ विभिन्न गतिविधियों की शुरूआत हो गई।  फिल्म से जुड़ी देश की नामी हस्तियों ने शिरकत की तथा बड़ी संख्या में शहर के सिने प्रेमियों ने अपनी अपनी पसंद के अनुरूप फिल्मों का लुत्फ उठाया। फिल्म अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे, जाने-माने फिल्म स्क्रिप्टराइटर कमलेश पांडे, पंकज पाराशर, विनय वायकुल, यूनाइटेड किंगडम की फिलिपा फ्रिस बी, बांगलादेश के प्रसून रहमान, इंडियन फिल्म डायरेक्टर आरती बागड़ी, ज़ी-5 की चीफ कन्ट्रोलर निमिशा पाण्डेय और मैक्सिकन फिल्म डायरेक्टर जुआन आर्के ने शिरकत की।
पहले सत्र में सिनेमा कल, आज और कल पर प्रसिद्ध लेखक विनोद भारद्वाज से हुई चर्चा में पंकज पाराशर ने कहा जो लोग कहते हैं कि सिनेमा खत्म होने वाला है तो ये ग़लत है हां ये बात सही है कि सिनेमा में दबलाव का दौर चलता रहा है और चलता रहेगा। पहले पायरेसी आई तो लोगों ने कहा सिनेमा खत्म, कोविड आया तो लोग बोले सिनेमा खतरे में है फिर ओटीटी की शुरूआत हुई तब भी लोगों ने यही शंका व्यक्त की पर सिनेमा इन तमाम आशंकाओं के बीच भी चलता रहा और आगे भी चलता रहेगा।
स्क्रिप्ट राइटर कमेलेश पांडे ने कहा कि बॉलीवुड में एक साल में एक हजार फिल्में बनती हैं लेकिन 4-5 ही कामयाब हो पाती हैं। इसके लिए उन्होंने बुनियादी गलती को जिम्मेदारी बताया। उन्होंने कहा कि एक हजार पौधों की बगिया में चार-पांच में ही फूल खिलें अथवा फल आएं तो इसके लिए माली ही जिम्मेदार माना जाएगा। इसकी वजह है फिल्म उद्योग में जो लोग सक्रिय हैं उनमें से अधिकांश ऐसे ‘स्कूल ड्रॉप आउट’ हैं जिन्हें हमारी जड़ों का ज्ञान नहीं है। इसलिए बॉलीवुड को अब हमारी जड़ों और पब्लिक सैंटीमेंट को पहचानना होगा नही ंतो दुनिया उन्हें समझा देगी।

गजनी फिल्म के सह लेखक रह चुके विनय वायक्कुल ने कहा कि भगत सिंह और गांधी जैसी कहानियों को कल भी पसंद किया जाता था, आज भी किया जा रहा है और कल भी किया जाता रहेगा। सिनेमा की सबसे बड़ी कमी ये है कि उसमें हमारी सोसाइटी का रिफलेक्शन नहीं आता है और जब तक यह नहीं होगा सिनेमा सफल नहीं हो सकता। हमारी सोच का रिफलेक्शन सिनेमा में बेहद जरूरी है। इसके अलावा अच्छी कहानी को यदि अच्छे कलाकार मिल जाएं तो फिल्म निश्चित ही सफल होती है। इस दौरान ‘ऑफ्टर थियेटर एंड ओटीटी, फ्यूचर टैक्नोलॉली फॉर वॉचिंग फिल्म्स’, ‘हाउ टू मेक लो बजट फिल्म्स’, मार्केट रिकवरी और ‘वेब सीरीज़ वाला आया है’ जैसे विषयों पर फिल्म विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किए।

 राजस्थान के चूरू जिले के बिसाउ कस्बे में पिछले 167 साल से खेली जा रही मूक रामलीला पर फिल्मकार रजनी आचार्य की बनाई डॉक्यूमेंट्री की लांचिंग की गई। ये अनूठी रामलीला यहां मंचीय औपचारिकताओं से परे खुली सड़क पर नवरात्रों में खेली जाती है जहां दो सौ मीटर की सड़क पर मिट्टी बिछा दी जाती है सड़क के एक ओर भगवान श्रीराम की संसार तथा दूसरी ओर राक्षसों का संसार रहता है। इस मौके पर रामलीला के पात्र राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान और रावण वेशभूषा पहनकर दर्शकों के बीच आए। समाज सेवी कमल पोद्दार ने इस परंपरा की पूरी जानकारी दी।

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