जयपुर इंटरनेशल फिल्म फैस्टिवल : देश दुनिया से आए फिल्मकारों और अभिनेताओं-अभिनेत्रियों के साथ विचार मंथन

० आशा पटेल ० 
जयपुर - यूनाइटेड किंगडम से आईं फिल्मकार फिलिप्पा फ्रिस्बी भारतीय परिवेश और यहां बनने वाली डॉक्यूमेंट्रीज़ से काफी प्रभावित हैं। फिलिप्पा बताती हैं कि उन्होंने हालांकि यहां का बॉलीवुड और उसकी फिल्में नहीं देखी हैं लेकिन यहां बनने वाली डॉक्यूमेंट्रीज से वो बहुत प्रभावित हैं, यहां के वृत्त चित्र समाज की सच्चाई की सामने रखते हैं जो जैसा है वैसा ही दिखाते हैं। उन्होंने बताया कि वो सबसे पहले 1998 में भारत आई थीं तब उन्होंने यहां हो रहे कंुभ पर फिल्म ‘द रिवर’ का निर्माण किया। इसके बाद शादी होने और बच्चों के पालन पोषण के कारण उन्होंने फिल्म निर्माण छोड़ दिया यहां तक कि अपना कैमरा भी बेच दिया। इसके बाद 2010 में वो फिर भारत आईं और वाराणसी के उस पुजारी से मिलीं जिसके साथ उन्होंने 1998 में काम किया था। 
इसके बाद उन्होंने यहां के स्ट्रीट चिल्ड्रन्स की समस्याओं और उन पर बढ़ रहे ड्रग्स के दुष्प्रभावों पर डॉक्यूमेंट्री ‘द सर्किल’ का निर्माण किया। 2017 में उन्होंने यहां की मखखम्ब कला पर आधारित फिल्म ‘रेसलर्स केन’ का निर्माण किया। उन्होंने कहा वर्तमान समय फिल्मों के लिए काफी बेहतर है क्योंकि फिल्मों को लेकर दुनिया भर के फिल्मकारों की सोच काफी विस्तृत हो गई और लोग एक-दूसरे देश से विचारों का अदान प्रदान कर फिल्म बनाने लग गए हैं।
लॉक डॉउन में घर में कैद पति, पत्नी और वहां पनप रहे कॉकरोच को लेकर उपजी अनुभूतियों पर बनी फिल्म ‘रोच्ड’ की अभिनेत्री दिया डे का कहना है कि जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल दुनिया का ऐसा पहला फैस्टिवल है जो फिल्मों की स्क्रीनिंग के साथ साथ उनके प्रमोशन के लिए भी काम करता है। यहां आकर पारिवारिक माहौल मिलता है जहां फिल्मकार एक दूसरे से मिलते हैं और विचारों का खुलकर आदान प्रदान भी करते हैं। दिया ने बताया कि कोरोना काल में बनी उनकी फिल्म रोच्ड को अब दुनिया भर में 42 विभिन्न अवार्ड तथा उन्हें खुद को 11 बार बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड भी मिल चुके हैं। 

उन्होंने बताया कि उन्होंने एक राजस्थानी फिल्म ‘बोझ’ में भी काम किया है। बंगाली भाषी होने के बावजूद राजस्थानी भाषा में काम करना रोचक अनुभव रहा उन्होंने अपने को-एक्टर की मदद से राजस्थानी भाषा को भावों को समझा और फिर अपने अभिनय में ढालकर संवाद बोले। उन्होंने कहा कि आज अधिकांश युवा बिना ट्रेनिंग ही फिल्मों में भाग्य आजमाने निकल पड़ते हैं और यही प्रवृत्ति उनकी असफलता और हताशा का सबसे बड़ा कारण बन जाती है।

इससे पूर्व जयपुर फिल्म मार्केट में ‘हंग्री ऑडियन्स: न्यू जैनेर्स इन ओटीटी बाय बीबीसी स्टूडियोज़’ विषय पर चली चर्चा में बीबीसी स्टूडियोज़ इंडिया प्रोडक्शन के जनरल मैनेजर समीर गोगटे ने कहा कि बीबीसी अपनी पसंद से फिल्में अथवा कार्यक्रम तय नहीं करता है। इस क्षेत्र में उसकी भूमिका ‘शैफ’ की तरह है, वो वही कार्यक्रम अथवा फिल्में बनाता है जो उसके दर्शक देखना पसंद करते हैं। भारतीय टेलिविज़न एक ही प्रारूप में कार्यक्रम दर्शकों पर थोपता है और यही उसकी असफलता की वजह भी बन रहा है। बीबीसी थीम चाहे पुरानी हो लेकिन उसको प्रस्तुत वो दर्शकों की पसंद के अनुरूप ही करता है।

 वर्तमान में लोगों के पास समय नहीं है कि वो कहानी की शुरूआत से जुड़कर अंत तक बंधे रहें, आज के दर्शकों को हर पांच मिनट में एक मर्डर चाहिए। बस इसी सोच को ध्यान में रखकर हम ओटीटी प्लेट फार्म पर फिल्में, वेब सीरीज़ और कार्यक्रम परोस रहे हैं जो कि एक शैफ की भूमिका जैसा है। जिफ के फाउन्डर हनु रोज ने सीमर गोगटे से सवाल किया भारत के सौ साल के इतिहास में से कोई दो ऐसी फिल्मों के नाम बताएं जो दर्शकों की मानसिकता पर उनके अनुसार खरी उतरी हों। इस सवाल के जवाब में समीर ने ‘तारे जमीं पर’ और ‘दिल चाहता है’ के नाम लिए।

राजस्थानी सिनेमा पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोडा ने फिल्म डायरेक्टर दीपांकर प्रकाश, स्क्रिप्ट राइटर रामकुमार सिंह और फिल्म डायरेक्टर अर्जुनन एकलव्य एस से बातचीत की। स्क्रिप्ट राइटर रामकुमार सिंह ने कहा मुझे कहानी कहनी है पर उसे कहना कैसे हैं? यही आना फिल्म बनाने के लिए बहुत जरूरी हैं। असल में भाषा यूनिवर्सल होती हैं। उन्होंने कहा जहां तक राजस्थानी भाषा का सवाल है तो अभी यूट्यूब पर कई राजस्थानी चौनल्स के सब्सक्राइबर हैं, बाजार अपना रास्ता ढूंढ ही लेता है यह सतत प्रवाह हैं जिसे कोई रोक नहीं पाएगा। उन्होंने कहा फिल्म बनाना एक गंभीर काम है जिस फिल्म की टिकट ही नहीं बिकती मैं उन्हें फिल्म मानता ही नहीं अच्छा कंटेंट बनाया जाए तो ऑडियंस अपने आप मिल ही जाती हैं।

फिल्म डायरेक्टर दीपांकर प्रकाश ने बताया कि राजस्थान में इतनी कहानियां है इतने लेखक हैं जिन पर अभी सही तरीके से काम ही नहीं हुआ। यह विडंबना है कि राजस्थान के लोग आपस में इस भाषा को बोलचाल में काम ही नहीं लेते। दीपांकर ने कहा अभी जो राजस्थानी फिल्में बन रही हैं उसमें वही सब हीरो- हीरोइन का मिलना-बिछड़ना हैं कंटेंट पर काम ही नहीं हो रहा और मैं वही करना चाहता हूं।
रिप्रेजेंट करने के लिए भाषा जरूरी है पर उससे भी महत्वपूर्ण है इमोशनस वो ना हो तो कोई फिल्म अच्छी नहीं बन सकती।चार्ली चौपलिन ने अपने भावों से ऑडियंस के दिल में जगह बनाई वहां कोई भाषा नहीं थी।

मास्टर क्लास लेते हुए पंकज पराशर ने अपने फिल्म इंडस्ट्री सफर के कई मजेदार किस्से बताएं। उन्होंने बताया कि कैसे गोल्ड मेडलिस्ट होने के बावजूद इंडस्ट्री ने हर बार अनदेखा किया । जुनून के साथ साथ खुद पर भरोसा कभी कम होने नहीं दिया इसीलिए आज इस मुकाम पर हूं। दर्शकों के सवालों का जवाब देते हुए पराशर ने अमिताभ बच्चन ,सलमान खान ,श्रीदेवी और अक्षय कुमार के भी कई मजेदार किस्से सुनाए। चालबाज की शूटिंग के किस्से बताते हुए उन्होंने कहा कि अन्नू कपूर, रोहिणी हट्टगंडी और शक्ति कपूर तीनों ने अपना बेस्ट देने के लिए जबरदस्त काम किया।

जयपुर इंटरनेशल फिल्म फैस्टिवल में सोमवार के आयोजन योगा थीम सहित विभिन्न विषयों पर फिल्मों की स्क्रीनिंग सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तकदोपहर 12.00 बजे फिल्म स्टार स्व. इरफान पर अजय ब्रह्मात्ज की लिखी पुस्तक ‘और कुछ पन्ने कोरे रह गए: इरफान’। इस मौके पर इरफान के पुत्र बाबिल खान भी अपने अनुभव शेयर करेंगे।दोपहर 12.30 बजे बर्थ सेनेटरी सेलिब्रेशन ऑफ लेजेंड्री फिल्म मेकर सत्यजीत रे
दोपहर 2 बजे ग्लोबल फिल्म टूरिज्म समिट: ओपन डिस्कशन ऑन इंडियन स्टेट्स फिल्म पॉलिसीज़ फॉर दी बेनिफिट ऑफ फिल्म प्रोड्यूसर्स एंड डायरेक्टर्सदोपहर 3.00 बजे डू वी नीड फिल्म सिटी न दी करेंट सीनेरियो: ओपन डॉयलॉग 3.35 बजे सपोर्टिंग दी वॉइस ऑफ ईरान थ्रू इरानियन म्यूज़िक 4 बजे लाइव परफॉर्मेंस बाय प्लेबैक सिंगर रवीन्द्र उपाध्याय

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