गणतन्त्र दिवस पर सरल मानक संस्कृत योजना का विमोचन

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली,
'संक्षेपग्रन्थहार 'योजना का विमोचन किया गया है जिसका लक्ष्य इस वर्ष संस्कृत दिवस अर्थात रक्षा बंधन के दिन सरल मानक संस्कृत ( एस एस एस) लेखन और प्रकाशन के प्रोत्साहन के लिए अनेक ग्रंथों को प्रकाशित करना है क्योंकि सरल मानक संस्कृत समय की मांग है ।इसी क्रम में 'दीक्षा 'पुस्तक के तीसरे,चौथे तथा पांचवें खंडों के लिए भी तैयारी की जा रही है । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने 74वें गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण कर देश के विविध राज्यों में अवस्थित इनके परिसरों के छात्र -छात्राओं तथा निदेशकों, संकाय सदस्यों तथा कर्मचारियों को संबोधित करते कहा कि यह जो कहा जाता है कि भारत लोकतन्त्र की जननी है ,

 उसका अर्थ यह है कि भारतवर्ष प्राचीन काल से ही इस भावना के उत्स के रुप में रहा है और आज भी है । गणराज्य की भावना मात्र राजनैतिक नहीं , अपितु मानसिक स्थिति है जिसके मूल में लोकहित की चिन्तन शक्ति ही महत्त्वपूर्ण होती है। लोकतन्त्र या प्रजातन्त्र के ऐसे तथ्यों को को लेकर रामायण, महाभारत तथा स्मृतियों आदि में पर्याप्त रुप में वर्णन है । राजा कौन होगा या कौन नहीं होगा ।इस निर्णय की शक्ति प्रजातन्त्र में ही होती है ।

प्रो वरखेड़ी ने यह भी कहा कि अपने पूरे विश्वविद्यालय परिवार के समक्ष यह भी कहना चाहता हूं कि यह साल इस विश्वविद्यालय के लिए शैक्षणिक गुण उत्कर्ष वर्ष के रुप में मनाने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए ।इसका कारण यह भी है कि इस साल जी-20 के नेतृत्व का अवसर भारत को ही मिला है जिसका ध्येय वाक्य 'वसुधैव कुटुम्ब ' है ।इस अवसर पर संस्कृत का यह ध्येय वाक्य विश्व में मानसिक परेशानी तथा बड़े देशों से छोटे देशों की टकराहट आदि को कम करने में मील का पत्थर भी साबित हो सकता है ।

भारत में जी-20 के आयोजन के कारण यह अवसर आ गया है कि भारतीय ज्ञान,कला , संगीत तथा वैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में विश्व के लिए जो योगदान रहा है ,उसे इस सम्मेलन में पधारे देशों के सामने रखने का सुअवसर मिलेगा ।इसके लिए संस्कृत तथा इसे पढ़ने पढ़ाने वालों की भी विशेष भूमिका होगी । अतः राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में जिस भगिनी भाषा (मल्टी डिसिप्लिनरी)के साथ अनुसंधान पर बल दिया गया है , उसे मात्र उच्चतर शिक्षा के पीएचडी आदि के स्तर पर ही नहीं , बल्कि स्नातक आदि स्तर से भी इस दिशा में थोड़ा पहल होना चाहिए । इसके लिए अपने विश्वविद्यालय के प्रत्येक परिसर में छात्र शोध प्रकोष्ठ भी खोला जाना चाहिए ।

 अपने उद्बोधन में छात्र छात्राओं के लिए शिक्षा,शोध तथा स्वाध्याय पर बल देते स्वाध्याय को तप की तरह कहा और आचार्यों को भी सर्वदा प्रवचन ,प्रकाशन तथा प्रशिक्षण के लिए कटिबद्ध रहने लिए आह्वान किया है।तभी विश्वविद्यालय का यह वर्ष शैक्षणिक उत्कर्ष का वर्ष हो पाएगा । समाज तथा देश की सम्यक् प्रगति के लिए इस गणतन्त्र दिवस तथा सारस्वत अनुष्ठान के दिन ऐसा करने के लिए संकल्प किया जाना चाहिए ।

सीएसयू, दिल्ली के कुलपति प्रो रणजित कुमार बर्मन ने सभी को स्वागत करते गणतन्त्र दिवस के महत्त्व तथा इसकी प्राचीनता पर प्रकाश डालते कहा कि विश्व में इसकी प्राचीनता वैशाली के लिच्छवी गणराज्य आदि से भी लगाया जा सकता है । उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय में पूर्ण कालिक कुलपति के आने से अपने विश्वविद्यालय के अकादमिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में गणराज्योन्मुखी वातावरण बना है । कुलपति के ओएसडी प्रो कुलदीप शर्मा ने इस कार्यक्रम का संचालन किया तथा डा गणेश पण्डित ने कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी जी के एक वर्षीय कार्यकाल पर संक्षिप्त रुप में प्रकाश डाला ।इस कार्यक्रम के बाद वसंत पंचमी के उपलक्ष्य पर विधिवत सरस्वती पूजन भी किया गया । साथ ही हिन्दी दिवस से जुड़े विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया ।

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