आदमी को चाहिए कि वह अपने मन में छिपे उत्साह और उमंग को जगाएं

० डॉ. वहाब, एसोसिएट प्रोफेसर, तमिलनाडु ० 
तनाव में आदमी आगे बढ़ नहीं सकता है । यह तनाव उस रेत के समान होता है जिससे होकर ज़िंदगी की नैया गुज़र नहीं सकती है। जिसका मन तनाव से भरा हो, वहां सकारात्मक सोच का अभाव शुरु होता है। हर मोड़ पर या हर काम-काज में उसे कोई ना कोई कमी दिखती है या फिर सफलता न मिलने की वह पूर्व कल्पना से परेशानी । इससे किसी भी प्रकार की सक्रियता या प्रयास से दूर रह जाता है। परिणामतः उसका मन निराशा से भर जाता है। निष्क्रिय बैठे रहने के कारण स्वभाविकतः उसका मन नकारात्मक विकारों से ग्रस्त हो जाता है। स्वयं को दोषी मानने की मानसिकता भी आदमी को तनावग्रस्त बनाती है। कुछ लोग अत्यधिक कार्यभार से तनाव को भोगते हैं । कुछ लोग निष्क्रियता से उत्पन्न तनाव का शिकार बनते हैं। ये दोनों प्रकार के तनाव मन में छिपी सकारात्मकता को नष्ट करते हैं।

ऐसे में आदमी को चाहिए कि वह अपने मन में छिपे उत्साह और उमंग को जगाएं। किसी भी स्थिति में तनाव का अनुभव न करें। अपने परिवार से समय बितायें। हर स्थिति में सक्रिय रहें। खेल-कूद जिसे आपने समय के साथ भुला दिया है, उसमें पुनः रुचि लें। अपने अंतरंग मित्रों से अपनी समस्या या परेशानी को शेयर करें। इससे तनाव तो कम होगा ही, आपका उत्साह बढ़ेगा जिसके सहारे आप अपने कार्य के अत्यधिक भार को हल्का कर पाने में मदद पाएंगे। हमारा व्यवहार, आचरण, भाषा,परिश्रम, सहनशीलता, स्वभाव आदि आपके परिवार और परिवेश को सुखद व सानुकूल बनाने में सहायक होंगे। सकारात्मकता के बीज मन में ही बोए जाते हैं। उसके अंकुर आपके मुख पर दर्शित होते हैं। प्रयास करें।

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