सरकार का प्रयास है कि राज्य में कला और कलाकार जीवित रहें- पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिह

० आशा पटेल ० 
जयपुर। 
गहलोत सरकार का पूरा प्रयास है कि राज्य में लोक कलाएं और लोक कलाकार जीवित रहें और सरकार के सहयोग से वे कला संवर्धन के जरिए पर्यटन के विकास में महती भूमिका निभाएं।   दो दिवसीय साहित्योत्सव "शहरनामा" का आगाज हुआ। पर्यटन विभाग के सहयोग से प्रभा खेतान फाउण्डेशन द्वारा इस सहित्योत्सव का आयोजन किया जा रहा है। पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह , फेस्टिवल डायरेक्टर नीलिमा डालमिया आधार, फेस्टिवल एडवाइज़र विनी कक्कड़,फेस्टिवल को डायरेक्टर अपरा कुच्छल और आई टी सी राजपूताना के जनरल मेनेजर रिषी मट्टू ने दीप प्रज्जवल्लित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
इस अवसर पर अपने संबोधन में पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य के पर्यटन मंत्री होने के नाते वह स्वयं जयपुर में पधारे सभी लेखकों और कलाकारों का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग का मंत्री होने के कारण उनकी जिम्मेदारी भी काफी बड़ी है कि राज्य में कला और कलाकार को सम्मान मिले। विश्वेंद्र सिंह ने कहा कि गहलोत सरकार का पूरा प्रयास है कि राज्य में लोक कलाएं और लोक कलाकार जीवित रहें और सरकार के सहयोग से वे कला संवर्धन के जरिए पर्यटन के विकास में महती भूमिका निभाएं। 
शहरनामा जैसे कार्यक्रम के आयोजन पर खुशी जातते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की नई पर्यटन नीति में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी सभी ईकाइयों को पर्यटन नीति का लाभ उठाना चाहिए।

दुनिया भर में ऐतिहासिक धरोहर के लिए लोकप्रिय जयपुर शहर में, शहरनामा - कहानी अपने अपने शहरों की, ए बुटीक लिट्रेरी फ़ेस्टिवल में दिन भर चले विभिन्न सत्रों में देश भर से आए लेखकों, प्रकाशकों और विचारकों ने जयपुर, अजमेर, पुष्कर, उदयपुर, श्रीनगर, बिहार, मथुरा, लखनऊ सहित विविध शहरों की संस्कृति, रहन सहन, खानपान, और इतिहास पर अपने अनुभव और विचार साझा किए।
अपरा कुच्छल ने अपने उद्बोधन में कहा कि शहरनामा में दो दिनों में 30 से अधिक लेखक, विचारक, पत्रकार, वक्ता और कलाकार अपने पसंदीदा शहरों से जुड़े अनुभव साझा करेंगे। 

कुच्छल ने कहा कि इस तरह के अनूठे कार्यक्रम के ज़रिए हम सब यह बख़ूबी महसूस करेंगे कि साहित्य में कितनी शक्ति होती है, और यह हमें किस तरह जोड़ता है। हिन्दू मुसलमां एक ही थाली में खाएं, ऐसा हिन्दुस्तान बना दे मौला”, कुछ इस तरह की दिल छू जाने वाली पंक्तियों से सजी सूफीवादी क़व्वाली से शहरनामा कार्यक्रम का आग़ाज़ हुआ। आफ़ताब क़ादरी, तारीक फ़ैज़ और साथियों ने दमादम मस्त क़लन्दर, राग यमन, राग हंसध्वनि और नौबत सहित कई रागों की गायन प्रस्तुति से दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर दिया।

चेंजिंग डायनेमिक्स ऑफ सिटीज़ फ़्रॉम लैंड ऑफ महाराजा टू पैराडाइज़ ऑन अर्थ सत्र में रीमा हूजा ने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संदीप पुरोहित, तथा लेखक फैज़ल अलकाज़ी से उनकी किताबों को लेकर रोचक संवाद किया, जहां दोनो लेखकों ने अपने अनूठे अनुभव बांटे। श्रीनगर पर किताब लिख चुके फैज़ल अलकाज़ी ने साझा किया कि किस प्रकार श्रीनगर में इस्लाम ने अपने कदम रखे। उन्होने श्रीनगर के समृद्ध इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह दौलत, दरिया और दरगाह की नगरी है। 

अलकाज़ी ने श्रीनगर की स्थापत्य कला, फ़ैशन, क्राफ्ट, टेक्सटाइल उद्योग और रहन सहन पर रोशनी डाली। वहीं उदयपुर शहर पर पुस्तक लिख चुके डॉ. संदीप पुरोहित ने बताया कि उदयपुर जैसी खूबसूरत नगरी में एक सम्पादक के तौर पर कार्य करते हुए उन्होने अपनी नज़र से इस शहर को देखा, कुछ दृश्यों को तस्वीरों में क़ैद किया, शब्दों की धार दी और इस तरह किताब को शक्ल मिली। डॉ. पुरोहित बताते हैं कि उनकी हर तस्वीर बहुत कुछ कहती है, और इस किताब में उदयपुर के बारे में कई ऐसे क़िस्से दर्ज हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।

‘अजमेरू - दा इनविंसिबल हिल्स - स्टोरी ऑफ अजमेर एंड पुष्कर’ सत्र में प्रसिद्ध लेखक व विचारक सैयद सलमान चिश्ती, तथा लोकप्रिय लेखिका तृप्ति पाण्डे से अनिसुर रहमान ने चर्चा की, जहां अजमेर और पुष्कर सरीखे शहरों के अनूठे और दिलचस्प पहलुओं पर बातचीत हुई। संवाद के दौरान तृप्ति पाण्डे ने अपने अनोखे अंदाज़ में बताया कि कैसे पहली मर्तबा पुष्कर के मेले में गुलाबो ने नृत्य किया, और कालबेलिया नर्तकों को विश्व भर में लोकप्रियता मिली। 

शहरों की तबीयत बदलने वाले मेलों का ज़िक्र हुआ। तृप्ति पाण्डे ने कहा, “मेला, लोगों का मिलना है।” वहीं चर्चा में चिश्ती ने कहा कि सूफ़ीवाद फ़ैशन नहीं, दर्शन है, जिस प्रकार उन्होने ज़ाहिर किया, “सूफ़ी बनते नहीं, होते हैं।” सूफ़ी इतिहास का उल्लेख करते हुए चिश्ती ने कहा कि इस वक़्त की ज़रूरत है कि दरगाह के इतिहास को किसी नई तकनीक के ज़रिए सामान्य जन तक पहुंचाया जाए।

हर व्यक्ति के जीवन में खाने की यादें जरूर होती हैं।मनीष महरोत्रा ने बताया एक समय ऐसा था कि नाम तो होते थे नरगिसी कोफ्ता, मुगलई पुलाव पर उन्हें बनाया कैसे जाता था, यह कोई नहीं बताता था। अपनी यादें बांटते हुए उन्होने कहा कि एक समय जब मैं अपने उस्ताद से सीखा करता था कुकिंग तो वह अलग-अलग मसालें अपनी जेब में रखा करते थे और किसी ना किसी बहाने से मुझे बाहर भेजकर फिर उस मसाले को मिलाते, ताकि पता ना चले। पर अब ऐसा नहीं है, अब सब बताते हैं कि ये मसाला किस शहर का हैं, अब मेन्यू कार्ड भी बदल रहे हैं। 

हर व्यक्ति के जीवन में खाने की पुरानी यादें जरूर होती है, जैसे दादी के हाथ का खाना, नानी के हाथ का खाना, पर अब लोग धीरे-धीरे पुराना स्वाद भूल रहे हैं। एक शेफ़ होने के नाते मैं पुराना स्वाद वापस लाना चाहता हूं। वहीं अदिति दुग्गर ने बताया कि भारत के अलग-अलग जगह और गांवों में घूमने के बाद पता चला कितने रीजनल फ़ूड हैं जो लोगों को पता ही नहीं होते, मैंने अपने रेस्टोरेंट में उन्हें उसी तरह पेश किया बिना किसी बदलाव ताकि उनका रूप भी ना बिगड़े और पूरे इंडिया को उस फूड के बारे में पता भी चले। उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में चूल्हे पर बने खाने को मॉडर्न माना जाता है परंतु राजस्थान में यह तरीक़ा पांच सौ साल पुराना है। आजकल बड़े-बड़े रेस्टोरेंट में आपको चूल्हे का खाना मिल जाएगा।

पत्रकारिता जगत में बिहारियों के अभूतपूर्व योगदान के बावजूद उन्हे पिछड़ा समझा जाता रहा है, यह भ्रम और सत्य दोनो हैं, इसके पीछे कई अवधारणाओं का खेल रहा है”, यह कहrना था जाने - माने लेखक व पत्रकार अनन्त विजय का, जो ‘ए ग्लिम्प्स इन्टू बिहार - एक्सप्लोरिंग दा हिस्ट्री, कल्चर एण्ड क्यूज़ीन ऑफ इंडिया ज्यूअल स्टेट’ सत्र में बिहार नगरी पर अपना पक्ष रख रहे थे।इस महत्वपूर्ण चर्चा में अनन्त विजय, लेखक अभय के, तथा सुधा सदानन्द ने हिस्सा लिया। अनन्त विजय ने साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद के समक्ष आने वाली चुनौतियों, और सम्भावनाओं पर बात की।

सत्र में महक माहेश्वरी ने बताया कि बचपन से ही मथुरा से बहुत लगाव रहा।चाहे कितना भी स्ट्रेस हो, मथुरा की जमीन पर कदम रखते ही सब अपने आप दूर हो जाता हैं। यहां की जमीन में एक अलग ही वाइब्रेशन है चाहे प्राकृतिक हो या यहां का आध्यात्मिक असर, पर कुछ तो है जो आपको ठहराव देता है। एक किस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि तानसेन भी कई बार यहां आते थे, मथुरा के पास वृंदावन। उनके संगीत में वृंदावन और मथुरा की खनक मिलती है।

भोपाल तुझे उसने पानी पर लरज़ता हुआ पाया होगा' वर्तुल सिंह ने एक शेर सुनाते हुए बड़े शायराना अंदाज में भोपाल शहर के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि झीलों की यह नगरी राजा भोज के नाम से भी जानी जाती है, लेकिन इतिहास में राजा भोज और भोपाल का कोई लेना देना था ही नहीं। झील ही है जो भोपाल की जान है। शहरों के बारे में मैं पढ़ता बहुत हूं और भोपाल में तो मेरा बार-बार आना होता रहा है, बहुत कुछ है भोपाल के बारे में बताने को शायद इसीलिए भोपाल-नामा लिखने को प्रेरित हुआ।

‘ग्वालियर एण्ड लखनऊ - वेटर रॉयल्टी एण्ड कल्चर रेन्स सुप्रीम’ सत्र में सुधा सदानन्द ने महरू ज़फ़र, तथा स्मिता भारद्वाज से चर्चा की, जहां ग्वालियर और लखनऊ की गलियों में बन्द कई दिलचस्प क़िस्से साझा हुए। ग्वालियर शहर पर किताब लिखने वाली स्मिता भारद्वाज ने कहा कि कॉफी टेबल लिखना, और तस्वीरें जुटाना उनके लिए ख़ासा मुश्किल रहा। युवा पीढ़ी में पढ़ने की आदत कम होती जा रही है, इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होने कॉफी टेबल लिखी, और ग़ौरतलब है कि किताब स्कूल के बच्चों में काफ़ी मशहूर हो रही है। वहीं संवाद में महरू ज़फ़र ने लखनऊ के कई रोचक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि किस तरह एक फटे कुर्ते के छेद के इर्द - गिर्द कशीदाकारी की गई और लखनऊ के मशहूर चिकनकारी का जन्म हुआ।

पहाड़ी इलाक़ों को बचाने के लिए मैदानों से आवाज़ उठानी होगी”, यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पन्त का, जो ‘हिमालय का क़ब्रिस्तान’ सत्र में अनन्त विजय के समक्ष अपनी बात रख रहे थे। पहाड़ों की बिगड़ती दिशा पर गम्भीरतापूर्वक अपना पक्ष रखते हुए पन्त ने कहा कि हम एक सांस्कृतिक थकान के दौर से गुज़र रहे हैं, हमें पेड़, पहाड़ और परिन्दे चाहिए, लेकिन अपनी शर्तों पर। पन्त ने साझा किया कि हिमालय पर रिपोर्ट लिखने के दौरान उन्हे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने जुझारू अन्दाज़ में पन्त ने कहा कि हिमालय को देवतुल्य मानने की बजाय, उसे बचाएं तो बेहतर होगा।

 इसे नज़रअन्दाज़ कर हम मौसमों की हत्या कर रहे हैं। आशंकित ख़तरों को सुझाते हुए, पन्त ने कहा कि केदारनाथ को इतना भव्य बनाने की क्या दरकार है? वहां इतनी संख्या में रोप वे और हेलिकॉप्टर्स बनाना क्यों ज़रूरी है? सरकार, प्रशासन और जन सामान्य को इन ख़तरों की गम्भीरता को समझने की आवश्यकता है। पहले दिन के अंतिम सत्र के रूप में जाने माने किस्सागो हिमांशु बाजपेयी अपनी चर्चित कृति लखनऊवा क़िस्से को लेकर आए। इस मौक़े पर उन्होंने किस्सागो शैली में लखनऊ शहर की संस्कृति, वहां की तहज़ीब और लोगों से जुड़े क़िस्सों को रोचक शैली में सुनाकर लोगों की जमकर वाहवाही लूटी। 

कुछ क़िस्से, जैसे लखनऊ के रिक्शे वाले, क़िस्सा सब्ज़ी वालों का, क़िस्सा हिन्दू मौलवी का और हकीम बन्दा मेहदी का करिश्माई पुलाव सरीखे ऐसे क़िस्से थे, जिन्होंने लखनऊ शहर को लोगों के सामने जीवन्त कर दिया। इस मौक़े पर जयपुर के जाने माने फ़ोटोग्राफ़र सुधीर कासलीवाल के और जयपुर के एवं वास्तुशिल्प एवं सन्देश भण्डारी के पुणे के पारम्परिक वास्तुशिल्प के विभिन्न कोणों से लिए गए फ़ोटोग्राफ़ की प्रदर्शनी भी आकर्षण का केन्द्र रही।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

प्रदेश स्तर पर यूनियन ने मनाया एआईबीईए का 79वा स्थापना दिवस

वाणी का डिक्टेटर – कबीर