सूरज कण-कण ने चमकावे...धरती धोरां री- शहरनामा-कहानी अपने शहरों की ए बुटीक लिटरेचर फेस्टिवल

० आशा पटेल ० 
जयपुर - पद्मश्री गुलाबो और उनके साथी कलाकारों ने अपनी कला से शहरनामा कार्यक्रम को रंगीन कर दिया। 'काल्यो कूद पड्यो मेला में' गाने पर पद्मश्री गुलाबो और उनके साथी कलाकारों ने जबरदस्त नृत्य की प्रस्तुति दी। टीम के ही एक कलाकार ने सिर पर चार गिलासों के साथ पानी से भरी मटकी रखकर बड़े संतुलन के साथ अपनी कला से लोगों को प्रभावित किया। इस प्रोग्राम के लिए उपस्थित उदयपुर से शकुंतला सरूपरिया ने 'धरती धोरा री' गाना सुनाया यतींद्र मिश्र और सुतापा मुखर्जी ने स्मिता भारद्वाज से अयोध्या शहर के बारे में बात की, जहां यतींद्र मिश्र ने बताया की गंगा-जमुना तहजीब वाले इस शहर के लोग छोड़ना जानते हैं। यहां के लोग अपना जीवन बहुत कम

महत्वकांक्षाओं के साथ ही जी लेते हैं। सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं, बल्कि यहां प्रत्येक धर्म की गंगा यहां बहती हैं। सुतापा मुखर्जी ने बताया कि अयोध्या के बारे में बहुत ही लिखा गया है, लेकिन वह अयोध्या वासियों पर लिखना चाह रही थी।उन्होने साझा किया कि अयोध्या के जो असल मुद्दे रहे हैं, उनके बारे में यहां के लोगों के विचार क्या रहे हैं।

आकृति पेरिवाल और रशीद किदवई से बातचीत में जितेंद्र दीक्षित ने बताया कि कश्मीरी लेखकों की किताबें पढ़ते हुए उन्हे मुम्बई पर लिखने का विचार मन में आया। जहां 1990 के दशक में कश्मीर अलगाव झेल रहा था, वहीं मुंबई अंडरवर्ल्ड के घेरे में रहा। दुनिया के किसी कोने में कहीं भी कुछ घटित होता है, उसका असर सीधा मुंबई पर होता हैं।घटना अयोध्या में हुई, तो दंगे मुंबई में हुए। चर्चा में परिमल भट्टाचार्य ने कहा कि दार्जिलिंग का सही चेहरा लोग समझ ही नहीं सके हैं, चाय बागान, फोटोग्राफी,और टॉय ट्रेन इतना ही लोग जान पाते हैं। यहां के हाशिये का वर्ग कैसा है, यहां का जन-जीवन कैसा है, इस बारे में लोग आज भी अनजान हैं, जिसे उन्होने पनी किताब के जरिये सामने लाने की कोशिश की है।

“देख्यो नहीं जयपुर, तो संसार में आकर के करियो”, हमारे प्रिय गुलाबी शहर के बारे में यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र सिंह शेखावत का, जो शहरनामा के दूसरे दिन आयोजित हुए सत्र 'विरासत के कंगूरे' में जयपुर की आदर्श बसावट तथा बुनावट पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रहे थे। संवाद में टीवी पत्रकार अंकित तिवारी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए शेखावत ने कहा कि जयपुर की बसावट इतनी उत्कृष्ट थी कि इसमें सूत भर का भी फ़र्क़ नहीं था। शेखावत आगे बताते हैं कि “गली - गली गुलज़ार हुई, घर - घर बाज़ार, नीचे दुकान, ऊपर मकान” के कॉनसेप्ट पर पुराना जयपुर बसा था, जहां दुकान और मकान एक साथ होते थे।

 इस शहर के लोगों को खाने का बड़ा शौक़ रहा है, और जौहरियों, हलवाइयों ने इसे बहुत समृद्ध किया है। इस रोचक चर्चा में प्रसिद्ध ज्योतिषी प्रो विनोद शास्त्री ने गुलाबी नगरी की प्रशंसा में कहा कि यह सुकून का शहर है। इस शहर का निर्माण यज्ञ व अनुष्ठान से हुआ है, यहां का नगर वास्तु गजपृष्ठ पर बना है, और यही कारण है कि इस शहर में जो आता है, वह यहीं का हो जाता है। वहीं, चर्चा के दौरान वक्ताओं ने यह भी कहा कि वर्तमान में शहर में प्रदूषण बढ़ रहा है, और हवेलियों के स्थान पर कॉम्पलेक्स बन रहे हैं, जो गहन चिन्ता का विषय है।

'दिल्ली टू हज़ारीबाग़ - टेल्स ऑफ अनडाइंग सिटीज़’ सत्र में स्वप्ना लिडिल, अद्रिजा रॉयचौधरी, मिहिर वत्स तथा आकृति पेरीवाल ने हिस्सा लिया, जहां राजधानी दिल्ली के कई रोचक पक्षों पर चर्चा हुई। ‘द ब्रोकन स्पिरिट - दिल्ली अण्डर दा ईस्ट इण्डिया कम्पनी एण्ड दा फ़ॉल ऑफ दा मुग़ल डायनेस्टी, 1803 - 1857’ किताब की लेखिका व इतिहासविद् स्वप्ना लिडिल ने कहा कि हमारे हेरिटेज स्पेस ख़राब हो रहे हैं। वहीं उन्होने यह भी कहा कि जिस प्रकार इन दिनो पुरानी जगहों का नाम बदला जा रहा है, उसमें समस्या यह है कि ऐसा करके आप उस जगह की ऐतिहासिक पहचान का कुछ अंश हटा देते हैं। 

संवाद में लेखिका अद्रिजा रॉय चौधरी ने कहा कि राजधानी दिल्ली में पुराने शहरों के नाम ऑर्गेनिक होते थे, जैसे लड्डूशाह की गली, खजानची की गली और मज़ेदार बात यह है कि यह नाम आर्काइव्स में दर्ज नहीं है, लेकिन जनमानस की यादों में बसे हैं। चर्चा में ‘टेल्स ऑफ हज़ारीबाग़’ किताब के लेखक मिहिर वत्स ने कहा कि हज़ारीबाग़ के साथ उनकी भावनाएं जुड़ी हैं, उनका बचपन जुड़ा है और इसीलिए उन्होने इस शहर पर लिखा।

‘इनचेंटिंग वर्ड ऑफ महाराष्ट्र’ सत्र में पत्रकार सुधा सदानन्द ने फ़ोटो जर्नलिस्ट सन्देश भण्डारी से उनकी किताब ‘तमाशा’ और ‘वारी - एक आनन्द यात्रा’ से जुड़ी रोचक चर्चा की। इस दिलचस्प बातचीत में सन्देश ने अपनी किताब ‘तमाशा’ के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि तमाशा महाराष्ट्र की एक पारम्परिक नृत्य शैली है, जिसके माध्यम से सामाजिक भेदभाव और असमानताओं पर भी प्रहार किया जाता रहा है। सन्देश मानते हैं कि पुराने समय में तमाशा कलाकारों को नीची नज़र से देखा जाता था। प्रसिद्ध तमाशा कलाकारों को भी वह प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी, जिसके वे हक़दार रहे हैं और इस नृत्य शैली और इन कलाकारों की कहानियों को दर्ज करने के उद्देश्य से ही उन्होने यह किताब लिखी। ग़ौरतलब है कि किताब आने के बाद कई तमाशा कलाकारों को सरकारी आर्थिक प्रोत्साहन दिया गया है।

अपरा कुच्छल ने तृप्ता पांडे और मोजे़ज सिंह से जयपुर पर बात की, जहां तृप्ति पाण्डे ने कहा कि जयपुर मेरी अंतरात्मा में बसा हैं और मुझे इस बात की चिंता सताती है कि यहां की धरोहर को सहेजने की जगह उन पर बड़े बड़े मॉल बनाए जा रहे हैं। उन्होंने जयपुर पर लिखी अपनी किताब से एक अंश भी सुनाया। चर्चा में मोजे़ज सिंह ने बताया कि जयपुर का नहीं होने के बावजूद भी उनका यहां से बहुत जुड़ाव रहा है। उन्होंने कहा कि यहां की संस्कृति, यहां की हवेलियां और फेस्टिवल सब उन्हे अपनी तरफ आकर्षित करते हैं।जयपुर पर लिखी अपनी कॉफी टेबल बुक में उन्हें सबसे अच्छा हिस्सा जयपुर के फोटोग्राफ्स लगते हैं। 

इसी सत्र में सुधीर कासलीवाल की फोटोग्राफ दिखाए गए। हर फोटोग्राफ को जयपुर की अलग-अलग आवाजों के साथ प्रस्तुत किया गया। मंदिर की घंटियां, अज़ान की आवाज़, तो कहीं सब्जी वालों की और बसो से आती आवाजें। अपरा कुच्छल ने अपने दिलचस्प सवालों से जयपुर की खासियत बयां की। दर्शकों में उपस्थित सभी अतिथियों ने जयपुर के बारे में एक शब्द में यही कहा, 'जयपुर मतलब खुशी' यहां के लोग हंसते-मुस्कुराते नजर आते हैं।

'फिल्मों में शहर' सत्र में अनंत विजय, सुधा सदानंद और यतींद्र मिश्र ने कई दिलचस्प किस्से बांटे, जहां फिल्म पत्रकार व लेखक अनन्त विजय ने कहा कि आज भी पुराने अलीगढ़ को ढूंढना हो, तो फिल्म 'गरम हवा' में मिल जाएगा। उन्होंने कहा ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पुराने शहरों को लेकर वेबसीरीज बनने लगी हैं, जिसका उदाहरण है 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'मिर्जापुर'। 'झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में' गाना इतना लोकप्रिय हुआ, जबकि बरेली का झुमके से कोई लेना देना था ही नहीं। चर्चा में सुधा ने कहा कि एक आम आदमी की आंखों से मुंबई क्या हैं, यह मोहम्मद रफी के गाने से झलक जाता है 'जरा हटके जरा बचके यह बोम्बे मेरी जान'। यतींद्र मिश्रा ने कहा कि जब पहली बार शिमला गया तो जॉय मुखर्जी और साधना का 'लव इन शिमला' वाला शिमला ढूंढने लगा।

“वही आंगन, वही खिड़की, वही दर याद आता है,
अकेले जब भी होता हूं, मुझे घर याद आता है।”

शायरियों, नज़्मों और कविताओं के जादू से सराबोर ‘शहरों की अंताक्षरी’ सत्र में जाने - माने शायर लोकेश सिंह साहिल, और मशहूर शायर आलोक श्रीवास्तव ने शिरकत की, वहीं शहरनामा फ़ेस्टिवल को डायरेक्टर नीलिमा डालमिया आधार ने संवाद को बांधे रखा। आलोक ने अपने मूल शहर भोपाल की याद में नज़्म सुनाई, वहीं “सखि पिया को जो मैं न देखूं, कैसे काटूं अंधेरी रतियां" सुनाकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। साहिल ने बताया कि वह एक राजपूत सामंती परिवार से आते हैं, जहां कला और कविता की समझ नहीं के बराबर है। आख़िर में उन्होने कुछ यूं ख़ुद को बयां किया, “मेरे अल्फ़ाज़ ही पहचान बनेंगे मेरी, मेरा चेहरा तो मेरा साथ चला जाएगा।”

‘पंजाब एक्सप्रेस’ सत्र में राजनीतिक लेखक रशीद किदवई, और अमनदीप संधू से मिनी सम्पतराम ने रोचक संवाद किया, जहां पंजाब से महत्वपूर्ण सम्बन्धित विषयों पर चर्चा हुई। ‘पंजाब - जर्नीज थ्रू फ़ॉल्ट लाइंस’ किताब के लेखक अमनदीप ने कहा कि पंजाब को कहीं भांगड़ा, छोले भटूरे, भ्रूण हत्या, जाति, लिंग और कई अन्य विषयों से जाना जाता रहा है, लेकिन प्रश्न यह है कि वास्तव में पंजाब की पहचान क्या है। इसी प्रश्न के इर्द - गिर्द अमनदीप ने अपनी किताब लिखने का साहस किया। उन्होने आगे कहा कि पंजाब के लोगों को भड़का कर असल मुद्दों से भटकाया जा रहा है। इस राज्य और इसके लोगों को उनकी वास्तविक पहचान और सम्मान मिलने की ज़रूरत है। वहीं रशीद किदवई ने कांग्रेस की बदलती दिशा, और देश के बदलते राजनैतिक परिदृश्य पर अपना पक्ष रखा।

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