स्पंदन के बैनर तले हुआ रश्मि पारीक की पुस्तक अनुत्तरित प्रश्न का लोकार्पण

० आशा पटेल ० 
जयपुर।
रश्मि पारीक ने कहा कि स्त्री व्यथित है। बराबरी का दर्जा अभी तक नहीं पा सकी है। वह भी पुरूष के कंधे से कंधा मिलाकर जीना चाहती है लेकिन अभी भी कुरुतियों, असमानता के दोयम दर्जे से जूझ रही हैं।उसके मन के अनकहे शब्द ही मेरी शक्ति बने हैं।ये कहानियाँ मात्र कहानी नहीं वरन् स्त्री अस्तित्व की समस्याएँ , निवारण और कुछ धधकते अनुत्तरित प्रश्न भी हैं।स्त्री अस्तित्व की सार्थकता का हलफ़नामा है ।
प्रो. कुसुम शर्मा ने किताब की नीर क्षीर समीक्षा करते हुए इसे पाठकों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बताया ।डॉ. जयश्री शर्मा ने इस कहानी संग्रह को नारी मन की अभिव्यक्ति का एक सशक्त दस्तावेज बताया ।
 स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थान जयपुर द्वारा लेखिका रश्मि पारीक के कहानी संग्रह ‘अनुत्तरित प्रश्न’का लोकार्पण होटल सरोवर प्रीमियर में भव्य समारोह का आयोजन हुआ। लोकार्पण समारोह की अध्यक्ष थे ब्रजकिशोर शर्मा (अध्यक्ष खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, जयपुर )मुख्य अतिथि डॉ.सुषमा अरोड़ा (प्रशासक एवं प्रबंध संचालक राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फ़ेडरेशन जयपुर),स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू,विशिष्ट अतिथि प्रो.कुसुम शर्मा, पूर्व विभागाध्यक्ष भाषा एवं पत्रकारिता विभाग मणिपाल यूनिवर्सिटी,एवं डॉ.जयश्री शर्मा अध्यक्ष राजस्थान लेखिका संस्थान के द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू ने कहा कि रश्मि एक ऐसी संवेदनशील लेखिका हैं जिनकी सशक्त कहानियाँ नारी मन की मनोवैज्ञानिक व्याख्या करती हुई वर्तमान में आधी आबादी की स्थिति को दर्शाती पाठक को झकझोरती हुई आत्ममंथन करने को मजबूर करती हैं ।19 कहानियों को समेटे यह संग्रह हर कहानी के अंत में समाज से विनम्र प्रश्न करता है,जवाब तलाशती , ख़ूबसूरती से बुनी गईं स्त्री विमर्श की ये कहानियाँ संग्रह को विशिष्ट बनाती हैं, उन्हें बधाई।
मुख्य अतिथि डॉ. सुषमा अरोड़ा ने संग्रह की प्रशंसा करते हुए कहा कि महिलाओं को खुद की पहचान बनाना स्वयं खुश रहना बहुत ज़रूरी है । उन्होंने रश्मि की इस कहानी संग्रह की तहे दिल से तारीफ की lउन्होंने खुद की पहचान बनाना चाहती हूँ कविता सुनाई ।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बृज किशोर जी शर्मा ने कहा रश्मि को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।एक बात पूछना चाहता हूँ नवरात्र चल रहे हैं माँ को ही पूजते हैं । हम माँ सरस्वती और लक्ष्मी को पूजते है।

महिलाएँ नहीं हों तो घर चलेगा कैसे? समाज में बदलाव हो गया है । लेकिन माता-पिता को बेटियाँ ही देखती सेवा करती हैं।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित रहे। स्पंदन की उपाध्यक्ष माधुरी शास्त्री ने सभी का आभार प्रकट किया।कार्यक्रम का संचालन डॉ. संगीता सक्सेना ने किया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

प्रदेश स्तर पर यूनियन ने मनाया एआईबीईए का 79वा स्थापना दिवस

वाणी का डिक्टेटर – कबीर