पढ़े-लिखे और टेलेंटेट लोगो का पलायन होना गांव के विकास में बाधक

० श्याम कुमार कोलारे ० 
हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का प्रयास में लगे है। हर माँ-बाप चाहते है कि उनका बच्चा दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा ग्रहण करे एवं अपने गांव के नाम के साथ देश मे भी नाम कमाए। गाँव में एक साधारण परिवार का बच्चा अपने टेलेंट की ताकत के दम से गाँव मे नाम कमाता है। गाँव में उसके मुकाबले में कोई नही होता, इससे वह अपने कौशल को और बढ़ाने हेतु अपने गाँव से शहर की ओर कदम बढ़ाता है जिससे उसकी जरूरत के आधार पर पढ़ाई, शिक्षा माहौल मिल पाए। गाँव के कम पढ़े-लिखे अभिभावक यही चाहते है कि उसका बच्चा तरक्की में उससे कंही आगे निकले।
बच्चे भी माँ-पिता का सपना पूरा करने में कोई कसर नही छोड़ते है। वह अपनी उच्च पढ़ाई के लिए गाँव से शहर प्रस्तान कर जाते है। वस... यही से शुरू होता है गाँव के टेलेंट का शहर की ओर पलाय! एक बार गांव के टेलेंट को शहर की हवा लग जाये तो उसे फिर गांव की हवा नही सुहाती है। एक उच्च स्तरीय पढ़ाई करने के बाद उसे ऐसा लगने लगता है कि अब गांव उसके लिए नही है, गांव में उसकी अहमियत नही होगी, उसका टेलेंट कोई काम नही आएगा। इस कारण गांव के सक्षम लोग अपना टेलेंट लेकर शहर चले जाते है और वही बस जाते है। गाँव धीरे-धीरे कुशल और पढ़े-लिखे लोगो से खाली होता रहता है। 

गाँव के लोग जो गांव में पैदा हुए, यहाँ का अन्न खाये, यहाँ का पानी पीकर बड़े हुए, सब कुछ गांव से ही पाए, परंतु जब गाँव को देने की बारी आई तो निकल गए शहर, और पकड़ लिए कभी नही लौटने वाले रास्ता। गांव के युवक-युवतियां जो अच्छे शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियरिंग, कलेक्टर, सीईओ, प्रशासनिक सेवा अधिकारी, पुलिस अधिकारी , अच्छे से अच्छे ऊंचे पदों में आसीन हुए है। गांव के ये लोग यूँ कहे कि हम लोग! अपना कौशल को कंही दूसरी जगह में उपयोग कर यानी शहरों में उपयोग कर शहर वाले की तरक्की में मदद कर रहे है। जो शहर पहले से विकास की धारा में बह रहा है, 

हमने इस धारा को और धार दे दी है। परंतु वही दूसरी ओर देंखे तो गाँव तो सूना का सूना ही है। जब गांव में कोई उच्च पढ़े लिखे लोग ही नही रहेंगे तो गाँव की तरक्की के लिए सोचेगा कौन! गांव में रहने वाले मेरे कम पढ़े लिखे भाइयों के कंधों में है गाँव की तरक्की का पूरा भार, बेचारे ये लोग ही गाँव के सच्चे सपूत की तरह अपनी जन्मभूमि में डटे हुए है। इनसे जितना अच्छा हो सकता है गाँव के विकास के लिए करते है, और हम जैसे पढ़े लिखे लोग उनके कामों में निकालते है मीन मेख।

आज गांव से शहर की ओर पलायन होना जैसे आम बात हो गई है। मैं गाँव से पढ़-लिखकर आज शहर में जॉब करता हूँ। पिछले 15 सालों से शहर में रह रहा हूँ। कुछ दिन पहले मेरे तीन चार दोस्त गाँव से मेरे घर आये और मुझे कहे भाई, तुम एक छोटे से गाँव से निकलकर शहर में आये औऱ अच्छा नाम कमाया, हम भी गाँव से शहर जाने की सोच रहे है। गांव ने अब कुछ नही रहा। हम भी शहर में कोई नौकरी, जॉब करेंगे। ये मेरे वही युवा साथी थे जो अपनी अच्छी पढ़ाई एवं कौशल के कारण गाँव मे विकास एवं तरक्की में लिए हमेशा कार्य कर रहे है, इनके न होने से जैसे गांव वीरान होने वाला है। 

इनके आने के बारे में सोचकर मैं जैसे घोर चिंता में डूब गया। और सोचने लगा बात तो सही है, जैसे मैं शहर आकर यहाँ रहने लगा वैसे ही ये लोग भी सोच रहे है। परंतु गांव के सभी ऐसे युवाओं की पीढ़ी शहर आ जाये तो गाँव का क्या होगा? क्या मेरा गांव सूना हो जाएगा! क्या मेरा गांव में उच्च शिक्षा वाले की कमी हो जाएगी? ऐसा सोचकर मन करुणा से भर उठा। मैंने उन्हें समझाया कि आप गाँव के अनमोल हीरे हो, आपके वजह से ही गांव में चमक है, आप जो भी कर रहे हो गांव के विकास एवं स्वयं के लिए उत्तम काम है, आपके काम से गाँव समृद्ध हो रहा है , गांव में आप जैसे लोगो की जरूरत है। 

मैने गांव के विकास के लिए यथासंभव मदद करने का आस्वाशन दिया, औऱ उन्हें पलायन न करने के लिए राजी किया। मेरे दोस्त पुनः गांव में ही अपना खेती किसानी का काम, व्यवसाय और अन्य सेवा जन्य कार्य करने में व्यस्त हो गए है, परंतु मेरा मन आज भी अपने गांव के प्रति काम न आने के कारण आत्मग्लानि से द्रवित है। कुछ ऐसा दृश्य लगभग हर गांव का होगा जिसमें गांव के टेलेंटेट और उच्च स्तरीय पढ़ाई करने वाले युवाओं का पलायन होता है और शहर में नौकरी, जॉब और व्यवसाय आदि के लिए चले जाते है, और शहर में ही बस जाते है। फिर दुबारा गाँव मे आने का कभी नही सोचते है। 

एक बार गांव से जाने के बाद जैसे उनके लिए गाँव लौटने का रास्ता ही बंद हो गया। मैं उन सभी पढ़े लिखे भाइयों से आह्वान करना चाहता हूँ, चाहे कितना भी बड़े पद, ओहदा,पर आसीन हो जाओ परन्तु एक समय बाद आपने गांव अपनी जन्मभूमि में अवश्य लौटकर आना। गाँव की मिट्टी आपकी इंतजार करती है कि किसी न किसी दिन ये मेरी ममता का कर्ज जरूर चुकाएगा। 

हो सके तो अपनी मातृभूमि को ही इतना सक्षम बना दो कि कमाने के लिए औऱ कहीं जाने की जरूरत ही न पड़े। आप खुद गाँव मे व्यवसाय, कारखाने, उद्योग, कृषि आधारित उत्पादन, वन ऊपज, हस्तकला, वस्तुकला आदि के लिए अपने गांव में ही संसाधन विकसित करो कि आप स्वयं और अन्य लोगो को रोजगार दे सके,और आपको अपनी जन्मभूमि से कंही और जाकर कार्य करने की आवश्यकता ही न पड़े।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

वाणी का डिक्टेटर – कबीर

राजस्थान चैम्बर युवा महिलाओं की प्रतिभाओं को पुरस्कार