संसदीय समिति मेंआठ सदस्यों को शामिल करने पर विपक्षी दल नाराज

० विनोद तकियावाला ० 
नयी दिल्ली - विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजनीति पर देश-विदेश में चिन्तन व चर्चाये हो रही है।एक तरफ तो भारत अपनी आजादी के 75 वें वर्षगाठ पर अमृतकाल में अमृत महोत्सव मना रही है,वही दुसरी तरफ जी 20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। जी 20 शिखर कॉन्फ्रेंस का आयोजन होना प्रत्येक भारतवासीयों के लिए गर्व व गौरव की बात है। चाहे वह किसी विचारघारा या राजनीतिक दल के समर्थक हो।इन दिनों भारत की राजनीति में घटती घटनायें को लेकर सतापक्ष -विपक्ष एक दुसरे आरोप प्रत्यारोप लगाते है।जिससे कि भारत व भारतवासी के लिए शर्म की बात है।

 इसका जीता जागता प्रमाण लोकतंत्र के मन्दिर संसद के दोनो सदनों में सतापक्ष-विपक्ष की तीखी - नोक झोक के सदन की कार्यवाही का बहिष्कार,गाँधी जी के प्रतिमा पर धरणा प्रदर्शन है।संसद के वर्तमान बजट सत्र के प्रथम चरण के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा संसद के संसदीय समितियों अपने नीजी स्टाफ को जगह दी है।जिसके कारण विपक्ष के कान खडे हो गए। उपराष्ट्रपति द्वारा उठाये गए इस कदम को उन्होनें ग़ैरक़ानूनी बताया।  विगत दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा संसद के 12 संसदीय स्थायी समितियों औरआठ विभागीय स्थायी समितियों में अपने 8 नीजी स्टाफ को जगह दी गई है। इनमें 8 स्टाफ
में तो दो स्टाफ उनके रिश्तेदार और बेहद ही क़रीबी बताए गए हैं। विपक्ष का कहना है कि उनके निजी स्टाफ सदस्यों को 12 संसदीय स्थायी समितियों और आठ विभागीय स्थायी समितियों में रखे जाने के निर्णय को ‘संस्थागत ध्वंस’और ‘गैरक़ानूनी’ क़रार दिया है। उपराष्ट्रपति के स्टाफ में से संसदीय समितियों में लिए गए सदस्यों में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी(ओएसडी)राजेश एन. नाइक,निजी सचिव (पीएस) सुजीत कुमार,अतिरिक्त निजी सचिव संजय वर्मा और ओएसडी अभ्युदय सिंह शेखावत शामिल हैं।राज्यसभा के सभापति के कार्यालय से नियुक्त किए गए कर्मियों में उनके ओएसडी अखिल चौधरी,दिनेश डी,कौस्तुभ सुधाकर भालेकर और पीएस अदिति चौधरी हैं।

इस संदर्भ में 2021 में तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा ने एक ट्वीट में यह दावा किया था कि तब धनखड़ जी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का पद संभाल रहे थे।उन्होनें धनखड़ के परिवार के सदस्यों/रिश्तेदारों को बंगाल राजभवन में ओएसडी के तौर पर नियुक्त किया गया था।यदि मोइत्रा के दावे सही हैं,तो स्थायी समितियों में नियुक्त अभ्युदय सिंह शेखावत और अखिल चौधरी धनखड़ से संबंधित हैं ।राज्यसभा सचिवालय के व विगत मंगलवार के आदेश में कहा गया है कि इन अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से जोड़ा गया है । सर्वविदित रहे कि भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। इस घटना क्रम पर राज्यसभा के एक सांसद ने कहा कि इस तरह का कदम ‘अभूतपूर्व’ है।

इसी शब्द का इस्तेमाल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भी एक ट्वीट में किया था।सिंह ने लिखा,उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्थायी समितियों में अपने कर्मचारियों की नियुक्ति की है।हां,यह अभूतपूर्व है,लेकिन इसके लिए दिया गया स्पष्टीकरण भी अनुचित है।क्या यह राज्यसभा के सभापति के राज्यसभा सचिवालय के मौजूदा कर्मचारियों के प्रति अविश्वास को नहीं दर्शाता है?’द हिंदू के अनुसार, सभापति सचिवालय के एक अधिकारी ने कहा कि यह कदम कई वजहों से उठाया गया है।उन्होंने कहा,हाल ही में सभापति के निर्देश पर ‘लाइब्रेरी,रिसर्च,इस एकतरफा कदम से होने वाला कोई फायदा नजर नहीं आता।ये राज्यसभा की स्थायी समितियां हैं न कि सभापति की स्थायी समितियां.’रमेश राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक(चीफ व्हिप)भी हैं।

 उन्होंने धनखड़ के साथ इस मुद्दे को उठाने का सोचा है क्योंकि राज्यसभा की सभी समितियों में ‘पहले से ही सचिवालय से लाए हुए सक्षम कर्मचारी हैं।कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने भी इस कदम की आलोचना करते हुए ट्विटर पर लिखा,भारत के उपराष्ट्रपति राज्यों की परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं,न कि उपसभापति या उनके पैनल की तरह सदन का सदस्य वे कैसे अपने निजी स्टाफ को संसद की स्थायी समितियों में नियुक्त कर सकते हैं?क्या यह संस्थागत विध्वंस के समान नहीं होगा?’नाम न छापने की शर्त पर एक सेवानिवृत्त सेक्रेटरी 

जनरल ने कहा कि प्रत्येक समिति को एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी देखते हैं,जो किसी भी घटनाक्रम के बारे में,जब भी जरूरी हो,सेक्रेटरी जनरल को सूचित करते थे।सेक्रेटरी जनरल अपनी ओर से सभापति को जानकारी देते थे।उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि समिति के अध्यक्ष संसद के प्रति जवाबदेह और समिति के कामकाज के लिए जिम्मेदार हुआ करते थें। उन्होंने जोड़ा, .‘यहां सवाल उठना लाजमी है कि जब पहले से ही एक मौजूदा तंत्र है,जो सुचारू रूप से काम करता है तो कर्मचारियों की अतिरिक्त मंडली लाने की क्या जरूरत है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी धनखड़ के द्वारा लिये गए इस कदम की आलोचना की है। 

उन्होंने इसे एक ‘अवैध’ बताया और कहा कि यह ‘उपराष्ट्रपति द्वारा सत्ता के दुरुपयोग’ का एक उदाहरण है।हमाराइतिहास इस बात साक्षी है कि जब कोई राजनीतिक दल सता के सिंघासन पर आसीन होता है वह भी जब वह संसद के दोनो सदन स्पष्ट बहुमत में हो।ऐसे में सतापक्ष शासन व सिंधासन को अपने हिसाब से चलाता है।चाहे विपक्ष कितना भी विरोध क्यूं ना करें!इसके लिए तो प्रजातंत्र के सच्चे प्रहरी व प्राण अर्थात जनता को सर्तक व सजग होना होगा।तभी तो जनता को जर्नादन कहा गया है। 

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