सीएसयू पोर्टल से 40 शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन करेगा

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रकाशन एवं कार्यक्रम विभाग की एक बैठक में आई .टी. के कारण प्रकाशन की दुनिया में ई-टेक्सट का प्रभाव कुछ अधिक बढ़ता दिख रहा है । लेकिन इसके अनेक लाभ भी हैं ।  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में संस्कृत पत्र पत्रिकाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कारण यह तथ्य समुचित ढंग से प्रकाश में नहीं आ सका है । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने जा रही 14 यूजीसी केयर लिस्टेड तथा 26 पीयर रिभ्यू संस्कृत शोध पत्र पत्रिकाओं को केन्द्रीय मापदण्डों के आधार पर प्रकाशित करने की व्यवस्था की गयी है 

जिसमें औन लाइन की यह प्रक्रिया केन्द्रीकृत सभी पत्रिकाओं के लिए इकट्ठे पोर्टल के जरिए बड़ा सुगम तथा पारदर्शी भी हो जाएगा साथ ही साथ इन पत्रिकाओं से जुड़ी लेखों की विशेष समिति द्वारा मूल्यांकन भी त्वरित होगा । महत्त्व की बात इसमें यह भी होगी कि मूल्यांकन के विशेषज्ञों का नाम कुछ खास स्तर पर ही सार्वजनिक होगा और शोध पत्रों को प्रकाशन के योग्य छपने या न छपने के कारणों को विशेषज्ञों को ठोस ढंग से उन्हें अपने आख्याओं में लिखना भी होगा ,ताकि इसका प्रधान संपादक तक इसकी स्पष्ट रुप में जानकारी आ सके । 

लेकिन शोध पत्र लेखकों को अपने शोध पत्र के प्रकाशन के लिए इनमें से किसी एक ही शोध पत्रिका को चुनना होगा । संस्कृत, हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषाओं के माध्यम के इन शोध पत्रों की गुणवत्तापूर्ण प्रकाशन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 विशेष कर भारतीय ज्ञान परंपरा को और अच्छे ढंग से प्रकाश में ला कर संस्कृत शोध के भगिनी भाषा उन्मुखी आयामों के प्रकाशन का सुअवसर मिलेगा । इससे संस्कृत शोध तथा इस भाषा की लोक उपयोगिता को और अधिक बल मिलेगा ।

प्रकाशन एवं कार्यक्रम के निदेशक डा मधुकेश्वर भट्ट ने कहा है कि इन शोध पत्रों को छपने का खर्च बिल्कुल अनपेड रखा गया है । इससे संस्कृत विद्या के अनुसंधान को पारदर्शी प्रश्रय मिलेगा । योजना अधिकारी तथा आईसीटी के प्रभारी डा श्रीनिवासू मंथा का भी कहना था कि इतनी संख्या में ,वह भी किसी एक ही विश्वविद्यालय द्वारा कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी के मार्गदर्शन में शोध पत्रिकाओं का छपना संस्कृत शोधकर्ताओं तथा अनुरागियों के लिए गौरव की बात है । प्रो आर. जी. मुरलीकृष्ण , निदेशक , केन्द्रीय योजना विभाग ने भी कहा है कि किसी भी भाषा में इक्ट्ठे इतनी बड़ी संख्या में शोध पत्रिकाओं के छपने की तैयारी उसकी भाषा के शोध के ऊर्ध्वगामीधर्मिता का सूचक है ।

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