प्रो. पूरनचंद टंडन का अभिनंदन और 'साहित्याक्ष’ का लोकार्पण

० योगेश भट्ट ० 
 नई दिल्ली - दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रो. पूरनचंद टंडन के सम्मान में अभिनंदन स्वरूप उनके मित्रों, शिष्यों एवं अनुयायियों द्वारा एक विशिष्ट कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें प्रो. पूरनचंद टंडन के व्यक्तित्व और कृतित्व, उनके अनुभव और उनके जीवन से जुड़े संस्मरण, साक्षात्कार आदि के संकलन 'साहित्याक्ष' का लोकार्पण मंचस्थ विद्वानों द्वारा किया गया| इस कार्यक्रम में भारतवर्ष के विश्वविद्यालयों से विभिन्न प्रोफेसरों ने प्रो. टंडन के सम्मान में अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. बलराम पाणि थे| कार्यक्रम अध्यक्ष लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित एवं विशिष्ट अतिथियों - राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के अधिष्ठाता प्रो. नंद किशोर पांडे, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्षा प्रो. कुमुद शर्मा, मुंबई विद्यापीठ हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने मंच को गरिमा प्रदान की|

 विशिष्ट आमंत्रित विद्वानों में लखनऊ से प्रो. हरिशंकर मिश्र एवं प्रो. पवन अग्रवाल, हरिद्वार से प्रो. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’, कुरुक्षेत्र से प्रो. बाबूराम एवं प्रो. विजय दत्त शर्मा, जम्मू से डॉ. भारत भूषण, सागर से प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, रोहतक से प्रो. नरेश मिश्र और प्रो. संजीव कुमार, दिल्ली से डॉ. रामशरण गौड, डॉ. दिनेश चंद्र दीक्षित, प्रो. (श्रीमती) प्रेम सिंह, प्रो. जगदेव शर्मा एवं प्रो. प्रवीण गर्ग ने इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इस अभिनंदन समारोह में प्रो. टंडन के परिवार के सभी सदस्य भी उपस्थित थे, जिनमें उनकी सहधर्मिणी रेनू टंडन , बहनें, बेटियाँ और दामाद थे।

कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन विद्वतजन के कर-कमलों से दीप प्रज्वलन के साथ हुआ| वहीं राजाराम  ने गीत-संगीत से सरस्वती वंदन किया| प्रो. टंडन ने सभी मंचासीन अतिथियों को शाल से सम्मानित किया। आयोजन समिति की ओर से प्रो. टंडन को पगड़ी, स्वर्ण ब्रूच, श्री कृष्ण और श्री राधा की प्रतिमा, हाथघड़ी और रेखाचित्र के माध्यम से सुशोभित और सम्मानित किया गया।  प्रो. टंडन के व्यक्तित्व-कृतित्व, साक्षात्कार, संस्करण, अनुभव, साहित्यिक शोधालेखों आदि के संकलित रूप ‘साहित्याक्ष’ का लोकार्पण किया गया| साथ ही नव उन्नयन साहित्यिक सोसायटी की त्रेमासिक पत्रिका ‘सहृदय’ के 3 विशेषांकों एवं पुस्तक ‘गुरु नानक देव का जीवन-दर्शन’ का भी लोकार्पण हुआ|

प्रो. टंडन के शिष्यों के द्वारा तैयार एक वृत्तचित्र और पीपीटी में प्रो. टंडन की बाल्यावस्था से अब तक की विभिन्न छवियों को समेटा गया था, जिसने सभागार में सभी लोगों को भावविभोर किया| कार्यक्रम में औपचारिक अभिनंदन प्रक्रिया पूरी होने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो. बलराम पाणि जी ने कहा, “प्रो. टंडन ने गुरु श्री कृष्ण की भांति सभी अर्जुनों को शिक्षा दी है| प्रो. टंडन बात करने वाले नहीं, काम करने वाले व्यक्तित्व हैं|” मुंबई विद्यापीठ से आए प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय ने कहा, “प्रो. टंडन विभिन्न विधाओं के ज्ञाता हैं| काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान, अनुवाद आदि का वे विराट अध्ययन रखते हैं| वे कर्मवीर योद्धा हैं| हम चाहते हैं, प्रो. टंडन जी सदैव जवान रहें।”

प्रो. नंद किशोर पांडे ने कहा, “प्रो. टंडन आज से ज्यादा कल जाने जाएँगे| इनके द्वारा संपादित पत्रिका में पूर्वोत्तर से पश्चिमोत्तर तक सभी विद्वानों का जुड़ना यह संकेत है कि प्रो. टंडन जी का व्यक्तित्व संपूर्ण भारत में माननीय है|” दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष कुमुद शर्मा जी ने प्रो. टंडन को आकाशधर्मी गुरु कहकर संबोधित किया| उन्होंने कहा कि डॉ टंडन गुरु शिष्य परंपरा निभाने में जितने दक्ष हैं, उतने ही अपने सहयोगियों से जुड़कर चलने का गुण भी रखते हैं|

प्रो. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने कहा, “डॉ टंडन समय की फिसलती रेत पर अपने पांव जमाते रहे हैं|” उन्होंने उनके नाम के प्रत्येक अक्षर के आधार पर 9 दोहों से उनका अभिनंदन किया| श्रद्धानंद कॉलेज के प्रो. प्रदीप कुमार ने प्रो. टंडन जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को गीत में प्रस्तुत कर सबको भावविभोर कर दिया। परिवार से प्रो. टंडन जी की सहधर्मिणी रेनू टंडन  ने अपने अनुभव, संवेदनाएँ और भाव उद्गार शब्दबद्ध कर प्रो. टंडन जी को समर्पित किए| वहीं उनकी बेटी अमृषा और संस्कृति ने पुत्री की दृष्टि से पिता के व्यक्तित्व, प्रेम, स्नेह, कर्म, विश्वास और आत्मबल को कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया|

प्रो. टंडन ने अपने गुरु प्रो. महेंद्र कुमार की बातों को याद करते हुए सबके समक्ष अपने अपने भाव और विचार प्रस्तुत किए| उन्होंने कहा, “कक्षा में नियमित रूप से जाना, समय पर जाना यही, मेरे गुरु ने सिखाया| मैंने कभी किसी शिष्य से भेदभाव नहीं किया| मेरे गुरुओं ने मुझे जो शैक्षिक और व्यावहारिक ज्ञान दिया, उसीके कारण आज मेरा यह व्यक्तित्व है|” कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, “पूरन चंद टंडन सब गुणों का समन्वित रूप हैं, इसीलिए वे पूर्ण हैं|”

प्रो. दीक्षित ने बड़े ही गर्व से कहा, “सौंदर्यशास्त्र पर उनका शोधपरक काम देख आज मैं अपने शिष्य से लेखन में हार गया। प्रो. टंडन सौहार्द्र, परोपकारिता, मर्यादित आकाशधर्मिता, विद्वत्ता, शील आदि गुणों के पुंज हैं|” संपूर्ण कार्यक्रम का मंच संचालन प्रो. विनीता कुमारी और प्रो. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने किया| कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन के रूप में प्रो. संध्या वात्सयायन ने अपने संस्मरण और मंगलकामनाओं के साथ सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया|

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मुंशी प्रेमचंद के कथा -साहित्य का नारी -विमर्श"

गांधी जी का भारतीय साहित्य पर प्रभाव "

बेफी व अरेबिया संगठन ने की ग्रामीण बैंक एवं कर्मियों की सुरक्षा की मांग

प्रदेश स्तर पर यूनियन ने मनाया एआईबीईए का 79वा स्थापना दिवस

वाणी का डिक्टेटर – कबीर