रिकार्ड संख्या में संस्कृत पुस्तकों की बिक्री भाषा की जीवन्तता है

० योगेश भट्ट ० 
नयी दिल्ली - प्रो बनमाली बिश्बाल ,डीन एकेडमी,का मानना था कि कुलपति के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय ने प्रथम बार ' वेस्ट सेलिंग बुक्स ' की परंपरा की भी शुरुआत की गयी है। इससे संस्कृत लेखन की रचनाधर्मिता का और अधिक उन्नयन होगा जिससे साहित्य के बाजार में संस्कृत लेखन ऊर्जस्विता का और सिक्का जम सकेगा ।प्रो रणजित कुमार वर्मन् , कुलसचिव ने कहा कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा इस साल रेकार्ड के रुप में किताबों का बिकना ,साथ ही साथ पाठकों द्वारा कुछ ग्रन्थों को खरीदने के लिए अग्रिम धन राशि को जमा करवाया जाना ,किसी भी शैक्षणिक संस्था के लिए बहुत ही प्रतिष्ठा की बात होती है ।

कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी नैक पीयर टीम निरीक्षण पूर्व की एक बैठक में कहा है कि आई टी के कारण ई-टेक्सट का प्रभाव अधिक बढ़ा है । इन्हीं सब कारणों से भी अमेरिका से छपने वाली विश्व की लब्धप्रतिष्ठ पत्रिकाएं ग्रांटा तथा न्यूयार्क की भी अब मात्र सौफ्ट प्रतियां बाजार में दिख रही हैं । लेकिन केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित ग्रन्थों का वर्तमान बजट सत्र में 2,31,71,583 ₹ का एक रेकार्ड के रुप में विक्रय होना संस्कृत तथा इसकी कालजयी रचनाधर्मिता तथा समीक्षा परंपरा की जीवन्तता की प्रबल पुष्टि करता है और उन विद्वानों को भी अपना कान खोल लेना चाहिए जो संस्कृत को लेकर अनेक मनगढन्त प्रश्न उठाते रहते हैं ।

 विश्वविद्यालय के इस पुस्तक क्रय राशि में प्रत्येक वर्ष क्रमशः बढ़ोतरी ही हो रही है और ये किताबें भारत सरकार के सहयोग से नो प्रोफिट नो लौस के आधार पर संस्कृत विद्या तथा इसके शोध के सम्यक् तथा चतुर्दिक प्रसार प्रचार के उपक्रम के अन्तर्गत छपने के कारण पुस्तक संसार में इसका अपना विशेष महत्त्व भी है । कुलपति प्रो वरखेड़ी ने यह भी कहा कि पाठकों तथा पुस्तक प्रेमियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यूआईडी जैसे आसान माध्यम से इन पुस्तकों को 500 शीर्षकों के अन्तर्गत औन लाइन खोजा जा सकता है और औन लाइन खरीदी गयी किताबों को विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से बिना किसी डाक खर्च का सीपिंग की भी व्यवस्था है । 

इन सभी पुस्तकों को देश में अवस्थित 16 विक्रय केन्द्रों से प्राप्त किया जा सकता है । इन पुस्तकों को औन लाईन विक्रय की व्यवस्था इसलिए भी की गयी है ,ताकि संस्कृत पाठक तथा संस्कृत अनुरागी तक त्वरित तथा आसानी से उचित मूल्य पर पहुंचाया जा सके । डा मधुकेश्वर भट्ट , निदेशक , कार्यक्रम एवं प्रकाशन ने भी कहा कि कुलपति जी के मार्गदर्शन में संस्कृत ग्रंथों को समुचित रुप में जनमानस तक पहुंचाने का यह एक ऐतिहासिक कदम माना जाना चाहिए । इससे संस्कृत विद्या का निश्चित रुप से व्यापक स्तर पर देश विदेश में प्रचार प्रसार होगा।

 डा भट्ट ने यह भी कहा कि इन प्रकाशित ग्रंथों का मूल्य निर्धारण नेशनल बुक ट्रस्ट के द्वारा ही निर्धारित की जाती है । अतः इन पुस्तकों की कीमत में समानरुपता के साथ साथ पारदर्शिता भी पाठकों के लिए तोष का कारण बनती है। चूंकि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने भारत सरकार का संस्कृत के लिए नोडल निकाय है और दुनिया का सबसे बड़ा बहुपरिसरीय भाषा विश्वविद्यालय है । फलत: गुणवत्ता की दृष्टि से पाठक समाज यहां के प्रकाशन पर अधिक भरोसा जताते हैं और इसकी कीमत भी संतुलित होती है । के.टी.कृष्ण कुमार ,उप निदेशक, प्रशासन ने भी कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में इन तकनीकों को अपना कर संस्कृत ज्ञान के संवर्धन के लिए प्रशंसनीय कार्य हो रहा है ।

इससे उस संस्था की बौद्धिक गुणवत्ता में चार चांद लग जाता है । जितेन्द्र कुमार,सहायक निदेशक प्रकाशन एवं कार्यक्रम ने आशा जताया कि आने वाले समय में अपने विश्वविद्यालय की प्रकाशित ग्रंथों की बढ़ने की ही संभावना है क्योंकि औन लाइन व्यवस्था से संवाद में विराम नहीं आने से क्रेता -विक्रेता में भरोसा त्वरित तथा सटीक बन पाती है ।

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