अमृत काल में आजादी का ये कैसा अमृत महोत्सव

० बिनोद तकियावाला ० 
प्रेस की स्वतंत्रता पर इस साल की रिपोर्ट से पता चलता है कि पत्रकारों के व्यवहार के लिए “संतोषजनक” माने जाने वाले देशों की संख्या थोड़ी बढ़ रही है,लेकिन ऐसी संख्या भी है जहां स्थिति “बहुत गंभीर”है।

नयी दिल्ली - आज कल सभी सरकारी,गैर सरकारी कार्यालयों 'सरकारी व सार्वजनिक स्थलो,सड़क के किनारों मेंआजादी के 75वें बर्ष का स्वतंत्रता प्राप्ति मे आजादी का महोत्सव मनाया जा रहा है।मनाया जाना भी चाहिए।वही दुसरी ओर दबी जुबान से ये भी चर्चा व चिन्तन हो रहा है कि आजादी का ये कैसा अमृत काल मे अमृत महोत्सव केन्द्र की भाजपा सरकार मनाने में व्यस्त है। आजादी के इस अमृत महोत्सव के नाम पर जनता की गढाई कमाई यानि टेक्स के पैसे को पानी तरह बहाया जा रहा है।एक बात सच है कि सड़कों,ऐतिहासिक इमारतों के रंग रोगन कर दीपक जलाकर,फीता काट कर ,फोटो खिचाकर अखबार व टेलीविजन में बाह-वाही लुटना,देश के इतिहास व शैक्षिक संस्थानों में अपने मन माफिक हटाना जोड़ना ही अमृत काल में आजादी का अमृत महोत्सव ह।जहाँ सरकार से प्रशन पूछना मना है। 
विगत कुछ वर्षो में भारतीय राजनीति की बदलते घटना क्रम में कुछ ऐसे परिवर्तन हुई।जिससे भारत व भारतीय की छवि धुमिल हुई।चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो,समाजिक क्षेत्र या,राजनीतिक क्षेत्र में विश्व के श्रेणी मे निरंतर गिरावटे आई है।आज हम पजातंत्र के चौथे स्तंम्भ यानि प्रेस ' पत्रकार ' व मीडिया स्वतंत्रता की बात करने जा रहे है। विगत दिनों विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर प्रेस स्वतंत्रता के कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता सुचाकांक 2023के180 देशों में भारत 161वें स्थान पर रखा गया है।यह सर्वेक्षणवैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स(आरएसएफ)की ताजा रिपोर्ट के अनुसार,2023 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत180 देशों में से 161वें स्थान पर आ गया है।

यह रिपोर्टआरएसएफ द्वारा जारी की गई थी,यह प्रेस स्वतंत्रता के लिए भारत की रैंकिंग में गिरावट का संकेत देती है।जो कि चिन्ता व चिन्तन का विषय है। वर्तमान में देश में 100,000 से अधिक समाचार पत्र (36,000 साप्ताहिक सहित)और 380 टीवी समाचार चैनल काम कर रहे हैं।भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की खतरे की घंटी इंगित कर रही है। इसी वर्ष1जनवरी,2023 से देश में एक पत्रकार की हत्या कर दी गई जबकि 10 पत्रकार सलाखों के पीछे हैं।प्रेस की स्वतंत्रता पर इस साल की रिपोर्ट से पता चलता है कि पत्रकारों के व्यवहार के लिए “संतोषजनक” माने जाने वाले देशों की संख्या थोड़ी बढ़ रही है,लेकिन ऐसी संख्या भी है जहां स्थिति “बहुत गंभीर”है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक पांच अलग-अलग मापदण्डों पर आधारित है जिनका उपयोग स्कोर की गणना करने और देशों को रैंक करने के लिए किया जाता है।इन पांच उप-संकेतकों में राजनीतिक संकेत,आर्थिक संकेत,विधायी संकेत,सामाजिक संकेत और सुरक्षा संकेत शामिल हैं।इन संकेतकों में से प्रत्येक के लिए स्कोर की गणना की जाती हैऔर प्रेस स्वतंत्रता के संदर्भ में देशों की समग्र रैंकिंग निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है। इस सूची में शीर्ष स्थान में 10 देश है।वे देश निम्न प्रकार है 1 नॉर्वे,2 आयरलैंड,3 डेनमार्क, 4 स्वीडन,5 फिनलैंड,6 नीदरलैंड 7 लिथुआनिया,8 एस्टोनिया 9 पुर्तगाल10 ईस्ट तिमोर इस सूची के सबसे नीचे स्तर मे 10 देश का नामनिम्न प्रकार है।देश 171  बहरीन, 172 क्यूबा 173 यानमार 174 इरिट्रिया 175 सिरिया,176 तुर्कमेनिस्तान 177 ईरान 178 वियतनाम 179 चीन, 180 उत्तर कोरिया

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक पांच अलग-अलग कारकों पर आधारित है ।जिनका उपयोग स्कोर की गणना करने और देशों को रैंक करने के लिए किया जाता है।इन पांच उप-संकेतकों में राजनीतिक संकेत,आर्थिक संकेत,भारत 161वें स्थान पर है। यह रिपोर्टआरएसएफ द्वारा जारी की गई थी,और यह प्रेस स्वतंत्रता के लिए भारत की रैंकिंग में गिरावट का संकेत देती है।विगत दिनों

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नई दिल्ली स्थित इंडियन वीमेन प्रेस कार्प्स में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।जिसमें वरिष्ठ पत्रकार,आर्थिक मामलों के जानकार औरलेखक प्रेम शंकर झा,वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस,प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा तथा स्तंभकार एवं लेखक आशुतोष ने हिस्सा लिया।इस बैठक की आई डब्लू पी सी अध्यक्ष शोभना जैन की अध्यक्षता मे आयोजित की गई थी।प्रेस की आजादी का स्पेस संकुचित होने पर गहरी चिंता जताई ।वहीं प्रेम शंकर झा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पत्रकारों के लिए संसद भवन और मंत्रालयों तक आसान पहुंच कितनी जरूरी है।

उन्होंने इस मुद्दे पर भी बात की कि किस तरह संपादकों की भूमिका को क्रमशः कमज़ोर किया गया है और मुखर संपादकों तथा श्रमजीवी पत्रकारों के हित के लिए बने कानून के अभाव में आज के पत्रकारों की स्थिति कितनी कमज़ोर हो गई है।उन्होंने कहा कि आज के संपादक मात्र मैनेजर बनकर रह गए हैं।आशुतोष ने कहा कि किस तरह हमारी समृद्ध सभ्यता,विरासत और विविधता पर सरकार ने अपना कब्जा जमा लिया है।उन्होंने कहा कि आज जो कुछ हमारे सामने है वह सिर्फ लोकतंत्र पर ही नहीं बल्कि हमारी समूची सभ्यता पर छाया संकट है जिसमें सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने का किसी को अधिकार नहीं है।

पामेला फिलिपोस ने कहा कि मौजूदा समय पत्रकारों के लिए बड़े संकट का समय है।उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी लोकतंत्र का ही दूसरा नाम है।कारपोरेट मीडिया के लामबंद हो जाने पर उन्होनें चिंता जताई।उमाकांत लखेड़ा ने कहा कि आज़ाद प्रेस का सबसे बड़ा लाभ सरकार को ही होता है क्योंकि आज़ाद प्रेस ही सरकार की खामियों की ओर इशारा कर उन्हें सुधारने के उपाय तलाश करने में उसकी मदद करता है।उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है किआज की सत्ता सूचना के प्रवाह को पूरी तरह बाधित करने में यकीन रखती है।आईडब्ल्यूपीसी को भेजे संदेश में प्रेस कौंसिल आफ इंडिया की अध्यक्ष जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने आईडब्ल्यूपीसी को प्रेस की आजादी के सवाल पर यह परिचर्चा आयोजित करने के लिए शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने कहा कि यह मीडिया ही है जो जनमत का निर्माण करता है।एक विश्वसनीयलोकतांत्रिक समाज को सुनिश्चित करने के लिए मीडिया को पूरी सच्चाई और पूरी जिम्मेदारी से अपने कर्तव्य पालन के रास्ते में सामने आने वाली सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना चाहिए।आप को बता दे कि वर्तमान समय में देश में100,000 से अधिक समाचार पत्र(36,000साप्ताहिक सहित) और 380 टीवी समाचार चैनल काम कर रहे हैं।1जनवरी,2023 से देश में एक पत्रकार की हत्या कर दी गई जबकि 10 पत्रकार सलाखों के पीछे हैं।इस साल की रिपोर्ट से पता चलता है कि पत्रकारों के साथ व्यवहार के लिए “संतोषजनक”माने जाने वाले देशों की संख्या थोड़ी बढ़ रही है,लेकिन ऐसी संख्या भी है जहां स्थिति “बहुत गंभीर” है।

जहाँ तक भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता का प्रशन है,वह जग जाहिर है।वर्तमान समय मे पत्रकार व पत्रकारिता की स्वतंत्रता का निरंतर प्रशन उठ रहा है।कई बार तो इस मुद्दे पर देश माननीय न्यायलय को दखल देना पड़ता है।इसी बीच अच्छी खबर यह है कि महाराष्ट्र के बाद छतीस गढ़ काफी समय बाद पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाला कानून लगा कर दुसरा राज्य बनने का श्रेय प्राप्त किया है।

केन्द्र में सत्ता के सिंघासन पर आसीन प्रधान सेवक जी का एक दिवा स्वपन्न देख रहे है भारत को विश्व गुरु बना कर रहेगे।यह तभी सम्भव है जब भारत प्रेस स्वतंत्रता के रेकिग में सबसे नीचे 180 स्थान पर पहुँच जायेगा!भारतीय राजनीति आज जिस दौर से गुजर रही है-भारतीय संसद विगत दिनों घटी घटनायें इसका प्रमाण है।जहाँ केन्द्र सरकार के ही द्वारा संसद की कार्यवाही में बाधायें उत्पन्न की जा रही थी।केद्र की सरकार की क्रिया कलापों पर प्रशन करने वाले पंसद नही है।चाहे वह सांसद हो ' या प्रजातंत्र के प्राण व सच्चे प्रहरी कहे जाने वाले प्रेस,मीडिया,पत्रकार हो,साहब को सबाल उठाने वाले देखना नही चाहते है।

 साहब को लोकतंत्र के मन्दिर भारतीय संसद में विपक्ष विहीन,साहब का साक्षात्कार अपने चेहते से सवाल विहीन भी चाहिए !एक बात और साहब को अपने गुणगान करने वाले गोदी मीडिया जरूर चाहिए जो इनके जुमलेबाजी पर गोदी गोदी की जम कर जय कार करे। वे साहिब के एक इशारे पर ताली,थाली,शंखनाद बजा कर उनकी महिमा मंडित करते रहे।

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