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रंग चढ़यो अबीर गुलाल...सखींन...

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सरोज शर्मा    रंग चढ़यो अबीर गुलाल सखिन मारी पिचकारी   भीगी अंगिया चुनर मोरी भीगी भीग गई री मै  सारी सखिन मारी पिचकरी रंग चढ़यो अबीर गुलाल...सखींन....   हिलमिल सगरी करें  ठिठोली मिलजुल  सब नै,रंग मै बोरी चुनरी दयी रंग लाल,सखींन.... .   मारी पिचकारी रंग चढ़यो अबीर गुलाल सखींन  मारी...........   कर बरजोरी कलइयां पकरी ऊंगली मरोडी,चूड़ियां चटकी  गाल दिए रंग लाल सखींन मारी।  पिचकारी रंग चढ़यो अबीर.............. ------  

प्यार रंग गहरा बहुत फीकी होती जंग

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होली के त्योहार पर  करें न हम हुडदंग। प्यार रंग गहरा बहुत फीकी होती जंग।। द्वेष ईर्ष्या लोभ सब  झगड़े की शुरुआत। होली खुशियों से भरी कर लें मीठी बात ।। जब से जग को लग गया मैं- मैं -मैं का रोग। तर्क वितर्क कुतर्क का अन्तर भूले लोग।। रंग सभी देते हमें मनमोहक बर्ताव। आ होली के रंग से धो लें सारे घाव।। होली की अग्नि जले करूँ बुराई भस्म। भीतर भी होली जले सीखूंगी तिलिस्म।। सुषमा भंडारी

खेलूंगी मैं कैसे होली कौन जरेगा हाय ठिठोली 

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सुषमा भंडारी द्वार तकूं भीगे नैनों से आया न हरजाई क्यूं  बाट निहारूं पल-पल तेरी तूने देर लगाई क्यूं चौक बुहारूं आंगन लीपूं रंगोली में सथिये खीन्चूं जल भरने मै जाउँ घाट पर कांपती- सी घबराई क्यूं तूने देर लगाई क्यूं चन्दा आवे सूरज आवे कोयल आकर गीत सुनावे  बरस बीत गये तुम न आये सूरतिया न दिखाई क्यूं तूने देर लगाई क्यूं न कोई खत है न सन्देशा जाकर बैठ गये हो विदेशा  फागुन का महीना है आया याद सभी बिसराई क्यूं  तूने देर लगाई क्यूं खेलूंगी मैं कैसे होली कौन जरेगा हाय ठिठोली  चूड़ी-बिन्दिया-कंगन सूना मुझसे रूठे कन्हाई क्यूं  तुने देर लगाई क्यूं।

बचपन की यादों में होली

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फाल्गुन के दिन चार , होली खेल रहे हैं। रंग बिरंगी होली आई, खेलें रंग गुलाल, होली खेल रहे हैं। राधा के संग कृष्णा खेले, गोपिन के संग ग्वाल। होली खेल रहे हैं। प्रेम के संग प्रेमी खेलें, खेलें अबीर-गुलाल, होली खेल रहे हैं।। होली कैसे मस्ती छाई, बाज रही करताल, होली खेल रहे हैं। हरि फूलों से मथुरा छाई रही। आज मथुरा में होली छाई रही। कोसन खेलें गरबा हिंडोला, कोसन चवर डुलाइ रही। आज मथुरा में होली छाई रही। खोलो किवाड़ चलो मठ भीतर। धर्म की ज्योति जलाके, होली खेल रहे हैं। मन में शुद्ध बिचार, प्रेम की होली खेल रहे हैं। फाल्गुन के दिन चार, होली खेल रहे हैं। होली आए बारंम्बार, होली प्रेमभाव का त्योहार। होली की बधाई करें स्वीकार। होली खेल रहे हैं।

होली आई रे कन्हाई रंग बरसे......सुना दे जरा बाँसुरी '

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सुरेखा शर्मा लेखिका /समीक्षक लो फिर आया फागुन और होली की मस्ती सब पर छाने लगी ।रंगोत्सव मनाने की तैयारियां शुरू हो गई । 'होली ' शब्द सुनते ही अनेक छवियां रंंग बिरंगी मन में उभरने लगी।उत्सव की मौज -मस्ती ,अबीर-गुलाल और हड़दंग की सोच मन मेें  उछाल मारने लगी।           'हर स्पन्दन में जागा यौवन           सखी री! ऐसा आया फागुन' देखा जाए तो सच में ही फागुन की बहती बयार,पेड़ों से फूटती कोंपलें,गुलाबी मौसम,फसल पकने को तैयार मानव मन को उल्लास के हिलोरे देने के लिए काफी है।ऐसे में ताल हो, गीत हो,लय हो और रंग हो तो फिर होली तो स्वयं ही आ गयी समझो।धरती रंगीली ,आसमान गुलालमय ,रंगों से भरी पिचकारियों के बीच मन झूम कर यही कहे-"कान्हा फिर खेलन आइयो होरी।"  देखा जाए तो होली केवल उत्साह और आनंंद का वार्षिक उत्सव नहीं है, बल्कि सच्चे अर्थ में लोक जीवन से जुड़ा एक ऐसा पर्व है जिसमें मिट्टी और रंग दोनों मिले हुए हैं। होली के दो दिन के पर्व में पहले धूल-मिट्टी से खेला जाता है जिसे धुुुुलैंंडी या धूलवंंदन कहा जाता है और फिर खेला जाता है रंग गुलाल अर्थात् रंग -पर्व 'होली' ।

डॉ० मुक्ता की पुस्तक पर हिंदी साहित्य के दिग्गजों ने कहा

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भारी बारिश में भी महिलाएं डटी रहीं

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