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सामाजिक भाईचारे का त्योहार है होली

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लाल बिहारी लाल भारत में फागुन महीने के पूर्णिंमा या पूर्णमासी के दिन हर्षोउल्लास से मनाये जाने वाला रंगों से भरा हिदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। लोग इस पर्व का इंतजार बड़ी उत्सुकतापूर्वक करते है और उस दिन इसे लजीज पकवानों और रंगों के साथ धूमधाम से मनाते है। बच्चे सुबह-सुबह ही रंगों और पिचकारियों के साथ अपने दोस्तों के बीच पहुँच जाते है और रंगो की होली खेलते हैं। दूसरी तरफ घर की महिलाएं मेहमानों के स्वागत और इस दिन को और खास मनाने के लिये चिप्स, पापड़, नमकीन,गुंजिया,मिठाईयों पुआ और पकवान आदि बनाती है। होली का वृहद मायने ही पवित्र है। पौरानिक मान्यताओं के अनुसार फागुन माह के पूर्णिमा के दिन ही भगवान कृष्ण बाल्य काल में राक्षसणी पुतना का बध किया था । इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी तभी से इसे होली के रुप में मनाया जाता है। एक अन्य पैरानिक कथा जो शिव एवं पार्वती से जुड़ा हुआ है।  हिमालय पुत्री पार्वती  शिव से विवाह करना चाहती थी पर शिव जी  तपस्या मैं लीन थी तब उन्होनें भगवान कामदेव की सहायता से भगवान शिव की तपस्या भंग करवाई ।इससे शिवजी क्रोधित हो गये और अपना तीसरे नेत्र खोल दिये जि

विरोध प्रदर्शन छोड़ों एकजुट हो जाओ

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केंद्र और दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी पर सवाल उठाना  न्यायोचित है

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विजय सिंह बिष्ट हिंदुत्व की परिभाषा राजनीति के चस्मे में जिस रूप से देखी जा रही है वह मात्र केवल सत्ता प्राप्ति के लिए जन मानस को बरगलाने का एक माध्यम बनाया जा रहा है। अखण्ड भारत के मानचित्र को हम छठवीं कक्षा में अफगानिस्तान पाकिस्तान ब्रह्मा से लेकर जावा सुमित्रा तक अंकित करते थे। शीर्ष में कश्मीर और अंत में श्री लंका को दिखाया जाता था। नाम हिंदुस्तान । पर्वतों में हिंदू कुश पर्वत, सिंधु नदी,को प्रमुखता से दिखाया जाता था। हमारी पाठशालाओं में दीवार पर भारत माता के चित्र सहित मानचित्र बनाना आम बात थी। भाषा हिंदी थी, अंग्रेजी के स्थान पर संस्कृत विषय या कोई अन्य भाषा चुनना होता था। सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा गाया जाता था।हिंन्दू मुस्लिम,सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई। सामान्य उद्घोष  थे। घर हो या पाठशाला हमें सिखाया जाता था हिंदू की परिभाषा "मन्शा बाचा कर्मणा"मन में जो सोचे,वही बोले और उसी को करें। लंम्बी चोटी धारण इस लिए की जाती थी कि मुसलमान भाई चोटी नहीं रखता था। अलग अलग धर्मों की निशानियां भी अलग ही थी। अपने मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारे और चर्च भी धर्म के आधार पर बनाय

स्कूल सील 1400 बच्चों का भविष्य अंधकार में

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नयी दिल्ली - इंसानियत का सबसे वीभत्स रूप तब होता है जब इंसान ही इंसान को मारने से नहीं चूकता और उसके चेहरे पर डर, खौफ और बदले की भावना व अपनों को खोने का डर साफ़ झलकने लगता है, ऐसा ही हुआ कुछ दिन पहले पूर्वी दिल्ली के कुछ इलाकों में जहाँ साम्प्रदायिक दंगे हुए, इन दंगों में लाखों करोड़ो का नुक्सान हुआ और उस सबसे बढ़कर कई लोगों की जान गई, कई लोगों का घर उजड़ा, इसी के साथ साथ उस क्षेत्र के स्कूलों पर भी हमला किया गया जिसमें राजधानी पब्लिक स्कूल भी शामिल है इस स्कूल में दंगाइयों ने स्कूल की कई गाड़ियां जला दी, स्कूल की खिड़कियों पर भी पत्थर मारें यहाँ तक की पूरा स्कूल तहस नहस कर दिया और इनसबसे बढ़कर 500 - 600 दंगाई स्कूल में घुस गए और उन्होंने इस स्कूल को हथियार बना कर यहाँ से पत्थरबाज़ी की।   इस स्कूल को 6 मार्च को सील कर दिया गया है जबकि 12 मार्च से यहाँ पर छठीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक की परीक्षा शुरू होनी है, जिसमें लगभग 1400 बच्चों का भविष्य अंधकार में बना हुआ है, हम क्या करे किसके पास जाए क्योंकि स्कूल सील होने के बाद बच्चों की परीक्षा कैसे ली जाएगी, बच्चों का भविष्य इस समय अंधकार में नज़र

रंग चढ़यो अबीर गुलाल...सखींन...

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सरोज शर्मा    रंग चढ़यो अबीर गुलाल सखिन मारी पिचकारी   भीगी अंगिया चुनर मोरी भीगी भीग गई री मै  सारी सखिन मारी पिचकरी रंग चढ़यो अबीर गुलाल...सखींन....   हिलमिल सगरी करें  ठिठोली मिलजुल  सब नै,रंग मै बोरी चुनरी दयी रंग लाल,सखींन.... .   मारी पिचकारी रंग चढ़यो अबीर गुलाल सखींन  मारी...........   कर बरजोरी कलइयां पकरी ऊंगली मरोडी,चूड़ियां चटकी  गाल दिए रंग लाल सखींन मारी।  पिचकारी रंग चढ़यो अबीर.............. ------  

प्यार रंग गहरा बहुत फीकी होती जंग

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होली के त्योहार पर  करें न हम हुडदंग। प्यार रंग गहरा बहुत फीकी होती जंग।। द्वेष ईर्ष्या लोभ सब  झगड़े की शुरुआत। होली खुशियों से भरी कर लें मीठी बात ।। जब से जग को लग गया मैं- मैं -मैं का रोग। तर्क वितर्क कुतर्क का अन्तर भूले लोग।। रंग सभी देते हमें मनमोहक बर्ताव। आ होली के रंग से धो लें सारे घाव।। होली की अग्नि जले करूँ बुराई भस्म। भीतर भी होली जले सीखूंगी तिलिस्म।। सुषमा भंडारी

खेलूंगी मैं कैसे होली कौन जरेगा हाय ठिठोली 

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सुषमा भंडारी द्वार तकूं भीगे नैनों से आया न हरजाई क्यूं  बाट निहारूं पल-पल तेरी तूने देर लगाई क्यूं चौक बुहारूं आंगन लीपूं रंगोली में सथिये खीन्चूं जल भरने मै जाउँ घाट पर कांपती- सी घबराई क्यूं तूने देर लगाई क्यूं चन्दा आवे सूरज आवे कोयल आकर गीत सुनावे  बरस बीत गये तुम न आये सूरतिया न दिखाई क्यूं तूने देर लगाई क्यूं न कोई खत है न सन्देशा जाकर बैठ गये हो विदेशा  फागुन का महीना है आया याद सभी बिसराई क्यूं  तूने देर लगाई क्यूं खेलूंगी मैं कैसे होली कौन जरेगा हाय ठिठोली  चूड़ी-बिन्दिया-कंगन सूना मुझसे रूठे कन्हाई क्यूं  तुने देर लगाई क्यूं।