जैविक रोगाणु इन ध्वनियों से नष्ट हो जाते हैं
आज से लगभग सत्तर बर्ष पहले गांव में महामारी हैजा , चेचक और काला ज्वर हुआ करता था। जो संक्रामक तो होता ही था। हैजा मक्खियों , चेचक मरीज के शरीर से फंगस, छोटी माता भी फंगसिव ही हुआ करती थी। प्लेग पिस्सुओं द्वारा फैला करता था। वास्तव में ये कीटाणु जैविक होते थे और तरह तरह से संक्रमित होते थे।उस समय विक्सनेटर एक टीका लगाता था।जो रोग निरोधक माना जाता था। पुराने जमाने के लोगों केबांयं हाथ में ये निशान आज भी देखे जा सकते हैं।तीब्र बुखार और टीका पकना अच्छा लक्षण माना जाता था। शेष जीवन रक्षण के लिए वैद्यराज द्वारा लंगन पाचन और आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग होता था। मुख्य रूप से निमोनिया, टाइफाइड, और मलेरिया का उपचार वैद्य लोग कर लेते थे। संक्रामक रोग असाध्य माने जाते थे। उस समय भी लोग घरों को छोड़कर दूसरे स्थानों में पलायन कर लेते थे, संक्रमित गांवों के रास्ते कांटों से बंद कर दिए जाते थे। उपचारकों को स्वच्छता का ध्यान रखना पड़ता था। मंत्रोच्चारण हवन यज्ञादि का प्रचलन वायु मंडल की शुद्धि और रोग नाशन हेतु किया जाता था। मोदी जी के आह्वान की भांति शंख ताली और थाली बजाने का प्रचलन था। हमारे निकट सैं