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वाणी का डिक्टेटर – कबीर

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डॉ. शेख अब्दुल वहाब एसोसिएट प्रोफेसर  तमिलनाडु  कबीर 15वीं सदी के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे l हिन्दी साहित्य के इतिहास का दूसरा काल जिसे हम “भक्ति काल” (सं.1375 से सं.1700) के नाम जानते हैं l  हिन्दी  साहित्य का यह अत्यंत समृद्ध एवं महत्वपूर्ण काल अनेक दृष्टियों से स्वर्ण-युग भी कहलाता है l   कबीर (सं.1455) इसी भक्ति काल के निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञान मार्ग के प्रवर्तक थे l  उन्होंने ज्ञान के द्वारा ईश्वर को पाने का मार्ग बताया l  उन्होंने निराकार निर्गुण परब्रह्म की उपासना की है l  ईश्वर तक पहुँचने के लिए आपने ने गुरु के महत्व को स्वीकार किया है l  कबीर ने कहा – गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागों पाय ।                                                                                                    बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो मिलाय ।।  अपने आपको काशी का जुलाहा माननेवाले कबीर रामानंद के शिष्य थे l   उन पर हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों का प्रभाव देखा जा सकता है l  कबीर अनपढ़ थे l  उनके शिष्यों ने उनकी वाणी को लिपिबद्ध किया l आत्मा - परमात्मा के संबंधों को (नैनों की करी कोठरी

ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल ने विश्व पर्यावरण दिवस पर लाॅन्च किया डिजिटल कैम्पेन

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नई दिल्ली , विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल ने डिजिटल कैम्पेन श्स्मजेन्दसवबाछंजनतमश् को लाॅन्च करने का एलान किया। कोरोना वायरस महामारी के बाद एक बेहतर दुनिया के लिए पर्यावरण संरक्षण के एक मजबूत सामाजिक संदेश के साथ संचालित यह अभियान फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब सहित जीआईआईएस के सभी सोशल मीडिया चैनलों पर जारी किया गया है। गौतम बुद्ध नगर, यूपी के सांसद और पूर्व केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ महेश शर्मा और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड- सीबीएसई के डायरेक्टर डाॅ विश्वजीत साहा इस अभियान की सराहना कर चुके हैं। इस अभियान में छात्रों और देश के 5 शहरों में जीआईआईएस स्कूलों के नेतृत्व दल द्वारा बनाया गया एक संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली वीडियो शामिल किया गया है। टीम ने सभी को व्यक्तिगत स्तर पर छोटे कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिहाज से इस वीडियो का निर्माण किया है, ताकि वे समग्र रूप से एक बड़ा प्रभाव कायम कर सकें और इस तरह हम सब मिलकर दुनिया को एक बेहतर जगह में बदल सकें। इस वीडियो के बाद जीआईआईएस के छात्र एक और वीडियो का निर्माण करेंगे और वे अन्

Wildcraft इंडिया का साठ दिन में एक लाख लोगों को रोज़गार का लक्ष्य

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नयी दिल्ली : Wildcraft India Pvt. Ltd. (WIPL) भारत द्वारा भारत और दुनिया भर के लिए भारत में निर्माण से एक आत्मनिर्भर भारत बनाने के जज़्बे का समर्थन करते हैं। अनिश्चितता और अभूतपूर्व संकट के इस दौर में , जबकि देश व दुनिया भर में भय का वातावरण है, ऐसी स्थिति से निपटने व इसके अनुसार ढलने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में हम आउटडोर व टैक्टिकल गियर निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं और पी पी जी  श्रेणी निर्माण में प्रवेश करके अपने मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। आज इन नई और असामान्य परिस्थितियों में  हमें अपनी सोच, तरीके व दृष्टिकोण को बदलने की ज़रूरत है। Wildcraft की सोच है कि हमें अपने जुनून को एक ऊर्जा की तरह इस्तेमाल करते हुए, अनिश्चितता व संकट के इस दौर में ढलने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। इसी विश्वास व सोच से प्रेरित होकर Wildcraft ने हाल ही में एक रचनात्मक व बहुमुखी उत्पाद श्रंखला की शुरुआत की है। टेक्निकल गियर कैटेगरी में Wildcraft ने एक "90 लीटर तकनीकी बैग" भारतीय सुरक्षा बलों के लिए डिज़ाइन किया है। Wildcraft ने भारतीय वस्त्र मंत्रालय के लिए एक रीयूज़ेबल पीपीई किट भ

बिहार की राजनीति में सकारात्मक विकल्प के लिए फौजी किसान पार्टी का गठन

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पटना : बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश की राजनीति में सकारात्मक विकल्प को एक नई पार्टी की उद्घोषणा पटना में समाजसेवी (गंगापुत्र) विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा के संरक्षण में की गई। इस पार्टी का नाम 'फौजी किसान पार्टी' रखा गया, जिसका मुख्य उद्देश्य मुट्ठी भर लोगों के कब्जे से लोकतंत्र को बचाकर आम युवाओं तक पहुंचाना है। इस बारे में फौजी किसान पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा ने कहा कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में कम से कम 200 युवाओं को चुनाव में उतारकर 'जागा बिहार - नया बिहार सपना' के सपने को साकार करना भी हमारी पार्टी का मुख्य उद्देश्य है।   विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा ने कहा कि यह पार्टी वर्तमान दौर में सभी पार्टियों से अलग होगी। हम बिहार में बंद पड़े  तमाम उद्योग धंधों को चालू करवा कर और नए बड़े-बड़े एवं लघु उद्योग की स्थापना कर रोजगार की समस्या को दूर करना चाहते हैं। साथी ही बिहारी युवाओं को प्रदेश में रोजगार देकर पलायन को कम करना हमारा उद्देश्य है। हम प्रदेश की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को उन्नत बनाने के लिए हम कृत संकल्पित हैं। इसकी

गंगा एक नदी नहीं एक आस्था है श्रद्धा है विश्वास है

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कहते हैं जब इंसान की प्राण हलक में अटके हो तो दो बूद गंगा जल डाल देने से आत्मा तृप्त हो जाती है और परमात्मा में समाहित हो जाती है.गंगाजल में कीड़े नहीं लगते महीने बरसों तक इसका पानी साफ रहता है.  गंगा एक नदी नहीं एक आस्था है श्रद्धा है विश्वास है इसी कारण गंगा को कानूनन जीवित नदी माना गया है . बिहार की राजधानी पटना की पहचान से जुड़ी है गंगा नदी का इतिहास पटना के घाटों पर जमींदोज है कई कहानियां.  राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए धारा पर आई भागीरथी ताज अपने अस्तित्व की लड़ाई ला रही है बिहार के पटना में गंगा नदी की स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है.गंगा नदी के समानांतर नाले वाली नदी बह रही है. मोदी सरकार के बहु प्रचारित नमामि गंगे प्रोजेक्ट आने  के बाद गंगा की बदहाली दूर होने की आशा जगी है. लेकिन वास्तविकता के धरातल पर यह योजना पटना में तो फिलहाल कहीं नजर नहीं आती नदी मर रही है नदी सूख रही है नदी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है शहर से कोसों दूर जा चुकी है गंगा की धारा और शहर पर मंडराने लगे हैं पर्यावरण असंतुलन के खतरे तेजी से कंक्रीट के जंगलों के रूप में तब्दील होती राजधानी पटना के सभी नाले

अपने-अपने खेमे

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डॉ० मुक्ता,                                                                                                                                               राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत / वरिष्ठ साहित्यकार  चार-पांच वर्ष पहले एक आलेख पढ़ा था, अपने- अपने खेमों के बारे में... जिसे पढ़कर मैं अचंभित व अवाक् रह गई कि साहित्य भी अब राजनीति से अछूता नहीं रहा। यह रोग सुरसा के मुख की भांति दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है... थमने का नाम ही नहीं लेता। लगता है, यह सुनामी की भांति सब कुछ लील जाएगा। हां! दीमक की भांति इसने साहित्य की जड़ें तो खोखली कर ही दी हैं; रही-सही कसर वाट्सएप व फेसबुक आदि ने पूरी कर दी है। हां! मीडिया का भी इसमें कम योगदान नहीं है। वह तो चौथा स्तंभ है न, अलौकिक शक्ति से भरपूर–जो पल-भर में किसी को अर्श से फ़र्श पर लाकर पटक सकता है और फ़र्श से अर्श पर पहुंचा सकता है.... जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप सबके समक्ष है। हां! चलो, हम बात करते हैं --- देश की एक प्रसिद्ध पत्रिका की, जिसमें साहित्य के विभिन्न खेमों का परिचय दिया गया था...विशेष रूप से चार खेमों के ख्याति-प्राप्त, दबंग संचालकों के आचार-व्

बुढ़ापे के रंग,संगनी के संग

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विजय सिंह बिष्ट   बुढ़ापे के रंग, संगनी के संग सुबह सांझ जब बुढ़िया आती है, चंद्रमुख से जरा घूंघट  हटाती है, जब शुभ रात्रि और शुभ प्रभात कहूं, बेचारी चरण वंदन कर जाती है। प्यार भरा कुछ बोलूं, मंद मुस्कान के संग लजाती हैं, प्रसंन्न चित में वह चंद्रमुखी, कटुमुद्रा में सूर्य मुखी बन जाती हैं थोड़ी सी बात में कभी चिढ़ जाये, कभी अंदर का लावा उगल जाती हैं। नदिया की सी प्रबल धारा, छोड़ किनारे मध्य में आ जाती हैं बसते एक ही नीवड़ में, कभी पूरब पश्चिम बन जाती हैं। शांत भाव जब उभरे मन में, सागर सी शीतल हो जाती हैं, जरा जरा सी बातों में, कभी हंसती कभी रूठ जाती हैं, कभी शेरनी सी बन जाये, कभी भीगी बिल्ली बन जाती हैं। कितना कोमल दिल वाली हैं, कभी नैराश्य निष्ठुर बन जाती हैं, बुढ़ापे में जब जवानी भाये, जीवन के मधुर गीत गुनगुनाती हैं। कभी मांग पूरी नहीं हुई, जाके कोप भवन सजाती हैं।  मायके की यादों में खोई, कभी हंसती कभी रुवांसी हो जाती हैं, मेरी हर तकलीफों में, बाहर भीतर करके बुदबुदाती हैं। फिर भी उनका मुझ पर वरदहस्त है, ममता से मेरा अंग अंग सहलाती हैं, गंगा यमुना का सा ये पावन संगम,  सुहृदयआकर गले लग