और खामोश हो गई जनता की 'आवाज'
० योगेश भट्ट ० बरेलीः एसआरएमएस रिद्धिमा में धर्मवीर भारती की प्रसिद्ध कृति 'आवाज' का मंचन हुआ. अल्ताफ हुसैन निर्देशित इस नाटक की कहानी जनता के दुखसुख की आवाज बने अखबार आवाज और उसके संपादक की है. जो भूखी नंगी जनता की आवाज बनते बनते अपने अखबार की नीलामी पर मजबूर हो जाता है. विपरीत परिस्थितियों में अखबार आवाज की नीलामी हो जाती है और संपादक मानसिक संतुलन खो देता है. समाचार पत्र आवाज न केवल एक प्रकाशन है, बल्कि एक ऐसा चरित्र भी है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक है. इसमें मुख्य पात्र नाटक का संपादक दिवाकर है, जो अपने अखबार आवाज के लिए सब कुछ कुर्बान कर देता है. अखबार को समय देने के चलते उसका परिवार बिखर जाता है, उसकी पत्नी शीला आत्महत्या की कोशिश करती है और अस्पताल में गंभीर स्थिति में जीवन से संघर्ष कर रही है. इस परिस्थिति में भी दिवाकर अखबार को तवज्जो देता है. लेकिन परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं. अस्पताल में जिंदगी से जूझती पत्नी को बचाने के लिए उसे रुपयों की जरूरत होती है और वह अखबार की नीलामी करता है. पांच अखबारों का मालिक सेठ बाजोरिया आवाज को खरीद लेता है. इस दौरान अस्