बुल्ला की जाना मैं कौन... से गूंजा पोएट्री फेस्टिवल का आखिरी दिन
० योगेश भट्ट ० नयी दिल्ली - दिल्ली पोएट्री फेस्टिवल का आखिरी दिन रब्बी शेरगिल के गानों और बातों की गुनगुनी धूप के साथ खत्म हुआ. रब्बी ने जहां अपने गाए गानों से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया वहीं उनकी बातों ने लोगों को समकालीन मसलों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया. रब्बी ने नई पीढ़ी को लेकर अपनी चिंता को भी सामने रखा. उनका कहना था कि जहां पहले कलाम और अदब की बातें होती थीं अब वह सब गुम सा हो गया है. लोग अलग ही तरह की दुनिया में जी रहे हैं. दिल्ली पोएट्री फेस्टिवल का दूसरा दिन हरियाणा से आई एक युवा कवियत्री की कविता से शुरू हुआ. शीतल नाम की कवित्री ने हरियाणवी में कविताएं सुनाईं. उनकी कविताओं में महिलाओं की जितनी बुलंद आवाज़ सुनने को मिली उससे भी बुलंद उनका कविताएं सुनाने का अंदाज रहा. शीतल ने मंच पर आते ही ऐलान कर दिया कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती, हिंदी भी कम आती है लेकिन हरियाणवी में मैं बखूबी कविताएं लिखती हूं. उनकी हरियाणवी कविताओं ने सुबह-सुबह कविताओं का लुत्फ लेने पहुंचाने अलसाए कविता प्रेमियों में जोश भर दिया. साहित्य की दूसरी विधाओं के साथ ही कविताओं में भी देश के बंटवारे का दर्द