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उत्तराखंड एकता मंच द्वारा उतरायणी महोत्सव "एकता का प्रतीक"

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नयी दिल्ली - उत्तराखंड एकता मंच द्वारा उतरायणी महोत्सव के पावन पर्व पर दादा देव के विशाल प्रांगण में बड़ी धूमधाम से मनाया गया। एकता के प्रतीक इस समारोह का आयोजन यदि महिला आयोजकों द्वारा बहुत कम समय की उपलब्धि पर आयोजित किया गया, लेकिन उनका प्रयास इतना सफल हुआ कि उत्तराखंड वासियों द्वारा ही नहीं अपितु पालम क्षेत्र के समस्त निवासियों दादा देव का विशाल मैदान भी कम पड़ गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने जन जन के मन को जहां आनंदित किया वहीं अपनी गढ़वाली ,कुमांउनी उत्तराखंडी संस्कृति से सबको तरोताजी यादों मैं सरोबार कर डाला। कार्यक्रम में सभी वर्गों को स्थान दिया जाना भी एकता का ही स्वरूप है। छात्र छात्राओं की लेखन,कला, एवं निबंध प्रतियोगिता, देश में उत्तराखंड का सम्मान बढ़ाने वाले सभी युवा युवतियों को मंच में सम्मानित किया गया। एकता मंच की एक विशेषता, सभी राजनीतिक दलों की उपस्थिति अवर्णीय थी उनका मधुरता पूर्वक आतिथ्य स्वीकार किया जाना, साथ ही सहयोग एकता का परिचायक है। निकट भविष्य में उत्तराखंड के युवाओं से ऐसी आशा की जाती है कि वे अपनी एकता की डोर को इतनी मजबूत बनायें कि उनका राजनैतिक और सामाज

बुरी आदत 

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संत कुमार गोस्वामी एक बार स्वामी रामकृष्ण से एक साधक ने पूछा- 'मैं हमेशा भगवान का नाम लेता रहता हूँ। भजन-कीर्तन करता हूँ, ध्यान लगाता हूँ, फिर भी मेरे मन में कुविचार क्यों उठते हैं?' यह सुनकर स्वामीजी मुस्कुराए। उन्होंने साधक को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया। एक आदमी ने कुत्ता पाला हुआ था। वह उससे बहुत प्यार करता था। कभी उसे गोद में लेता, कभी पुचकारता। यहाँ तक कि खाते-पीते, सोते-जागते या बाहर जाते समय भी कुत्ता उसके साथ ही रहता था।  उसकी इस हरकत को देखकर किसी दिन एक बुजुर्ग ने उससे कहा कि एक कुत्ते से इतना लगाव ठीक नहीं। आखिरकार है तो पशु ही। क्या पता कब किसी दिन कोई अनहोनी कर बैठे। तुम्हें नुकसान पहुंचा दे या काट ले।  यह बात उस आदमी के दिमाग में घर कर गई। उसने तुरंत कुत्ते से दूर रहने की ठान ली। लेकिन वह कुत्ता इस बात को भला कैसे समझे! वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद में आ जाता था। मुंह चाटने की कोशिश करता। मालिक उसे मार-मारकर भगा भी देता। लेकिन कुत्ता अपनी आदत नहीं छोड़ता था।  बहुत दिनों की कठिन मेहनत और कुत्ते को दुत्कारने के बाद कुत्ते की यह आदत छूटी। कथा सुनाकर स्वा